: श्रावण : २४७२ : आत्मधर्म : १८१ :
जेम पत्थरनी सांधने लक्षमां लईने ते सांधमां सुरंग फोडता फडाक
कटका थई जाय छे तेम अहीं सम्यग्ज्ञानरूपी सुरंग छे तथा आत्मा अने बंध
वच्चेनी सूक्ष्म सांधने लक्षमां लईने सावधानपणे तेमां ते सुरंग पटकवानी छे–
एम करवाथी आत्मा अने बंध जुदा थाय छे.
‘सावधान थईने’ अटकवानुं कह्यं छे एटले के गमे ते प्रकारनो राग होय
ते बधोय मारा ज्ञानथी भिन्न छे, ज्ञानस्वभाव वडे रागनो जाणनार ज छुं
पण रागनो करनार नथी–एम बधी तरफथी भिन्नपणुं जाणीने अर्थात्
मोहनो अभाव करीने ज्ञानने आत्मामां एकाग्र करवुं.
‘प्रज्ञाछीणी पटकवी’ एटले कांई हाथमां पकडीने मारवी एम नथी,
प्रज्ञा अने आत्मा कांई जुदा नथी; तीव्र पुरुषार्थ वडे ज्ञानने आत्माना
स्वभावमां एकाग्र करतां रागनुं लक्ष छूटी जाय छे ते ज प्रज्ञाछीणीनो घा छे.
‘सूक्ष्मअंतरसंधिमां पटकवी’ एटले के शरीर वगेरे परद्रव्यो तो जुदा
छे ज, कर्मो वगेरे पण जुदां ज छे, परंतु पर्यायमां जे रागद्वेष थाय छे तेओ स्थुळपणे आत्मा साथे एक जेवा
देखाय छे, परंतु ते स्थुळ द्रष्टि छोडीने सूक्ष्मपणे जोतां आत्माना स्वभावने अने रागने सूक्ष्म भेद छे ते जणाय
छे. स्वभाव द्रष्टि वडे ज राग अने आत्मा जुदा जणाय छे तेथी सूक्ष्मअंतर द्रष्टि वडे ज्ञान अने रागनुं
भिन्नपणुं ओळखीने ज्ञानमां एकाग्र थतां राग टळी जाय छे एटले के मुक्ति थाय छे. आ रीते मोक्षनो उपाय
सम्यग्ज्ञानरूपी प्रज्ञाछीणी ज छे.
– ज्ञान ज मोक्षनुं साधन छे –
त्रिकाळी ज्ञाता स्वभाव अने वर्तमान विकार वच्चे सूक्ष्मअंतरसंधि जाणीने आत्मानी अने बंधनी
अंतर सांधने तोडवानुं ज कह्युं छे. आत्माने बंधनभावथी जुदो पाडतां न आवडे तो आत्माने शुं लाभ? जेणे
आत्मा अने बंध वच्चेना भेदने जाण्यो नथी ते अज्ञानपणे बंधभावोने मोक्षनुं कारण माने छे अने
बंधभावोनो आदर करी संसार ज वधारे छे. तेथी आचार्यदेव कहे छे के हे भव्य! एक प्रज्ञाछीणी ज मोक्षनुं
साधन छे, आ भगवती प्रज्ञा सिवायना अन्य कोई पण भावो मोक्षनुं साधन नथी.
ध्यान करतां प्रथम चैतन्य तरफनो विकल्प आवे छे ते निर्विकल्प ध्याननुं साधन छे–ए वात पण यथार्थ
नथी. विकल्प ते तो बंधभाव छे अने निर्विकल्पपणुं ते शुद्ध भाव छे. पहेलांं अनिहतवृत्तिए (–भावना वगर,
ईच्छा वगर) विकल्प आवे छे परंतु प्रज्ञारूपी तीक्ष्ण छीणी ते विकल्पने मोक्षमार्ग तरीके स्वीकारती नथी पण तेने
बंधमार्ग तरीके जाणीने छोडी दे छे. आ रीते विकल्पने छोडीने ज्ञान रही जाय छे. आवुं विकल्पने पण जाणी लेनारूं
ज्ञान ते ज मोक्षनुं साधन छे परंतु कोई विकल्प ते मोक्षनुं साधन नथी. जेओ शुभविकल्पोने मोक्षना साधन तरीके
स्वीकारे छे तेओने भगवती प्रज्ञा प्रगटी नथी तेथी तेओ बंधभाव अने मोक्षभावने जुदा जुदा ओळखता नथी,
अने अज्ञानने लीधे बंधभावने ज आत्मापणे अंगीकार करीने तेओ निरंतर बंधाय ज छे. ज्यारे ज्ञानीने तो
आत्मा अने बंधभावनुं बराबर भेदज्ञान होवाथी मोक्षमार्गमां वच्चे आवी पडता बंध–भावोने बंध तरीके
निःशंकपणे जाणीने तेने छोडता जाय छे अने ज्ञानमां एकाग्र थाय छे तेथी ज्ञानी क्षणे क्षणे बुधभावोथी मुकाय छे.
– भेदविज्ञानो महिमा –
आमां तो भेदज्ञानने ज मलाव्युं छे, भेदज्ञाननुं अपार माहात्म्य छे. पुर्वे श्लोक १३१ मां भेदज्ञाननो
महिमा बताव्यो छे के–
भेदविज्ञानत: सिद्धा: सिद्धा ये किलकेचन।
अस्यैवाभावतो बद्धा बद्धा ये किलकेचन।। १३१।।
अर्थ:– जे कोई सिद्ध थया छे ते भेदविज्ञानथी ज थया छे; जे कोई बंधाया छे ते तेना ज (भेदविज्ञानना
ज) अभावथी बंधाया छे.
भावार्थ:– अनादि काळथी मांडीने ज्यां सुधी जीवने भेदविज्ञान नथी त्यां सुधी ते बंधाया ज करे छे–
संसारमां रझळ्या ज करे छे; जे जीवने भेदविज्ञान थाय छे ते कर्मथी छूटे ज छे–मोक्ष पामे ज छे. माटे कर्मबंधनुं