: १८० : आत्मधर्म : श्रावण : २४७२ :
भेदज्ञान
[परम पूज्य कानजी स्वामीना श्री समयप्राभृत गाथा – २९४ – उपरना व्याख्यानोनो टूंक सार]
– भगवती प्रज्ञा –
आत्मा अने बंध शा वडे द्विधा कराय छे? एम पूछवामां आवतां तेनो उत्तर कहे छे–
जीव बंध बन्ने नियत निज निज लक्षणे छेदाय छे,
प्रज्ञाछीणी थकी छेदतां बन्ने जुदा पडी जाय छे. २९४.
जीव अने बंधभावने जुदा करवा ते आत्मानुं कार्य छे अने तेनो करनारो आत्मा छे. मोक्ष ते आत्मानी
पवित्र दशा छे अने ते दशारूपे थनार आत्मा छे. परंतु ते रूपे थवानुं साधन शुं, उपाय शुं? तेना उत्तरमां कहे
छे के आ भगवती प्रज्ञा वडे ज आत्माना स्वभावने अने बंधभावने जुदा जाणीने छेदवामां आवतां मोक्ष थाय
छे. आत्मानो स्वभाव बंधनथी रहित छे एम जाणनारूं सम्यग्ज्ञान ते ज बंध अने आत्माने जुदा पाडवानुं
साधन छे, अहीं ‘भगवती’ विशेषण वडे ते सम्यग्ज्ञाननो आचार्यदेवे महिमा कर्यो छे.
– चेतक – चेत्यपणुं –
आत्मा अने बंधना चोक्कस लक्षणो जुदा छे, ते वडे तेमने जुदा जुदा ओळखवा. आत्माने अने बंधने
चेतक–चेत्य संबंध छे, अर्थात् आत्मा जाणनार–चेतक छे अने बंधभाव तेना ज्ञानमां जणाय छे तेथी चेत्य छे.
बंधभावमां चेतकपणुं नथी अने चेतकपणामां बंधभाव नथी. बंधभाव पोते कांई जाणता नथी, पण आत्मा
पोताना चेतक स्वभाव वडे जाणे छे. आत्मानो चेतक स्वभाव होवाथी अने बंध भावोनो चेत्यस्वभाव
होवाथी, आत्मानां ज्ञानमां बंधभाव जणाय छे खरा; त्यां बंधभावने जाणतां अज्ञानीने भेदज्ञानना अभावने
लीधे ज्ञान अने बंधभाव एक जेवा भासे छे; चेतक–चेत्यपणाने लीधे तेमने अत्यंत निकटपणुं होवा छतां
बंनेना लक्षण जुदा जुदा छे. ‘अत्यंत निकट’ कहेतां ज जुदापणुं आवी जाय छे.
चेतक–चेत्यपणाने लीधे अत्यंत निकटपणुं होवाथी आत्मा अने बंधना भेदज्ञानना अभावने लीधे
तेमनामां एकपणानो व्यवहार करवामां आवे छे, परंतु भेदज्ञान वडे ते बंनेनुं भिन्नपणुं स्पष्ट जणाय छे.
पर्यायमां जोतां बंध अने ज्ञान एक साथे होय तेम देखाय छे परंतु द्रव्यस्वभावथी जोतां बंध अने ज्ञान जुदां
देखाय छे. ज्ञान तो आत्मानो स्वभाव छे अने बंध ते बहार जती विकारी लागणी छे.
– बंधभाव अने ज्ञानी भिन्नता –
बंधभाव आत्मानी अवस्थामां थाय छे, ते कांई परमां थता नथी. ते बंधभावनी लागणी आत्माना
स्वभाव साथे एकमेक होय तेम अज्ञानीने लागे छे. अंतर स्वरूप शुं अने बहार जती लागणी शुं–तेना
सूक्ष्मभेदना अभानने लीधे ज्ञानना घोलनमां ते लागणी जाणे के एकमेक थई जती होय तेम अज्ञानीने देखाय
छे अने तेथी बंधभावथी जुदुं ज्ञान अनुभवमां आवतुं नथी अने बंधनो छेद थतो नथी. जो बंध अने ज्ञानने
जुदा जाणे तो ज्ञाननी एकाग्रतावडे बंधननो छेद करे.
राग अनेक प्रकारनो छे अने स्वभाव एक प्रकारनो छे. प्रज्ञावडे बधाय प्रकारना रागथी आत्माने जुदो
पाडवो. आ मोक्षनो उपाय छे.
राग अने आत्मा जुदा छे एम कह्युं, ‘जुदा’ एटले शुं? आत्मा अहीं अने राग तेनाथी दस फूट दूर
एम क्षेत्रथी जुदापणुं नथी, परंतु भावथी जुदापणुं छे. रागादि बंधभावो आत्मानी उपर उपर तरे छे परंतु
अंदर प्रवेशता नथी एटले के क्षणिक रागभाव होवा छतां ते त्रिकाळ स्वभाव रागरूप नथी तेथी विकार ते
स्वभावनी उपर तरे छे एम कह्युं छे. विकार अने स्वभावने भिन्न जाणवाथी ज मोक्ष थाय छे, अने ते माटे
प्रज्ञा ज साधन छे. प्रज्ञा एटले सम्यग्ज्ञान.
– प्रज्ञाछीणी –
समयसार–स्तुतिमां पण कह्युं छे के– ‘तुं प्रज्ञाछीणी ज्ञान ने उदयनी संधि सहु छेदवा’ ज्ञान एटले
आत्मानो स्वभाव अने उदय एटले बंधभाव. स्वभाव अने बंधभावनी बधी संधिने छेदवा माटे आत्मानी
प्रज्ञाछीणी ते ज साधन छे. ज्ञान अने. राग बंने एक पर्यायमां वर्तता होवा छतां बंनेना लक्षण कदी एक थया
नथी, बन्ने पोतपोताना स्व लक्षणोमां भिन्न भिन्न छे–एम लक्षणभेद वडे तेमने जुदा ओळखीने तेमनी सूक्ष्म
अंतरसंधिमां प्रज्ञारूपी छीणीने पटकवाथी तेओ अवश्य जुदा पडे छे.