सिद्धि पामी शकतुं नथी.
व्यापीने प्रवर्ततो नथी. राग वगरनी पर्याय तो होई शके परंतु चेतना वगरनी कोई पर्याय होय नहि, चेतना
तो दरेक पर्यायमां होय ज. माटे राग ते आत्मा नथी पण चेतना ते ज आत्मा छे. बंधभावो तरफ न ढळतां
अंतर स्वभाव तरफ ढळीने जे चैतन्य साथे एकमेक थाय छे एवी निर्मळ पर्यायो ते ज आत्मा छे. आ रीते
निर्मळ पर्यायोने आत्मा साथे अभेद करीने तेने ज आत्मा कह्यो अने विकारभावने बंधभाव कहीने तेने
आत्माथी जुदो पाडयो. आ भेदज्ञान थयुं.
शुभभावो छे तेओनो मेळ आत्मा साथे नथी पण बंध साथे छे.
उत्तर:– अरे, भाई! कोई आत्मा परजीवोनी दया पाळी शकतो ज नथी केमके परजीवने मारवा के
लागणीने पोतानुं स्वरूप माने तो तेने मिथ्यात्वनुं मोटुं पाप लागे. शुभ के अशुभ कोई पण लागणी
आत्मकल्याणमां किंचित् मददगार नथी केमके ते लागणीओ आत्माना स्वभावथी विपरीत लक्षणवाळी छे,
पुण्य–पाप भाव ते अनात्मा छे.
शकाय नहि. रागने जाणनारूं ज्ञान आत्मा साथे एकता करे छे अने राग साथे अनेकता (–भिन्नता) करे छे.
शक्तिनो विकास छे, परंतु अज्ञानीने पोताना स्वतत्त्वनी श्रद्धा नहि होवाथी ते रागने अने ज्ञानने जुदा पाडी
शकतो नथी तेथी ते रागने पोतानुं ज स्वरूप माने छे, ते ज स्वतत्त्वनो विरोध छे. भेदज्ञान थतां ज ज्ञान अने
राग जुदा जणाय छे तेथी भेदविज्ञानी जीव ज्ञानने पोतापणे अंगीकार करे छे अने रागने बंधपणे जाणीने तेने
छोडी दे छे. आ भेदज्ञाननो ज महिमा छे.
छे के ‘आ राग छे;’ परंतु “आ राग हुं छुं” एम ज्ञान जाणतुं नथी, केमके ज्ञान पोतानुं कार्य रागथी जुदुं रहीने
करे छे. द्रष्टिनुं जोर ज्ञान स्वभाव तरफ वळवुं जोईए, तेने बदले राग तरफ वळे छे ते ज अज्ञान छे. जेनुं
वजन ज्ञान तरफ ढळे छे ते रागने निःशंकपणे जाणे छे पण तेने ज्ञानस्वभावमां शंका पडती नथी. अने जेने
ज्ञान तरफ वजन नथी तेने रागने जाणतां भ्रम पडे छे के आ राग केम? पण भाई! तारी द्रष्टि ज्ञान उपरथी
खसीने राग उपर केम जाय छे? आ राग जणाय छे ते तो ज्ञाननी जाणवानी ताकात खीली छे ते ज जणाय छे
ज्ञान संपूर्ण खीली जशे अने राग सर्वथा तूटी जशे–एटले मुक्ति थशे. भेदज्ञाननुं ज ते फळ छे.