Atmadharma magazine - Ank 034
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 11 of 17

background image
: १८२ : आत्मधर्म : श्रावण : २४७२ :
संसारनुं–मूळ भेदविज्ञाननो अभाव ज छे अने मोक्षनुं प्रथम कारण भेदविज्ञान ज छे. भेदविज्ञान विना कोई
सिद्धि पामी शकतुं नथी.
– आत्मा अने बंधभाव वच्चे भेद –
आत्माना बधा गुणोमां अने बधी क्रमवर्ती पर्यायोमां चेतना व्यापीने प्रवर्ते छे तेथी चेतना ज आत्मा
छे. क्रमवर्ती पर्यायो कहेतां रागादि विकार तेमां न लेवो पण शुद्ध पर्याय ज लेवी, केमके राग बधी पर्यायोमां
व्यापीने प्रवर्ततो नथी. राग वगरनी पर्याय तो होई शके परंतु चेतना वगरनी कोई पर्याय होय नहि, चेतना
तो दरेक पर्यायमां होय ज. माटे राग ते आत्मा नथी पण चेतना ते ज आत्मा छे. बंधभावो तरफ न ढळतां
अंतर स्वभाव तरफ ढळीने जे चैतन्य साथे एकमेक थाय छे एवी निर्मळ पर्यायो ते ज आत्मा छे. आ रीते
निर्मळ पर्यायोने आत्मा साथे अभेद करीने तेने ज आत्मा कह्यो अने विकारभावने बंधभाव कहीने तेने
आत्माथी जुदो पाडयो. आ भेदज्ञान थयुं.
बंधरहित पोताना शुद्धस्वरूपने जाण्या वगर बंधभावने पण यथार्थपणे जाणी शकाय नहि. पुण्य–पाप
बंने विकार छे, तेओ आत्मा नथी; आ चैतन्यस्वभाव ते ज आत्मा छे. जेटला दया–दान–भक्ति वगेरेना
शुभभावो छे तेओनो मेळ आत्मा साथे नथी पण बंध साथे छे.
प्रश्न:– पुण्य ते आत्मा नथी तो पछी परजीवनी दया न करवी ने?
उत्तर:– अरे, भाई! कोई आत्मा परजीवोनी दया पाळी शकतो ज नथी केमके परजीवने मारवा के
बचाववानी क्रिया आत्मानी छे ज नहि; आत्मा तो फक्त ते प्रत्ये दयानी शुभ लागणी करे; परंतु जो शुभदयानी
लागणीने पोतानुं स्वरूप माने तो तेने मिथ्यात्वनुं मोटुं पाप लागे. शुभ के अशुभ कोई पण लागणी
आत्मकल्याणमां किंचित् मददगार नथी केमके ते लागणीओ आत्माना स्वभावथी विपरीत लक्षणवाळी छे,
पुण्य–पाप भाव ते अनात्मा छे.
– ज्ञानुं कार्य –
साधकदशामां राग थाय छतां ज्ञान तेनाथी जुदुं छे. राग वखते रागने राग तरीके जाणी लीधो त्यां ते
जाणनारूं ज्ञान रागथी जुदुं रह्युं छे. जो ज्ञान अने राग एकमेक थई गया होय तो रागने राग तरीके जाणी
शकाय नहि. रागने जाणनारूं ज्ञान आत्मा साथे एकता करे छे अने राग साथे अनेकता (–भिन्नता) करे छे.
ज्ञाननुं सामर्थ्य एवुं छे के ते रागने पण जाणे छे. ज्ञानमां राग जणाय छे ते तो ज्ञाननी स्व–पर प्रकाशक
शक्तिनो विकास छे, परंतु अज्ञानीने पोताना स्वतत्त्वनी श्रद्धा नहि होवाथी ते रागने अने ज्ञानने जुदा पाडी
शकतो नथी तेथी ते रागने पोतानुं ज स्वरूप माने छे, ते ज स्वतत्त्वनो विरोध छे. भेदज्ञान थतां ज ज्ञान अने
राग जुदा जणाय छे तेथी भेदविज्ञानी जीव ज्ञानने पोतापणे अंगीकार करे छे अने रागने बंधपणे जाणीने तेने
छोडी दे छे. आ भेदज्ञाननो ज महिमा छे.
राग वखते हुं रागपणे ज थई गयो छुं एम मानवुं ते एकांत छे, परंतु राग वखते पण हुं तो ज्ञानपणे
ज छुं, हुं रागपणे थतो ज नथी–एम भिन्नपणानी प्रतीत करवी ते अनेकांत छे. रागने जाणतां ज्ञान एम जाणे
छे के ‘आ राग छे;’ परंतु “आ राग हुं छुं” एम ज्ञान जाणतुं नथी, केमके ज्ञान पोतानुं कार्य रागथी जुदुं रहीने
करे छे. द्रष्टिनुं जोर ज्ञान स्वभाव तरफ वळवुं जोईए, तेने बदले राग तरफ वळे छे ते ज अज्ञान छे. जेनुं
वजन ज्ञान तरफ ढळे छे ते रागने निःशंकपणे जाणे छे पण तेने ज्ञानस्वभावमां शंका पडती नथी. अने जेने
ज्ञान तरफ वजन नथी तेने रागने जाणतां भ्रम पडे छे के आ राग केम? पण भाई! तारी द्रष्टि ज्ञान उपरथी
खसीने राग उपर केम जाय छे? आ राग जणाय छे ते तो ज्ञाननी जाणवानी ताकात खीली छे ते ज जणाय छे
एम ज्ञान अने रागने जुदा करीने तारा ज्ञान उपर जोर दे, ए ज मुक्तिनो उपाय छे. ज्ञान उपर जोर देतां
ज्ञान संपूर्ण खीली जशे अने राग सर्वथा तूटी जशे–एटले मुक्ति थशे. भेदज्ञाननुं ज ते फळ छे.
राग वखते, ‘आ राग जणाय छे ते मारुं ज्ञान सामर्थ्य छे पण रागनुं सामर्थ्य नथी, ’ आम जेणे भिन्नपणे
प्रतीत करी तेने एकलुं ज्ञातापणुं रही गयुं अने ज्ञातापणाना जोरे बधाय विकारनो कर्ता भाव उडाडी दीधो.
– ज्ञानुं सामर्थ्य; चारित्रनुं साधन –
कोई एम माने के महाव्रतना शुभविकल्पथी चारित्र दशा प्रगटे, तो ते मिथ्याद्रष्टि छे. केम के व्रतनो
विकल्प ते तो राग होवाथी बंधनुं लक्षण छे अने चारित्र ते