बंधभावथी छूटीने मुक्तिमार्गमां प्रवेश जरापण थतो नथी. साचा देव–गुरु–शास्त्रनुं
लक्ष ते अशुभबंधने अंशे रोके छे पण शुभबंधने ते रोकतुं नथी अने
आत्मस्वभावनी साची ओळखाण तो अशुभ तेम ज शुभ बंने प्रकारना बंधन
भावने रोके छे. आथी सिद्ध थाय छे के आत्मानी साची ओळखाण ते ज धर्म छे अने
शुभराग ते पण बंधन छे.
लक्ष न करवुं ने?
शुद्धस्वभावमां ठरी शकतो हो तो तारे शुभभाव के देव–गुरु–शास्त्रनुं लक्ष करवानी
पण जरूर नथी.–
आव्या वगर रहेशे नहि अने शुभभाव वखते मुख्यपणे देव–गुरु–शास्त्र तरफ लक्ष
होय छे, केम के आत्माना लक्षे शुभराग थतो नथी. परंतु ध्यान राखजे के ते शुभराग
मात्र अशुभथी बचवा पूरतो ज छे; अने ते छोडीने शुद्धभावमां टकवानी भावना
करजे.
होय ज. हवे जो तुं शुभराग छोडी दईश तो तने अशुभराग थशे, केमके शुभभाव रहित
आत्माना शुद्धस्वभावनी तो तने खबर नथी. माटे पहेली भूमिकामां असत् निमित्तोनुं
लक्ष छोडीने सत् निमित्तोनुं लक्ष मुमुक्षु जीव करे अने शुभराग पण थाय खरो, परंतु
श्रद्धामां ते शुभरागने धर्म न मानवो, पण बंधन मानवुं. अने शुभभावथी रहित
आत्मानुं स्वरूप छे तेनी ओळखाण करवी. देव–गुरु–शास्त्रना लक्षे पोताना भावथी
पोताने जे साची समजण थाय छे ते धर्मनुं कारण छे अने जे राग छे ते बंधनुं कारण छे–
एम ज्ञान अने राग वच्चे भेदज्ञान करवुं. एवुं भेदज्ञान कर्या पछी ज्यारे पोते ज्ञानमां
एकाग्र थाय त्यारे शुभराग अने देव–गुरु–शास्त्रनुं लक्ष छूटी जाय छे.