Atmadharma magazine - Ank 034
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४७२ : आत्मधर्म : १७५ :

वर्ष त्रीजुं : सळंग अंक : श्रावण
अंक दस : ३४ : २४७२
शुद्धभाव अने शुभाव
(समयसार – मोक्ष अधिकारना व्याख्यानमांथी)
– गाथा – २९६ –
साचा देव–गुरु–शास्त्रने ओळखीने मानवाथी मिथ्यात्व मंद पडे, परंतु मंद
मिथ्यात्व ते पण बंधभाव छे. परलक्षे बंधभावमां मंदता करी परंतु स्वलक्ष वगर
बंधभावथी छूटीने मुक्तिमार्गमां प्रवेश जरापण थतो नथी. साचा देव–गुरु–शास्त्रनुं
लक्ष ते अशुभबंधने अंशे रोके छे पण शुभबंधने ते रोकतुं नथी अने
आत्मस्वभावनी साची ओळखाण तो अशुभ तेम ज शुभ बंने प्रकारना बंधन
भावने रोके छे. आथी सिद्ध थाय छे के आत्मानी साची ओळखाण ते ज धर्म छे अने
शुभराग ते पण बंधन छे.
प्रश्न:– साचा देव–गुरु–शास्त्रना लक्षे शुभराग थाय छे अने शुभराग पण बंधन
ज छे, अने ते राग आत्माने नुकशान करे छे–एम कह्युं, तो हवे अमारे देव–गुरु–शास्त्रनुं
लक्ष न करवुं ने?
उत्तर:– (१) हे भाई! जो तने आत्माना अबंधस्वभावनुं भान थयुं होय,
अने शुभ तथा शुद्धभाव वच्चेना तफावतनी ओळखाणपूर्वक शुभभावने छेदीने तुं
शुद्धस्वभावमां ठरी शकतो हो तो तारे शुभभाव के देव–गुरु–शास्त्रनुं लक्ष करवानी
पण जरूर नथी.–
(२) –जो तने शुभ अने शुद्धना तफावतनुं भान होय पण शुद्धस्वभावमां
स्थिरता न टकावी शकतो हो तो, ते वखते अशुभभावथी बचवा माटे शुभभाव
आव्या वगर रहेशे नहि अने शुभभाव वखते मुख्यपणे देव–गुरु–शास्त्र तरफ लक्ष
होय छे, केम के आत्माना लक्षे शुभराग थतो नथी. परंतु ध्यान राखजे के ते शुभराग
मात्र अशुभथी बचवा पूरतो ज छे; अने ते छोडीने शुद्धभावमां टकवानी भावना
करजे.
(३) –अने जो तने शुभ अने शुद्धना तफावतनुं भान न होय तो प्रथम ते
ओळखवानो प्रयत्न करजे. ज्यांसुधी आत्मानुं भान न होय त्यांसुधी शुभ–अशुभ भाव
होय ज. हवे जो तुं शुभराग छोडी दईश तो तने अशुभराग थशे, केमके शुभभाव रहित
आत्माना शुद्धस्वभावनी तो तने खबर नथी. माटे पहेली भूमिकामां असत् निमित्तोनुं
लक्ष छोडीने सत् निमित्तोनुं लक्ष मुमुक्षु जीव करे अने शुभराग पण थाय खरो, परंतु
श्रद्धामां ते शुभरागने धर्म न मानवो, पण बंधन मानवुं. अने शुभभावथी रहित
आत्मानुं स्वरूप छे तेनी ओळखाण करवी. देव–गुरु–शास्त्रना लक्षे पोताना भावथी
पोताने जे साची समजण थाय छे ते धर्मनुं कारण छे अने जे राग छे ते बंधनुं कारण छे–
एम ज्ञान अने राग वच्चे भेदज्ञान करवुं. एवुं भेदज्ञान कर्या पछी ज्यारे पोते ज्ञानमां
एकाग्र थाय त्यारे शुभराग अने देव–गुरु–शास्त्रनुं लक्ष छूटी जाय छे.
आ रीते त्रण भूमिकानुं स्वरूप समजीने भूमिका अनुसार प्रवर्तवुं जोईए.