रंग तो लीलो ज रहे–केमके रंग अने रसगुण जुदा छे. (आ द्रष्टांत समजवुं.) तेम वस्तुमां दर्शनगुण खीले
छतां चारित्रगुण न खीले. परंतु एम तो न ज बने के चारित्रगुण खीले अने दर्शनगुण न खीले. ए खास
ध्यान राखवुं के सम्यग्दर्शन वगर कदी पण सम्यक्चारित्र होई ज न शके.
उत्तर:– गुणो स्वतंत्र छे ए वात खरी छे, परंतु श्रद्धा गुण करतां चारित्रगुण ऊंची जातनो छे, श्रद्धा
खील्या वगर चारित्रगुण खीली ज न शके. जेनामां श्रद्धागुण माटेनो अल्प पुरुषार्थ न होय तेनामां
चारित्रगुणनो घणो ज पुरुषार्थ तो क्यांथी होय? प्रथम सम्यक्श्रद्धा प्रगटवानो पुरुषार्थ कर्या पछी विशेष
पुरुषार्थ करतां चारित्रदशा प्रगटे छे. श्रद्धा करतां चारित्रनो पुरुषार्थ विशेष छे तेथी पहेलांं श्रद्धा थाय छे अने
पछी चारित्र थाय छे. माटे पहेलांं श्रद्धा प्रगट थाय अने पछी चारित्र खीले. श्रद्धा गुणनी क्षायिक श्रद्धारूप
पर्याय होवा छतां ज्ञान अने चारित्रमां अपूर्णता होय. आथी सिद्ध थाय छे के वस्तुमां अनंत गुणो छे अने ते
बधा स्वतंत्र छे; आ ज अन्यत्व भेद छे.
स्वामीत्व ऊडी गयुं छे अने ज्ञातापणानो अपूर्व निराकुळ संतोष वर्ते छे. केवळज्ञान थवा छतां अरिहंतप्रभुना
प्रदेशत्व गुणनी अने ऊर्ध्वगमनस्वभावनी निर्मळता नथी तेथी ज संसारमां छे; अघाति कर्मनी सत्ताने लीधे
प्रभुने संसार छे–एम नथी; अन्यत्व नामनो भेद होवाने लीधे हजी प्रदेशत्व वगेरे गुणनो विकार छे तेथी ज
संसारमां छे.
थवा छतां प्रदेशत्वसत्ता अने जोगसत्तामां विकार रहे छे तेनुं कारण ए छे के बधा गुणोमां अन्यत्व नामनो भेद
छे. पर्याये पर्यायनी सत्ता स्वतंत्र छे. आ गाथा द्रव्य–गुण–पर्यायनी स्वतंत्र सत्ताने जेम छे तेम बतावे छे. ज्ञेय
अधिकार छे तेथी दरेक पदार्थोनी अने गुणनी सत्तानी स्वतंत्रतानुं भान करावे छे. जो दरेक गुणसत्ता अने
पर्यायसत्तानी हैयातिने जेम छे तेम जाणे तो ज्ञान साचुं छे. निर्विकारी पर्याय के विकारी पर्याय ते पण स्वतंत्र
पर्यायना दोषना कारणे छे. दरेक द्रव्य–गुण–पर्यायसत्ता स्वतंत्र छे पछी कर्मसत्ता आत्मानी सत्तामां शुं करे? कर्म
अने आत्मा ए बंनेनी सत्तामां तो प्रदेशभेद ज छे; बे वस्तुओने तो सर्वथा पृथकत्व भेद छे.
भेदपणुं आ गाथा बतावे छे. प्रदेशभेद नथी माटे अभेद छे अने गुण–गुणी अपेक्षाए भेद छे.
प्रतीतिपूर्वक, हवे जे विकार थाय तेनो पण ज्ञाता ज रह्यो, एटले ते जीवने विकारना अने भवना नाशनी ज प्रतीति
थई गई. आ ज समजणनो अपूर्व लाभ छे. ज्ञेयअधिकारमां द्रव्य–गुण–पर्यायनुं वर्णन छे, दरेक गुण–पर्याय ज्ञेयरूप
छे एटले पोताना बधाय गुण–पर्यायनो अने अभेद द्रव्यनो ज्ञाता थई गयो, आ ज सम्यग्दर्शन धर्म छे.