Atmadharma magazine - Ank 035
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: भाद्रपद : २४७२ : आत्मधर्म : १९७ :
काळ=काळी पर्याय, राती
पर्याय, भारे, हलकी, वगेरे पोतानी
पर्याय समये समये थाय छे ते
तेनो स्वकाळ छे; परमाणुरूपे तेओ
अनादि अनंत टकनारां छे.
भाव=पोतामां अनंतगुणो
रहेलां छे ते तेनो स्वभाव छे.
दरेक द्रव्यना स्वचतुष्टय
बीजाथी तद्न जुदा होवाथी एक
द्रव्य बीजा द्रव्यमां कांई करी शकतुं
नथी.
३१. प्र. –श्री समयसार कोणे
रच्युं?
उ. –श्री कुंद कुंद आचार्य
भगवाने लगभग २००० वर्ष
पहेलांं श्री समयसारनी रचना
४१५ सूत्रोमां करी छे. तेओ महान
संत निर्ग्रंथमुनि हता.
३२. प्र. –ते शास्त्रनुं नाम
‘समय प्राभृत’ केम राख्युं?
उ. –समय प्राभृत एटले
समयसार रूपी भेटणुं. जेम राजाने
मळवा भेटणुं आपवुं पडे छे तेम
पोतानी परम उत्कृष्ट आत्मदशा
स्वरूप परमात्मदशा प्रगट करवा
समयसार–जे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्रस्वरूप आत्मा तेनी
परिणतिरूप भेटणुं आप्ये
परमात्मदशा–सिद्धदशा–प्रगट थाय
छे; तेनो उपाय आ शास्त्रमां
बताव्यो होवाथी तेने
‘समयप्राभृत’ कहेवाय छे.
वळी आ शास्त्रने ‘समयसार’
पण कहेवाय छे. समयसार एटले
शुद्धआत्मा. आत्माना शुद्ध स्वरूपने
बतावनार होवाथी आ शास्त्रने
‘समयसार’ कहेवाय छे.
३३. प्र. –समयसारनी प्रथम
टीका कोणे रची?
उ. –श्री अमृतचंद्राचार्य देवे
आजथी लगभग १००० वर्ष
पहेलांं समयसारनी ‘आत्मख्याति’
नामनी टीका ४००० श्लोक प्रमाण रची
छे.
३४. प्र. – ‘आत्मख्याति’ नो अर्थ
शुं?
उ. –आत्मख्याति एटले आत्मानी
प्रसिद्धि. आत्मानो जेवो शुद्ध स्वभाव
छे तेवो ज शुद्धपर्यायमां प्रगटी जाय
तेनुं नाम ‘आत्मख्याति’ छे. आ टीका
शुद्धात्मस्वभावने प्रसिद्ध करनारी
होवाथी तेनुं नाम ‘आत्मख्याति’ छे.
३५. प्र. –श्री अमृतचंद्रआचार्यदेव
पोताना आत्मानी परमशुद्धि क्यारे,
शा माटे, कोनी पासे अने कया लक्षे
मागे छे?
उ. –समयसारनी टीका करतां त्रीजा
कळशमां आचार्य देव कहे छे के आ
समयसारनी (शुद्धात्मानी अने
ग्रंथनी) व्याख्या करतां मारा
आत्मानी परम विशुद्धि थई जाओ.
जो के मारी अनुभूतिमां शुद्धता
प्रगटी छे तो पण हजी हुं साधक छुं
अने पूर्ण शुद्धता नथी, मारी परिणति
राग वडे निरंतर मलिन थई रही छे,
माटे ते टळीने मारी परिणतिमां परम
विशुद्धि प्रगटो–एम आचार्यदेव संपूर्ण
शुद्धदशानी मागणी करे छे.
आचार्य देवे पोतानी पूर्ण शुद्धता
कोई बीजा पासे मागी नथी परंतु
पोताना स्वभावमांथी ज पूर्ण शुद्धता
मागी छे. आ टीका करतां मारा ज्ञानमां
जे शुद्धात्मस्वभावनुं घोलन थशे ते
घोलनवडे ज मारी परमविशुद्धि प्रगटी
जशे–एम आचार्यदेव शुद्धात्मा तरफना
वलणना जोरथी कहे छे.
आचार्यदेवे विकारना लक्षे पूर्ण
शुद्धता नथी मागी परंतु कह्युं छे के–
‘द्रव्य–द्रष्टिथी हुं शुद्धचैतन्यमात्र मूर्ति
छुं’ ए रीते पोताना शुद्धचैतन्य मात्र
स्वभावना लक्षे आचार्यदेवे पूर्ण
शुद्धतानी भावना करी छे.
३६. प्र. –परम विशुद्धि एटले
शुं?
उ. –संपूर्ण केवळज्ञानमय,
रागरहित आत्मानी पवित्र दशा
ते परम विशुद्धि छे.
३७. प्र. –विशुद्धिनी शरूआत
क्यारे थाय?
उ. –द्रव्यकर्म, नोकर्म अने
भावकर्म रहित सर्व प्रकारे शुद्ध
एवा आत्मस्वभावनी समजण
करतां सम्यग्दर्शन प्रगटे छे,
त्यारथी विशुद्धिनी शरूआत थाय
छे, अने तेरमा गुणस्थाने ज्ञान
वगेरे गुणोनी पूर्ण शुद्धता उघडी
जवाथी त्यां ‘परमविशुद्धि’ थई
कहेवाय छे.
३८. प्र. –अनुभाव अने
अनुभाव्य एटले शुं?
उ. –जड कर्मोनी उदयरूप
अवस्था ते ‘अनुभाव’ छे; अने
आत्मामां पोतानुं स्वलक्ष चूकीने
जे रागादि विकारभाव थाय ते
‘अनुभाव्य’ छे.
३९. प्र. –पूर्वे सरस्वतीनी
मूर्ति नो अर्थ सम्यग्ज्ञान कर्यो
हतो, तेनां बीजां नामो कया छे?
उ. –सरस्वतीनी मूर्ति ज्ञानरूप
तथा वचनरूप छे तेथी तेनां नामो
वाणी, भारती, शारदा, वाग्देवी
(वचनोमां सर्वश्रेष्ट) वगेरे छे.
४०. प्र. –आत्मानी
बंधपर्यायने कोनुं निमित्त छे?
उ. –मोह नामना कर्मनुं.
४१. प्र. –कर्म तो आत्माने
कांई ज करतां नथी छतां
बंधपर्यायमां तेने केम निमित्त
कह्यां?
उ. –कर्म आत्माने कांई ज
करतां नथी ए वात साची छे.
परंतु