Atmadharma magazine - Ank 035
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: १९६ : आत्मधर्म : भाद्रपद : २४७२ :
उ. –बधी वस्तुओमां व्यवस्थित
पर्याय ज थाय छे. कोई वस्तुनी
पर्याय आडी अवळी थती ज नथी.
वस्तुनी पर्याय वस्तुना गुणोना ज
आधारे थाय छे, दरेक वस्तुमां
द्रव्यत्व नामनो गुण होवाथी ते
स्वयं परिणम्या करे छे; आ रीते
वस्तुनुं परिणमन थवाथी पर्याय
थाय छे. वस्तुनी पर्यायनो कोई
जुदो कर्ता नथी.
२४. प्र. –नारकी जीवोने क्षणमां
केवळज्ञान केम थतुं नथी? कोई
परवस्तु तो आत्माने रोकती नथी.
उ. –नारकी जीवोए पोतानो
पुरुषार्थ घणो ऊंधो कर्यो छे अने
तेओने विशेष राग टाळवानो
वर्तमान पुरुषार्थ नथी तेथी
सम्यग्दर्शन करतां आगळनी
भूमिका तेओने होती नथी.
२५. प्र. –साचो विवेक करनार
क्यो गुण छे?
उ. –आत्मानो ज्ञानगुण ज
साचो विवेक करनार छे.
२६. प्र. –बधा आत्मा
ज्ञानस्वरूप छे तो पछी जुदाजुदा
शी रीते टकी शके?
उ. –बधा आत्मा ज्ञानस्वरूपे
सरखा होवा छतां, तेमनामां
अगुरुलघु गुण होवाथी कोई
आत्मानुं ज्ञान बीजामां भळी जतुं
नथी. ज्ञान गमे तेटलुं वधी जाय
तोपण ते वधीने बीजा आत्मामां
भळी जाय नहि, अने गमे तेटलुं
घटी जाय तोपण तेनुं ज्ञानपणुं
मटीने तेमां जडपणुं न आवी जाय.
सिद्धनुं ज्ञान संपूर्ण विकास पाम्युं
होवा छतां ते सिद्धना आत्मानी
बहार फेलाई गयुं नथी, अने
निगोदनुं ज्ञान अत्यंत हीणुं थई
गयुं होवा छतां ते जडरूपे थई जतुं
नथी; एवो अगुरुलघु गुणनो
स्वभाव छे. (अगुरुलघु=मर्यादाथी
वधी न जाय अने मर्यादाथी घटी न
जाय.)
२७. प्र. – ‘चेतनपणुं’ कहेतां
आत्मामां अनंतधर्मो आवशे?
उ. –हा, केमके अनंत धर्मो ‘स्यात्’
पदथी एकधर्मीमां अविरोधपणे रहेला
छे एम सम्यग्ज्ञान देखे छे. आत्माने
चेतनस्वरूप कहेवाथी चेतन सिवायना
बीजा धर्मोनो आत्मामां अभाव न
समजवो परंतु ‘स्यात्’ पद वडे एम
समजवुं के आत्मामां चेतनपणुं पण छे
अने बीजा पण अनंतगुणो चेतनपणा
साथे ज रहेला छे. आ रीते स्याद्वाद
वडे यथार्थ समजतां ‘चेतनपणुं’ कहेतां
अनंत धर्मोवाळो आत्मा ख्यालमां
आवे छे.
२८. प्र. –आत्मा परने देखे परंतु
पोते पोताने कई रीते देखी शके? ते
स्पष्ट समजावो.
उ. –आत्मानो स्वभाव ज
जाणवानो छे तेथी ते स्वयं पोते
पोताने जाणी शके छे. ‘स्वानुभूत्या
चकासते’ एटले के आत्मा पोतानी
निर्मळ ज्ञानदशा वडे ज पोताना
स्वरूपने प्रकाशनारो (जाणनारो) छे.
आत्माने पोतानुं स्वरूप जाणवा माटे
कोई बीजानी मदद लेवी पडती नथी.
आत्माना ज्ञाननो स्वभाव पोताने
अने बधा परने जाणवानो छे.
वळी आत्मामां प्रमेयत्व गुण छे
तेथी ते पोते पोताना ज्ञाननुं ज्ञेय थई
शके छे. जो ज्ञान पोते पोताने न जाणे
अने परने ज जाणे तो परलक्षे राग
रह्या ज करे अने रागवाळुं ज्ञान पुरुं
जाणी शके नहि. परंतु ज्ञाननो स्वभाव
पोताना स्वलक्षे राग तोडवानो छे.
पोते पोतानी अनुभूति वडे पोताने
प्रकाशे छे अने पोता सिवायना अन्य
समस्त पदार्थोने पण जाणे छे.
२९. प्र. –आत्माना
स्वचतुष्टयनुं अने परचतुष्टयनुं
स्वरूप समजावो.
उ. –स्वचतुष्टय एटले पोताना
द्रव्य, क्षेत्र, काळ, भाव अने
परचतुष्टय एटले पोताथी भिन्न
वस्तुना द्रव्य, क्षेत्र, काळ, भाव.
आत्माना स्वचतुष्टय आ प्रमाणे
छे–
स्वद्रव्य=सर्व पर द्रव्योना
संगथी अने परभावथी रहित
एकरूप आत्मा वस्तु ते स्वद्रव्य
छे.
स्वक्षेत्र= पोतानी अवगाहना
प्रमाणे असंख्य प्रदेशो ते आत्मानुं
स्वक्षेत्र छे.
स्वकाळ=उत्पत्ति रहित,
विनाश रहित, अनादि अनंत
टकीने पोतानी स्वपर्यायमां
परिणमवुं ते आत्मानो स्वकाळ छे.
स्वभाव=राग–द्वेष–अज्ञान
रहित शुद्धचैतन्य स्वरूप मात्र
निर्विकल्प ज्ञाता–द्रष्टा ते आत्मानो
स्व भाव छे. आ सिवाय बीजुं
बधुं आत्मानी अपेक्षाए
परचतुष्टय छे. दरेक वस्तुमां
पोतपोताना स्वचतुष्टय होय छे.
३०. प्र. –जड वस्तुमां
स्वचतुष्टय कई रीते होय?
उ. –जड परमाणुओमां पण
तेना जड स्वचतुष्टय होय छे ते
आ प्रमाणे–
द्रव्य=वर्ण, गंध वगेरे गुण–
पर्यायोनो पिंड ते तेनुं स्वद्रव्य छे.
क्षेत्र= पोताना प्रदेशत्वगुणनी
पर्यायथी अमुक आकारमां तेओ
रहेलां छे, तेनो आकार ते तेनुं
स्वक्षेत्र.
(पोताना एक प्रदेश रूप
स्वक्षेत्र.)