Atmadharma magazine - Ank 035
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: भाद्रपद : २४७२ : आत्मधर्म : १९५ :
१२. प्र. –अहीं अशुद्धपणाने
पण आत्मानो धर्म कह्यो छे–ते कई
अपेक्षाए?
उ. –सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र–
एवा अर्थमां अहीं ‘धर्म’ नथी
कह्यो परंतु वस्तुना गुण–पर्यायोने
वस्तुनो धर्म कह्यो छे. आत्माना
गुण–पर्यायो ते आत्मानो धर्म छे.
अशुद्धपणुं ते पण आत्मद्रव्यनी
पर्याय होवाथी अशुद्धपणाने पण
आत्मानो धर्म कह्यो छे. अशुद्धता
पण आत्मानी पर्यायमां पोते करे
छे, स्वभावमां अशुद्धता नथी;
पर्यायमां अशुद्धता क्षणिक छे, द्रव्य
त्रिकाळ शुद्ध छे एम जो शुद्धता
अने अशुद्धतानुं स्वरूप समजे तो
शुद्धद्रव्यना लक्षे पर्यायनी अशुद्धता
टाळे.... एटले सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्ररूप धर्म प्रगटे.
१३. प्र. –वचन अगोचर धर्मो
(गुणो) कोने होय? ज्ञानीने के
अज्ञानीने?
उ. –गुणो तो बधाय आत्मामां
सरखां ज छे. जेटला सिद्ध
भगवानना आत्मामां गुणो छे
तेटला ज गुणो दरेक आत्मामां छे.
वचन अगोचर अनंतगुणो बधा
आत्मामां सरखां छे.
१४. प्र. –अनेकान्त एटले शुं?
उ. –अनेक+अंत. अनेक=घणा;
अंत=धर्म. अनेकान्त एटले घणा
धर्मो. दरेक वस्तु अनेकान्त स्वरूपे
होवाथी दरेक वस्तुमां अनंत धर्मो
रहेला छे.
१५. प्र. –आत्मामां केटला धर्मो
हशे?
उ. –आत्मा पण वस्तु छे तेथी
तेमां पोताना अनंत धर्मो रहेलां छे.
१६. प्र. –आत्मा आंखेथी देखातो
नथी तेमज हाथमां पकडी शकातो नथी
छतां तेने वस्तु केम कहेवाय?
उ. –आत्मा अरूपी होवाथी
तेनामां स्पर्श, रंग, गंध वगेरे नथी
तेथी ते आंखेथी जणातो नथी अने
हाथथी पकडातो नथी. छतां तेनामां
पोताना ज्ञानादि अनंतगुणो रहेला छे
तेथी ते पण अनंत धर्मोवाळी वस्तु छे
अने ज्ञानथी ते जाणी शकाय छे.
१७. प्र. –आत्मानो धर्म त्रणे काळे
एक ज प्रकारनो छे एम ज्ञानीओ कहे
छे छतां अहीं आत्माने
अनंतधर्मोवाळो केम कह्यो?
उ. –अहीं मोक्षमार्गरूप धर्मनी वात
नथी परंतु वस्तुमां रहेला गुण–पर्यायोने
तेमज अपेक्षित भावोने ‘धर्म’ कहेल छे,
तेवा अनंत धर्मो दरेक वस्तुमां छे; आ
मोक्षमार्गरूप धर्म नथी केमके आ धर्मो
तो जड वस्तुमां पण लागु पडे छे.
सम्यग्दर्शनादि धर्म मोक्षमार्गरूप छे, ते
त्रणे काळे एक ज प्रकारनो छे.
१८. प्र. –जड वस्तुमां तो ज्ञान
नथी; तो ज्ञान वगर तेनामां धर्म कई
रीते होय?
उ. –जड वस्तुमां ज्ञान नथी तो पण
जड वस्तुमां पोताना जडरूप
अनंतधर्मो रहेलां छे, ज्ञान नथी तेथी
तेनामां मोक्षमार्गरूप धर्म नथी, परंतु
अस्तित्व, द्रव्यत्व, अरूपीपणुं, रूपीपणुं
वगेरे अनंत धर्मो जडवस्तुमां रहेलां
छे. अनंत धर्मो वगरनी कोई पण
वस्तु होई ज न शके.
१९. प्र. –आत्मामां पण अनंत
धर्मो छे अने जडमां पण अनंत धर्मो
छे तो आत्माने जडथी जुदो कई रीते
ओळखाय?
उ. –आत्माना अनंतधर्मोमां
चेतनपणुं असाधारणधर्म छे, ते
चेतनपणुं अन्य द्रव्योमां नथी तेथी
चेतन लक्षण वडे आत्मा अन्य द्रव्यथी
भिन्नपणे ओळखाय छे. वळी, अनंत
आत्माओ छे ते दरेकनुं चेतनपणुं जुदुं
जुदुं छे तेथी अन्य आत्माओथी पण
पोतानो आत्मा जुदो छे एम
अनुभवाय छे.
२०. प्र. –तमे सरस्वतीनी मूर्तिने
नमस्कार करो के नहि? शा माटे?
उ. – ‘सरस्वतीनी मूर्ति’ नुं
साचुं स्वरूप ओळखीने तेने
नमस्कार करीए; अनंत धर्मोवाळा
आत्म तत्त्वने जोनारूं सम्यग्ज्ञान ए
ज सरस्वतीनी मूर्ति छे. तेमां
केवळज्ञान अनंतधर्मोवाळां
आत्माने प्रत्यक्ष देखे छे तेथी ते
साक्षात् सरस्वतीनी मूर्ति छे, अने
श्रुतज्ञान परोक्ष देखे छे तेथी ते पण
सरस्वतीनी मूर्ति छे. वळी
द्रव्यश्रुतरूप वाणी पण आत्माना
अनंतधर्मोने देखाडनारी छे तेथी ते
पण सरस्वतीनी मूर्ति छे. आ रीते
सम्यग्ज्ञानरूपी सरस्वतीनी मूर्तिथी
सर्व जीवोनुं कल्याण थाय छे माटे
तेने नमस्कार करवा योग्य छे. श्री
अमृतचंद्राचार्यदेव आशीर्वाद आपे
छे के ‘आवी सरस्वतीनी मूर्ति
सदाय प्रकाशरूप रहो! ’ लोकोमां जे
सरस्वती मनाय छे ते सत्यार्थ नथी.
२१. प्र. –सरस्वतीने नमस्कार
करवा एटले शुं?
उ. –सरस्वती एटले
सम्यग्ज्ञान. ते सम्यग्ज्ञान
आत्माना स्वरूपने जे रीते देखे छे
ते रीते आत्माना स्वरूपनी
ओळखाण करवी एटले के पोतामां
सम्यग्ज्ञान प्रगट करीने आत्माना
तत्त्वनुं अवलोकन करवुं ते ज
सरस्वतीने भाव नमस्कार छे.
२२. प्र. –आत्मामां सविकल्प
गुण क्यो अने तेनुं स्वरूप शुं?
उ. –आत्मामां एक ज्ञानगुण ज
सविकल्प छे. ‘सविकल्प’ नो अर्थ
‘रागरूप विकल्प सहित’ एम न
समजवो, परंतु पोताने अने परने
रागरहित जाणनारुं ज्ञान ज छे,
माटे ते ‘सविकल्प’ छे, ज्ञान
सिवायना बीजा गुणो छे तेओ
स्व–परने जाणनारां नथी माटे ते
‘निर्विकल्प’ कहेवाय छे.
२३. प्र. –व्यवस्थित पर्याय शेमां
कोना आधारे अने शाथी थाय छे?