आत्मानो स्वभाव नथी पण
विभाव छे अने विभावभाव
स्वलक्षे न थाय पण परलक्षे ज
आत्मानुं स्वरूप नथी पण पर लक्षे
थतो विभाव छे एम ज्ञान कराववा
माटे तेमां कर्मने निमित्त कहेवामां
आवे छे.
प्रदेशत्व, अगुरुलघुत्व वगेरे
आत्माना अनंत धर्मो छे. अनंत
परद्रव्यो छे ते दरेकथी पोतानुं
जुदापणुं टकावी राखवारूप अनंत
अन्यत्व धर्म आत्मामां छे.
उ. –वस्तुना गुणोनुं त्रणेकाळे
नथी?
तेथी जे समये एक पर्यायनो नाश
थाय छे ते ज समये गुण बीजा
रीते पर्याय बदलाया ज करे छे
छतां गुण तो बधा पर्यायोमां
कायम टकी रहे छे.
छे?
छे, परंतु सिद्धभगवानने पर्यायमां
हजी पर्यायमां अशुद्धता छे; पर्याय
अपेक्षाए फेर छे.
केवो स्वीकारे छे?
अने पर्यायद्रष्टिथी, मारी पर्यायमां
अंशे शुद्धता प्रगटी होवा छतां हजी
निरंतर मलिन थई रही छे–एम जाणे
छे; अने द्रव्यद्रष्टिना जोरे ते अशुद्धता
टाळवा मागे छे.
जेने रुचि होय तेने ते नमस्कार करे.
नमस्कार एटले अंतरथी आदरसत्कार,
ते तरफनुं वलण. जेने नमस्कार करवा
होय तेनुं साचुं स्वरूप समज्या वगर
साचा नमस्कार थई शके नहि. अहीं
नमस्कार कर्या छे. जेणे शुद्धात्मानुं
स्वरूप ओळखीने तेने नमस्कार कर्या
ते हवे विकारीभाव पुण्य पाप वगेरेनो
आदर न करे. नमस्कार करतां पोताना
शुद्धात्मस्वरूपने लक्षमां लीधुं ते ज
प्रथम नमस्कार छे. अनादिथी विकारनो
आदर करतो हवे स्वभावनो आदर
ज भोगवतो हतो; हवे पोताना
शुद्धात्मस्वभावने लक्षमां लईने तेनो
आदर कर्यो अने विकारनो आदर
टाळ्यो, तेनी अशुद्धतानो अंशे नाश
मंगळिकस्वरूप छे. पहेलांं मिथ्याश्रद्धाने
हतो, हवे साची समजण वडे ते
ऊंधी श्रद्धा टाळीने मोक्षमार्ग तरफ
वलण कर्युं ते ज महामंगळ छे.
कह्युं छे?
थतो नथी, परंतु विकार ते
आत्मानो स्वभाव नथी;
स्वभावमां विकार नथी तेथी
विकारथी आत्माने कथंचित् भिन्न
भिन्न छे परंतु विकारथी कथंचित्
भिन्न छे एटले के स्वभाव
अपेक्षाए विकारथी भिन्न छे अने
पर्याय अपेक्षाए विकार आत्मामां
थाय छे.
छे?
द्रव्यो छे एटले के जाती अपेक्षाए
तेओ सरखां छे; अने बीजां जे
अजीव द्रव्यो छे ते बधाय
विजातीय छे एटले के आत्माथी
विरुद्ध लक्षणवाळां–जड छे.
अने साधु ए त्रण गुरु छे.
परम आत्म स्वरूपमां तेओ स्थित