Atmadharma magazine - Ank 035
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: भाद्रपद : २४७२ : आत्मधर्म : २०१ :
भगवाने धर्मनुं मूळ सम्यग्दर्शन कह्युं छे, तेथी वर्षीतपथी के रूपिया खरचवाथी धर्म थाय नहि, तेमज
लूगडां साथे के संयोग साथे धर्मनो संबंध नथी, सम्यग्दर्शनरूपी एकडो होय तो धर्म छे.
१३. जैनमतमां पण मतमतांतर लागे तो सत्यनो निर्णय करवो जोईए. जे सत्यमार्गनुं स्वरूप न
समजे तेने मतमतांतर लागे छे परंतु खरी रीते जैनमां मत–मतांतर नथी. सनातन जैनदर्शन सिवाय बीजा जे
कल्पित मतो पोताने जैन माने छे ते खरेखर जैन मत छे ज नहि पण वस्तुस्वरूप समज्या वगरना वाडा छे.
१४. कोईने एम थाय के, आवुं जाहेर करवाथी कलेश थशे? तो तेम नथी; आ सत्य छे, सत्यने
समजवाथी कलेश थायज नहि, पण कलेश टळी जाय. अने जेओ सत्यनो विरोध करे छे तेओ तो सदाय
कलेशमां ज पड्यां छे. माटे परम सत्यनी जाहेरातथी कोईने नुकशान थाय ज नहि.
१५. –तेथी आचार्यदेव प्रेरणा करे छे के, हे सकर्णा भव्य जीवो! जो तमने आत्मानी ओळखाण होय तो
‘धर्मनुं मूळ दर्शन छे’ एम स्वकर्णथी सांभळ्‌या पछी धर्मरहित पुरुषने वंदन करशो नहि, धर्मरहित जीवो
वंदनीक नथी. जेओ आ समजे छे तेने ज अमे कानवाळा कहीए छीए, परंतु जेओ आ समजे नहि अने
अज्ञानी, कुलिंगी, दर्शनरहितने जे वंदनादि करे छे तेने अमे कानवाळा ज कहेता नथी. जे कानद्वारा धर्मनुं स्वरूप
सांभळीने समज्यो नहि तेने अमे कान कहेता नथी. एवा जीवो कान वगरना छे, मिथ्यात्वनो आदर करीने
अल्पकाळे तेओ एवी एकेन्द्रियादि दशामां जशे के ज्यां कान नथी. माटे हे श्रोता सत्पुरुषो! तमे धर्मनुं अने
धर्मात्मानुं स्वरूप ओळखीने तेनो ज आदर करो.
१६. सम्यग्दर्शन आ जगतमां सर्वश्रेष्ट कल्याणकारी चीज छे. सम्यग्दर्शननो अपूर्व महिमा छे, तेनो
निश्चय ज जगतने कठण छे. अनंत काळथी ऊंधी मान्यतामां ज रखडे छे, बहारनी वात सहेली माने छे, परंतु
आत्माना धर्म माटे बहारनी क्रियानी वात ज नथी, आत्मा कोण, तेनी ओळखाण ज करवी जोईए.
१७. अहा, आ वात सांभळीने कया जीवने उत्साह न जागे. प्रद्युम्न कुमारने जोईने तेनी साची जनेता
रुकिमणीने स्तनमां दूध उभराणां तेम साचा जिज्ञासु जीवोने पोताना सम्यग्दर्शननी वात सांभळतां रुंवाटे रुंवाटे
(–प्रदेशे प्रदेशे) उत्साह चडे अने यथार्थ निर्णय करीने ते सत्य निर्णयना जोरे केवळज्ञान सन्मुख पुरुषार्थ करे.
१८. दर्शनहित जीवोने वंदन न करवाथी नम्रता गुणनो लोप जरा पण थतो नथी. परंतु तेमां ज धर्मनो
साचो विनय रहे छे. दर्शनरहित अधर्मीओने वंदन करवुं ते धर्मात्माओनो अनादर छे एटले के पोताना ज
धर्मनो अनादर छे.
१९. मिथ्यात्वनुं अने मिथ्यात्वनी अनुमोदनानुं पाप आ जगतमां सौथी मोटुं छे.
२०. बार वर्षनो छोकरो पोताना बापने पगे लागे, परंतु ८० वर्षना मोटा भंगीने पण पगे न लागे
अने मोटा अमलदारने पण पगे न लागे तो तेथी सामा जीवोने पण अविनय लागतो नथी अने छोकरो पोते
पण तेमां अविनय समजतो नथी. तेम कोई जीवे अज्ञानदशामां अणसमजणथी कुदेव–कुगुरुने वंदन कर्या होय
परंतु साची समजण थया पछी, पोते बार वर्षनो होय तोपण, मिथ्याद्रष्टि कुलिंगधारी कुगुरुओने के कुदेवने
वंदनादि न करे तेथी तेमां अविनय समजतो नथी. तेमज अन्य समजदार जीवो पण तेने अविनयी समजता
नथी. आ कोई व्यक्तिना तिरस्कार माटे नथी, परंतु आ तो सत्नो विवेक छे. सत्नो विवेक कर्या वगर
संसारथी निवेडो थाय तेम नथी.
जेओ गुणमां मोटा होय तेओ ज गुणबुद्धिए वंदनीक छे अने तेओ ज गुणना निमित्त छे. मिथ्याद्रष्टि
जीवो गुणरहित छे, तेने गुणमां मोटा मानीने जे वंदन करे ते मिथ्याद्रष्टि छे. शरीरमां नाना मोटापणुं तेनी
साथे धर्मनो संबंध नथी.
२१. आ जड शरीरनी बुद्धि काढी नाखो तो अंदर ज्ञानस्वरूप अरूपी आत्मा बधाय सरखां छे अने
बधाय समजवाने लायक छे. बधा आत्मा अनादि अनंत छे, जे आत्मानी समजण करे ते मोटो अने जे
आत्मानी समजण न करे ते ज नानो छे.
२२. अज्ञानी कुगुरुओ एवो उपदेश आपे छे के तमने अत्यारे आत्मा न समजाय, माटे तमारे अत्यारे
व्रतादि करवा! आ रीते आत्मानी समजणनो न नकार करे छे. जो आत्मा न समजाय तो संसार तो अनादिनो