Atmadharma magazine - Ank 035
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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: १९२ : आत्मधर्म : भाद्रपद : २४७२ :
(श्री समयसार, मोक्ष अधिकार
गा. २९६. ना व्याख्यानमांथी)

सुखनो के दुःखनो अनुभव आत्माने थाय छे, पण लाकडुं वगेरे जड वस्तुओने सुख दुःख थतुं नथी. जे
परवस्तुओ सुख–दुःखरूपे न थाय ते वस्तुओ आत्माने सुख–दुःखनुं कारण नथी. दुःख के सुखनो अनुभव
आत्मानी दशामां थाय छे तेथी ते दुःख सुखनुं कारण आत्मा ज छे. दुःखदशानुं कारण आत्मानी पर्यायमांजे
मिथ्यात्वभाव अने राग द्वेष थाय छे ते ज छे, अने सुखनुं कारण साचुं ज्ञान अने वीतरागभाव ज छे. कोई माथुं
कापे के चंदन चोपडे–ते दुःख–सुखनुं कारण नथी, केमके सुख–दुःखरूपे थनार जड शरीर नथी पण आत्मा छे.
दुःखपणे अने सुखपणे थनार आत्मानुं स्वरूप जाण्या वगर दुःख टळीने सुख कई रीते थाय? जे द्रव्यनी
एक अवस्था दुःखरूप थाय छे ते आखुं द्रव्य शुं दुःखरूप छे, के दुःख तेनुं स्वरूप छे, के ते दुःख टळीने सुखरूप थई
शके छे? दुःख तो क्षणिक विकारी पर्याय छे, आखुं द्रव्य दुःखरूपे थई जतुं नथी, पण क्षणिक एक पर्यायमां दुःख छे.
जो ते एक पर्यायनी अपेक्षा छोडीने त्रिकाळी द्रव्यनी अपेक्षाथी जोवामां आवे तो द्रव्यनो स्वभाव त्रिकाळी
सुखरूप ज छे, दुःख तेनुं स्वरूप नथी, तेथी द्रव्यस्वभावनी ओळखाण वडे दुःख दशा टाळीने सुखदशा प्रगट करी
शकाय छे. परंतु जो आत्माना त्रिकाळ सुखस्वभावने न ओळखे अने पर पदार्थोथी सुख माने तो तेनी दुःखदशा
टळे नहि अने सुखदशा प्रगटे नहि. सुखदशा स्वभावमांथी प्रगटे छे पण पर द्रव्यमांथी प्रगटती नथी.
सुख–दुःख ते आत्मानी अवस्था छे तेथी जेवी अवस्था आत्मा पोते धारण करे तेवी अवस्था धारण
करीने बीजी दशाने पलटावी शके छे. शरीर जड छे, तेमां सुख–दुःखनी अवस्था नथी तेथी शरीर वगेरेनी कोई
पण हालत साथे आत्माना सुख–दुःखनो संबंध नथी.
पर वस्तुमां सुख–दुःख नथी पण आत्मानी ज पर्यायमां सुख छे–एटलुं नक्की कर्या पछी, दुःख टाळीने
सुख प्रगट करवा माटे शुं करवुं? –के पोताना सुख माटे हवे पर द्रव्यो प्रत्ये जोवानुं न रह्युं; पण पोतामां ज
जोवानुं रह्युं. पोतामां पण द्रव्य अने पर्याय एवा बे पडखां छे, तेमां वर्तमान चालती पर्याय तो पोते दुःखरूप
छे तेथी ते पर्यायना आधारे के लक्षे सुख प्रगटी शके नहि, परंतु ज्यां परिपूर्ण सुख होय अने दुःख न होय एवुं
जे सुखस्वरूप द्रव्य तेना ज आधारे–लक्षे सुखदशा प्रगटे छे अने दुःखदशा टळे छे. वर्तमान पर्यायनुं लक्ष पर
उपर जाय छे तेथी ते पर्यायमां दुःख छे, पर उपरनुं लक्ष छोडीने जो स्वलक्षमां पर्यायने वाळे तो ते पर्यायमां
सुख प्रगटे छे. माटे–
स्वाधीन ज्ञान वडे अर्थात् प्रज्ञा वडे शुद्ध आत्मा अने दुःखदायकदशा (–बंधभाव) ए बंनेना
भिन्नभिन्न लक्षणने ओळखवा अने अभिप्रायना जोरे शद्धात्मस्वभावनुं अवलंबन करीने बंधभावनुं
अवलंबन छेदवुं–ते ज सुखनो उपाय छे. संपूर्णसुख ते ज मोक्ष छे.
प्रश्न:– पुण्य–पापना बंधभावमां दुःख होवा छतां अज्ञानीने शा माटे दुःख नथी लागतुं?
उत्तर–केम के अनादिथी पुण्य–पापथी जुदा आत्मस्वभावने जाण्यो नथी, मान्यो नथी, रुचिमां लीधो
नथी अने पुण्य–पाप ते ज हुं एम मान्युं छे तेथी ते पुण्य–पापना दुःखरूप भावोमां ज सुख कल्पी रह्यो छे.
पुण्य–पापनुं पडखुं ज अनादिथी अनुभव्युं छे पण पुण्य–पाप रहित स्वभावने कदी अनुभव्यो नथी, तेथी
अनाकुळ सुखना स्वरूपनी खबर नथी एटले मंद दुःखरूप भावोमां सुखनी मान्यता करी लीधी छे. जो पुण्य–
पापरहित स्वभाव ख्यालमां ले तो पुण्य–पापने दुःख तरीके जाणे, अने ते टाळवा प्रयत्न करे.
अज्ञानी जीवने निरंतरपणे आकुळताजन्य नवी नवी ईच्छा थया करे छे, जो दुःख न होय तो आकुळता
केम होय? आकुळता छे ते ज दुःख छे. हवे ते दुःखनुं शुं कारण छे? –ते जाणीने ते कारणने दूर करवाथी दुःख दूर
थाय छे, पण दुःखना मूळ कारणने जाण्या वगर अन्य उपायो कर्यां करे तेथी दुःख टळतुं नथी. शुं मारा दुःखनुं
कारण शरीर, कर्म के संयोग छे, के अंतरनो कोई ऊंधो भाव दुःखनुं कारण छे? प्रथम तो शरीर कर्म वगेरे
वस्तुओ जड छे, तेओ सुख–दुःखरूप थती नथी, जे वस्तु स्वयं सुख–दुःखरूप न थाय ते सुख–दुःखनुं वास्तविक
कारण पण न