सुखनो के दुःखनो अनुभव आत्माने थाय छे, पण लाकडुं वगेरे जड वस्तुओने सुख दुःख थतुं नथी. जे
आत्मानी दशामां थाय छे तेथी ते दुःख सुखनुं कारण आत्मा ज छे. दुःखदशानुं कारण आत्मानी पर्यायमांजे
मिथ्यात्वभाव अने राग द्वेष थाय छे ते ज छे, अने सुखनुं कारण साचुं ज्ञान अने वीतरागभाव ज छे. कोई माथुं
कापे के चंदन चोपडे–ते दुःख–सुखनुं कारण नथी, केमके सुख–दुःखरूपे थनार जड शरीर नथी पण आत्मा छे.
शके छे? दुःख तो क्षणिक विकारी पर्याय छे, आखुं द्रव्य दुःखरूपे थई जतुं नथी, पण क्षणिक एक पर्यायमां दुःख छे.
जो ते एक पर्यायनी अपेक्षा छोडीने त्रिकाळी द्रव्यनी अपेक्षाथी जोवामां आवे तो द्रव्यनो स्वभाव त्रिकाळी
सुखरूप ज छे, दुःख तेनुं स्वरूप नथी, तेथी द्रव्यस्वभावनी ओळखाण वडे दुःख दशा टाळीने सुखदशा प्रगट करी
शकाय छे. परंतु जो आत्माना त्रिकाळ सुखस्वभावने न ओळखे अने पर पदार्थोथी सुख माने तो तेनी दुःखदशा
टळे नहि अने सुखदशा प्रगटे नहि. सुखदशा स्वभावमांथी प्रगटे छे पण पर द्रव्यमांथी प्रगटती नथी.
पण हालत साथे आत्माना सुख–दुःखनो संबंध नथी.
जोवानुं रह्युं. पोतामां पण द्रव्य अने पर्याय एवा बे पडखां छे, तेमां वर्तमान चालती पर्याय तो पोते दुःखरूप
छे तेथी ते पर्यायना आधारे के लक्षे सुख प्रगटी शके नहि, परंतु ज्यां परिपूर्ण सुख होय अने दुःख न होय एवुं
जे सुखस्वरूप द्रव्य तेना ज आधारे–लक्षे सुखदशा प्रगटे छे अने दुःखदशा टळे छे. वर्तमान पर्यायनुं लक्ष पर
उपर जाय छे तेथी ते पर्यायमां दुःख छे, पर उपरनुं लक्ष छोडीने जो स्वलक्षमां पर्यायने वाळे तो ते पर्यायमां
सुख प्रगटे छे. माटे–
अवलंबन छेदवुं–ते ज सुखनो उपाय छे. संपूर्णसुख ते ज मोक्ष छे.
उत्तर–केम के अनादिथी पुण्य–पापथी जुदा आत्मस्वभावने जाण्यो नथी, मान्यो नथी, रुचिमां लीधो
पुण्य–पापनुं पडखुं ज अनादिथी अनुभव्युं छे पण पुण्य–पाप रहित स्वभावने कदी अनुभव्यो नथी, तेथी
अनाकुळ सुखना स्वरूपनी खबर नथी एटले मंद दुःखरूप भावोमां सुखनी मान्यता करी लीधी छे. जो पुण्य–
पापरहित स्वभाव ख्यालमां ले तो पुण्य–पापने दुःख तरीके जाणे, अने ते टाळवा प्रयत्न करे.
थाय छे, पण दुःखना मूळ कारणने जाण्या वगर अन्य उपायो कर्यां करे तेथी दुःख टळतुं नथी. शुं मारा दुःखनुं
कारण शरीर, कर्म के संयोग छे, के अंतरनो कोई ऊंधो भाव दुःखनुं कारण छे? प्रथम तो शरीर कर्म वगेरे
वस्तुओ जड छे, तेओ सुख–दुःखरूप थती नथी, जे वस्तु स्वयं सुख–दुःखरूप न थाय ते सुख–दुःखनुं वास्तविक
कारण पण न