: २२० : आत्मधर्म आसो : २४७२
पण करवाना नथी. तारी पासे जगतनां बधां पद तुच्छ तरणां समान छे.
७. –पद्मनंदी पंचविंशतिका–
आ पद्मनंदी शास्त्रना कर्ता श्री पद्मनंदी आचार्य महा संत मुनि हता. अध्यात्मना अलंकारोथी बहु सुंदर
रचना करी छे. आ पद्मनंदी पंचविंशतिका सत्श्रुत छे अने ईन्द्रियनिग्रहना अभ्यास पूर्वक ए सत्श्रुत सेववा
योग्य छे, एनुं फळ अलौकिक छे–अमृत छे; एम श्रीमद् राजचंद्रजीए जणाव्युं छे.
८. –स्वतंत्रता–
जे निष्कारण होय अर्थात् जे भाव पर कारणनी अपेक्षा न राखे ते पारिणामिकभाव छे. क्रोधादि
कषायभाव पण पारिणामिक भावे छे केमके ते भाव परकारणनी अपेक्षा नहि राखता होवाथी निष्कारण छे.
क्रोधादि बधा भावो स्वतंत्र अकारणीय छे तेथी खरेखर ते बधा भावो पारिणामिकभावे छे. कषाय
पारिणामिकभावे छे केमके ते जीवनी पोतानी योग्यताथी थाय छे, तेनुं कारण कोई पर नथी. माटे स्वनी अपेक्षा
लईने कहेतां ते निष्कारण छे तेथी पारिणामिक छे. अने ज्यारे पर निमित्तनी अपेक्षा लईने कहीए त्यारे
व्यवहारे कर्मना उदयने तेनुं कारण गणीने तेने उदयभाव कहेवाय छे, पण खरी रीते तो ते जीवनी पर्यायनी ते
समयनी स्वतंत्र लायकातथी ज ते भाव थयो छे.
दरेके दरेक समयनी पर्याय स्वतंत्र–निष्कारण छे एम प्रतीत कर्या पछी, विकार वखते निमित्तनी
हाजरीनुं ज्ञान कराववा माटे उदयादिभावो जणाव्या छे. क्रोध जीवनी योग्यताथी थाय छे तेथी क्रोधादिभाव ते
पारिणामिकभावनो विकार छे, माटे तेने पारिणामिकभाव कहेवामां आवे छे.
‘क्रोध जीवनो त्रिकाळी स्वभाव छे’ एम अहीं जणाव्युं नथी, परंतु क्रोध कोई परना कारणे थतो नथी,
जीवनी पोतानी लायकातथी थाय छे एम बताववा तेने पारिणामिकभाव कह्यो छे. आवी पर्यायनी पण
स्वतंत्रता जे समजे तेने पोतानुं पराश्रित वलण टळी जईने स्वाश्रित वलण थाय छे एटले स्वाश्रित
द्रव्यद्रष्टिना जोरमां तेनो संसार उडी गयो.
९. –समजवा माटे वारंवार अभ्यास करवो. –
अप्रतिबुद्ध शिष्यने ज्ञानप्राप्ति माटे शास्त्रमां एक ने एक वात सो वार कहेवी पडे तो पण पुनरोकितदोष
नथी. एम श्रीधवलशास्त्र (पुस्तक ३ ता. ११४) मां कह्युं छे. जे जीवने आत्मानी रुचि होय तेणे
आत्मस्वभावनो उपदेश वारंवार श्रवण करवो जोईए; पण तेना अभ्यासमां कंटाळो लाववो न जोईए.
१०. –धर्म समजवो सहेलो छे. –
प्रश्न:– आत्मानी ओळखाणथी ज धर्म थाय छे एम आप समजावो छो, पण ते धर्म तो कठण लागे छे?
उत्तर:– कठण नथी. जेमां कोई पण परनी जरूर न पडे अने एकला पोताथी ज जे थई शके ते कठण केम
कहेवाय? आत्मानी साची ओळखाण करवा माटे शरीर, मन, वाणी, धन, कुटुंब के पुण्य–ए कोईनी अपेक्षा
नथी; एकला पोताथी ज थई शके छे माटे आ ज करवुं सहेलुं छे. आत्मा ज्ञान के अज्ञान सिवाय बीजुं कांई
करी शकतो नथी. जेने पोताना आत्मानी दरकार नथी तेने आत्मानी ओळखाण करवी अघरी लागे छे.
धर्म करवो आत्माने, अने आत्मा कोण ते जाणवुं नहि–ए धर्म क्यांथी थाय! शरीर सुकावाथी तेमांथी
कांई धर्म नीकळतो नथी.
११. –आत्माना अवयव–
प्रश्न:– आत्माने अवयव होय के नहि?
उत्तर:– हा, आत्माना असंख्य प्रदेश छे ते दरेक आत्माना अवयव छे.
प्रश्न:– एक आत्मामां अवयव कहेवाथी तेना खंड नहि पडी जाय?
उत्तर:– अवयव होवा छतां वस्तुपणे आत्मा अभेद छे. जो प्रदेशोरूप अवयव न ज होय तो संकोच
विस्तार थई शके नहि; बधा अवयवोनो धारण करनार अवयवी एक ज छे.
१२. –शुद्धात्मानी समजण–
आत्मा पोते आनंदकंद चैतन्यरूप छे, तेने नहि ओळखनार अज्ञानी तो पुण्यभावमां ज आत्माने वेची
दे छे–पुण्य जेटलो ज आत्मा माने छे. जेने शरीरना भोग–विषय सारां लागे अने तेमां जे सुख माने तेना
भाव तो दुर्गतिनुं ज कारण छे; पण दया–व्रतादिना शुभराग जेटलो ज आत्मा मानी ल्ये अने तेमां सुख कल्पे
तेणे पण आत्माने विकारीपणे मान्यो छे, तेनी मान्यता पण संसार दुःखनुं ज कारण छे. भाई, आत्माना
साचा स्वरूपनी ओळखाण वगर पुण्य–पाप करीने अनंत जन्म–मरणमां दुःखी थयो पण ते रणमां