Atmadharma magazine - Ank 036
(Year 3 - Vir Nirvana Samvat 2472, A.D. 1946)
(Devanagari transliteration).

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आसो : २४७२ आत्मधर्म : २२३ :
टळे छे. अने पछी विशेष एकता करतां चारित्र संबंधी विकल्प पण टळे छे. आ रीते शरूआतथी पूर्णता सुधी
स्वभावनी एकतानो ज मार्ग छे.
अज्ञानी नवतत्त्वना विचार करतां रागमां एकता करे छे, पुण्य जेटलो ज आत्मा माने के मोक्षपर्याय
जेटलो आत्मा माने ते पर्यायद्रष्टि छे अने तेमां आखा आत्मानो स्वीकार नथी. ज्ञानीने नव तत्त्वना विकल्प
छूटीने स्वभावनी अंशे एकता प्रगटी अर्थात् सम्यग्दर्शन प्रगट्युं, पछी विकल्प ऊठतां पुण्यादि तत्त्वोनुं ज्ञान
करे छे, परंतु तेमां एकता करता नथी एटले के पुण्य जेटलो ज हुं अथवा मोक्षदशा जेटलो ज हुं–एम पर्याय–
द्रष्टिनी एकता करता नथी, पण त्रिकाळ स्वभावनी एकता वडे जाणे छे तेथी तेमने ज्ञाननी ज द्रढता थाय छे
अने राग तूटतो जाय छे. नवे तत्त्वोने जाणनार मारुं ज्ञान छे, ज्ञान नवपणे थयुं नथी–एम ज्ञाननी एकता
करतां विकारनी एकता तूटे छे. तेथी ज्ञानी भावना करे छे के–
अमने अमारा चैतन्यनी प्रतीति न खसे, चैतन्य स्वभावना अनुभवमां वच्चे भेद न पडे अने एकला
चैतन्यना ज अनुभवमां ढळीने वीतरागता थाय ए ज अमारी प्रार्थना छे.
१५. –ज्ञान अने भक्ति–
जे जीव ज्ञाननी ईच्छा राखे छे पण ज्ञानी प्रत्ये जेने भक्ति उछळती नथी; एवा कोई जीव प्रत्ये श्रीमद्
राजचंद्रजीए एक पत्र लख्यो छे के ‘वियोगथी थयेला ताप विषेनुं तमारुं एक पत्र चारेक दिवस पहेलांं प्राप्त
थयुं हतुं तेमां दर्शावेली ईच्छा विषे टूंका शब्दोमां जणाववा जेटलो वखत छे; ते ए के, तमने जेवी ज्ञाननी
जिज्ञासा छे तेवी भक्तिनी नथी. भक्ति प्रेमरूप विना ज्ञान शून्य ज छे, तो पछी तेने प्राप्त करीने शुं करवुं छे?
जे (ज्ञान) अटक्युं ते योग्यतानी कचाशने लीधे अने ज्ञानी करतां ज्ञानमां वधारे प्रेम राखो छो तेने लीधे.
ज्ञानी पासे ज्ञान ईच्छवुं ते करतां बोधस्वरूप समजी भक्ति ईच्छवी ए परम फळ छे. वधारे शुं कहीए? ” –
[बीजी आवृत्ति. पानुं ६१५]
तुं ज्ञान माटे तलसी रह्यो छो अने ज्ञानीना विरहनी वातो करो छो पण ज्ञानी प्रत्ये भक्ति तो ऊछळती
नथी! मात्र वातो करी ज्ञान मेळववा मागे छे पण ज्ञानी प्रत्ये भक्तिरूप परम प्रेम विना ज्ञान शून्य ज छे.
ज्ञानी प्रत्ये परम भक्ति आव्या वगर ज्ञान यथार्थ परिणमशे नहि. वीतरागी देव–गुरु–शास्त्र ते सम्यग्ज्ञाननुं
कारण छे, तेमना प्रत्ये ओळखाण पूर्वक अर्पणता करतां न आवडे तो ते राग रहित पोताना आत्मानी
अर्पणता करी शकशे नहि. जेने ज्ञानी प्रत्ये साची भक्ति नथी तेने पोताना आत्मानी साची भक्ति नथी.
जेटलो प्रेम संसार खातर स्त्री, पुत्रादिमां आवे छे तेना करतां विशेष उल्लास सत् देव–गुरु–धर्म प्रत्ये
न आवे तो तेने भक्तिनी जिज्ञासा नथी अने भक्ति वगर ज्ञान नथी. ध्यान राखजो, भक्तिमां राग छे ते वडे
ज्ञान थाय–एम न समजवुं, पण ज्ञानीनी ओळखाण थतां ज्ञाननी रुचि अने बहुमान वधे ते ज ज्ञाननुं कारण
छे; माटे पहेलांं रागनी दिशा पलटवी जोईए. एकवार हृदयमां एम अर्पणता लाव के संसारनुं–स्त्री, शरीर
वगेरेनुं गमे ते थाव, पण सत् देव–गुरु–शास्त्रने चरणे हुं अर्पाई जाउं. शरीर अने स्त्री, छोकरां माटे आखी
जिंदगी काढी तो सत् देव–गुरु–धर्मने माटे केटलुं कर्युं? भाई! ज्ञान–ज्ञान करो छो परंतु ज्ञानी प्रत्येनी भक्ति
ईच्छता नथी. ज्ञानी पुरुष पोते साक्षात् ज्ञान छे तेथी ज्ञान माटे ज्ञानीनी भक्ति ईच्छवी योग्य छे. जो ज्ञानी
प्रत्ये भक्ति नथी तो पछी ज्ञाननी वातो करीने शुं करवुं छे?
साचा देव–गुरु–धर्म तो मोक्षना कारणभूत छे अने कुदेवादि तो मोक्षना साक्षात् घातक छे. आम जे
समजे तेने साचा देव–गुरु–प्रत्येनी भक्ति उछळ्‌या वगर रहे ज नहि. अरिहंतनुं यथार्थ ज्ञान करे तेने
कुदेवादिनो राग छूटी जाय अने शरीरादिनो राग घटीने वीतरागदेव प्रत्ये भक्ति वधी जाय. अहा, भव
रहित वीतरागदेव मारा भवना नाशक निमित्त छे. जे ज्ञान परिणमतुं नथी ते पोतानी ज कचाश छे, अने
प्रत्यक्ष ज्ञानी करतां ज्ञानमां वधारे प्रेम राखवाथी ज ज्ञान अटक्युं छे. ज्ञान माटे ज्ञाननी भक्ति अनिवार्य
छे. आत्मा पोते चिदानंद ज्ञानस्वरूप छे तेनी रुचिरूप कृपा थाय त्यारे ज्ञान यथार्थ परिणमे छे, अने
एवा जीवने ज्ञानी प्रत्ये भक्ति होय ज छे.
प्रश्न:– देव–गुरु–शास्त्रनी भक्ति तो राग छे अने रागने तो भगवाने धर्म कह्यो नथी?
उत्तर:– तने परिणामना विवेकनी ज खबर क्यां छे? देव–गुरु–शास्त्रनी भक्तिनो राग ते धर्म नथी,
पण शुं स्त्री–कुटुंब–लक्ष्मी वगेरेना रागने धर्म कह्यो छे? –