: २२४ : आत्मधर्म आसो : २४७२
ए तो पाप छे. राग छे त्यां पाप छोडीने सत् निमित्तो प्रत्ये शुभराग होय छे. जो वीतराग थई गयो होय तो
ते शुभराग पण न होय.
पोताना परिणामनो विवेक नथी तथा सत्–असत् निमित्तनो विवेक नथी ते जीवने ज्ञान परिणमशे
नहि. वीतराग सर्वज्ञदेवे दिव्यध्वनिमां जे वस्तुस्वरूप जाहेर कर्युं ते ज दर्शावनारा बीजा ज्ञानी जीवो अने
सत्शास्त्रो तेमना प्रत्ये जेने भक्ति नथी उछळती अने ज्ञान ईच्छे छे तेने ज्ञानीनी भक्ति वगर ज्ञान
परिणमशे नहि.
१६. –त्रण प्रकारना ईश्वर–
दरेक जीव स्वतंत्र छे, विकार करे तेमां पण जीव स्वतंत्र छे अने परमाणुओ पण स्वतंत्र छे. पोत
पोताना ऐश्वर्य (शक्ति, सामर्थ्य) ने धारण करता होवाथी ते ईश्वर छे, श्रीमद् राजचंद्रजीए त्रण प्रकारना
ईश्वर कह्या छे १–स्वभावेश्वर, एटले दरेक जीव पोताना स्वभावे परिपूर्ण छे तेथी स्वभावेश्वर छे. २–
विभावेश्वर, एटले जीव पर्यायमां जे विभाव करे छे ते पोते पोतानी स्वतंत्र योग्यताथी करे छे, पण कोई पर
करावतुं नथी तेथी विभाव करवामां जीवनी स्वतंत्र योग्यता होवाथी विभावेश्वर छे. अने ३–जडेश्वर, –दरेक
परमाणु स्वतंत्र छे. एक क्षणमां धोळामांथी काळो पोतानी शक्तिथी थई जाय छे, एक समयमां सातमे
पाताळथी गमन करीने चौदमे राजलोक पहोंची जाय एवी तेनी स्वतंत्र शक्ति छे. परमाणु पोतानी शक्तिथी
स्वतंत्र परिणमे छे, तेना परिणमनने रोकवा कोई समर्थ नथी तेथी जड पण पोतानी शक्तिने धारण करनार
जडेश्वर छे.
१७. –वीतराग प्रभु वीतरागताना निमित्त छे. –
जड–चेतन समस्त पदार्थोनी आवी स्वतंत्रता जाहेर करनार सर्वज्ञ भगवान छे, तेमनी जेने प्रतीत थई
तेने पोताना शुद्धस्वभावनी प्रतीत थई, अने ते जीव सर्वज्ञभगवानने पोतानी शुद्धतामां ज निमित्त बनावे छे
के हे नाथ! आप ज मारी शुद्धताना निमित्त छो. जो के भगवानना लक्षे तो शुभराग थाय छे परंतु भक्तो
रागने गौण करीने कहे छे के हे नाथ! तारी भक्तिमां अमे राग भाळता नथी पण तारा जेवो शुद्धस्वभाव ज
भाळीए छीए, शुद्धस्वभावनी भावनाना जोरे शुभविकल्पने तोडी नाखवानुं जोर छे. शुभविकल्प होवा छतां ते
विकल्पमां भगवानने निमित्त न गणतां वीतरागभावमां आरोप करीने कहे छे के हे नाथ! तारामां राग नथी
अने तुं राग बतावनार नथी पण राग रहित स्वतंत्र स्वभाव बतावनार छो तेथी अमारी स्वतंत्रतामां ज
निमित्त छो. ‘बधा जीवो स्वभावे पोताथी परिपूर्ण छे, तुं पण सिद्धसमान परिपूर्ण छो, परंतु तारी स्वभाव
सत्ताने तुं भुल्यो छो तेथी अशुद्धता छे, तारी शुद्ध स्वभाव सत्तानी प्रतीत वडे तुं भगवान थई शके छे’ आम
दरेक तत्त्वनी परिपूर्ण स्वाधीनता बतावनार आप ज छो; तेथी स्वभावनी खीलवट कराववामां ज आप
निमित्त छो. जेने पोताना स्वतंत्र वीतरागी शुद्ध स्वभावनी प्रतीत अने बहुमान आव्युं छे ते ज जीव
भगवानमां पण शुद्धताना ज निमित्तनो आरोप करे छे. शुभराग थाय तेने पोताना स्वभावमां स्वीकारता
नथी तेथी भगवानने पण रागना निमित्त तरीके गणता नथी. आमां उपादान–निमित्तनो मेळ छे. उपादानमां
शुद्धतानुं बहुमान छे एटले सामी वस्तुमां पण शुद्धताना निमित्तनो ज आरोप करे छे.
१८. –ज्ञानीओ करुणाथी कहे छे के–प्रभु! प्रथम तुं तारा स्वभावने स्वीकार–
ज्ञानीओ क्षणिक अवस्थाने गौण करीने बधा आत्माने प्रभु तरीके संबोधे छे के–प्रभु! आ मोंघेरा
अवसर मळ्या अने जो आ वखते सत्नी ओळखाण अने बहुमान नहि कर तो असत्ना प्रेमे तारो आत्मसूर्य
अस्त थई जशे–तारी ज्ञान शक्ति हणाई जशे. भाई, प्रथम तारा स्वभावनी ओळखाण करवानुं ज कहेवाय छे.
ताराथी विशेष स्थिरता न थाय तो तने कांई त्यागी थई जवानुं कहेता नथी. राग सर्वथा न टळे तो पण प्रथम
तुं तारा पूरा स्वभावनो तो स्वीकार कर. तारा स्वभावनो स्वीकार कर्या वगर तुं कोनुं शरण करीश? रागनो
त्यागी थया पहेलांं पण तुं तारा ज्ञान स्वभावने ओळखीने तेनुं ज बहुमान कर. सत् स्वभावनो आदर करतां
करतां ज तारी दशा सत् स्वभावरूप थई जशे अने असत्रूप रागादि टळी जशे. माटे तुं कोई पण उपाये–खूब
प्रयत्न करीने पण तारा सत्ने समज.
जुओ तो खरा, ज्ञानीओनी करुणा! आवो उपदेश सांभळीने, जेने आत्मानी रुचि–बहुमान होय तेने