पूर्ण छे–आवुं वस्तुस्वभावनुं ज्ञान होय त्यां शुद्धात्मानी प्रतीतरूप सम्यग्दर्शन होय ज छे; तेथी ते ज्ञानने
सम्यग्दर्शननुं बाह्य चिह्न कहेवाय छे.
निश्चयलक्षण छे अथवा तो शुद्धात्मानी प्रतीति ते ज पोते सम्यग्दर्शन छे; परंतु छद्मस्थजीवोने ते प्रतीतिरूप
परिणाम सीधां जणातां नथी तेथी बाह्य चिह्ननी मुख्यता करीने सम्यग्दर्शनने ओळखाववामां आवे छे, आ
ओळखाण अनुमानप्रमाण छे, व्यवहार छे.
सम्यग्दर्शननो निर्णय तेना वचन वगेरेथी थई शके छे; आ रीते शब्दादि उपरथी सम्यग्दर्शनने नक्की करवुं ते
व्यवहार छे केमके ते परोक्ष प्रमाण छे. सम्यग्दर्शनने सीधुं प्रत्यक्ष तो श्रीसर्वज्ञदेव ज जाणे छे, छद्मस्थ जीवो तो
ज्ञान के वचन उपरथी अनुमान करीने सम्यग्दर्शनने जाणे छे तेथी तेमने व्यवहारनुं अवलंबन छे.
केवळीभगवाने व्यवहारी जीवोने व्यवहारनुं शरण उपदेश्युं छे. व्यवहारनुं शरण एटले शुं? रागनुं शरण, के
रागवडे धर्म थाय एम तेनो अर्थ नथी, परंतु छद्मस्थ जीवोनुं ज्ञान अपूर्ण होवाथी सम्यग्दर्शननो निर्णय करवा
माटे तेमने बीजा गुणनो (ज्ञाननो) आश्रय लेवो पडे छे, ए रीते अनुमान प्रमाणथी तेओ जाणे छे,
अनुमानादि प्रमाण ते परोक्ष होवाथी व्यवहार छे, केम के तेमां सम्यग्ज्ञान उपरथी सम्यग्दर्शननुं अनुमान करीने
जाणे छे. आ रीते, परोक्ष ज्ञानवडे एक गुण उपरथी बीजा गुणने नक्की करवो ते व्यवहार छे, अने एवा
व्यवहारनुं अवलंबन छद्मस्थने होय छे.
वेदन देखातुं न हतुं. एक बाबत तेमना दिलमां घोळाया करती हती, ते तेमणे सौ मंडळने बोलावीने, तेमना
पुत्रोनी रूबरूमां व्यक्त करी के–मारी भावना सत्धर्मनी वृद्धिनी छे एटले वढवाणमां एक स्वाध्याय मंदिर तथा एक
जिनमंदिर मारा वती बनाववुं, अने ते माटे रूा. २० थी २प हजारनी जे कांई रकम थाय ते खर्चवी. आ सांभळी सौ
खुशी थया अने पोते पण खुशी थया पछी पू. गुरुदेवश्रीनुं चित्रपट मंगावी पोते दर्शन कर्या अने त्यार पछी तेमणे
शांतिपूर्वक देह त्याग कर्यो.
रुचि हती. अने आवुं परम सत्य तत्त्वज्ञान खूब प्रचार पामे एवी तेमनी भावना हती अने ते माटे पोते वारंवार
उत्साह दर्शाव्यो हतो; तेमनी उंमर पप वर्षनी हती. तेमना वियोगथी मुमुक्षुओने तथा श्री जैन अतिथि सेवा
समितिने एक सारा उत्साही साथीदारनी खोट पडी छे.
प्रसंगोनुं उदाहरण लईने अन्य मुमुक्षुओए सवेळा चेतवुं योग्य छे.