Atmadharma magazine - Ank 037
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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ः १४ः आत्मधर्मः ३७
पूर्ण छे–आवुं वस्तुस्वभावनुं ज्ञान होय त्यां शुद्धात्मानी प्रतीतरूप सम्यग्दर्शन होय ज छे; तेथी ते ज्ञानने
सम्यग्दर्शननुं बाह्य चिह्न कहेवाय छे.
(पप) अनंतानुबंधी कषायनो तेमज मिथ्यात्वमोहनी त्रण प्रकृतिनो अभाव ते वडे सम्यग्दर्शनने
ओळखाववुं ते पण व्यवहार छे, केम के ते पोते सम्यग्दर्शन नथी. शुद्धात्मानी प्रतीति ते ज सम्यग्दर्शननुं
निश्चयलक्षण छे अथवा तो शुद्धात्मानी प्रतीति ते ज पोते सम्यग्दर्शन छे; परंतु छद्मस्थजीवोने ते प्रतीतिरूप
परिणाम सीधां जणातां नथी तेथी बाह्य चिह्ननी मुख्यता करीने सम्यग्दर्शनने ओळखाववामां आवे छे, आ
ओळखाण अनुमानप्रमाण छे, व्यवहार छे.
आ रीते आगमथी, अनुमान प्रमाणथी तेमज पोताना स्वसंवेदन प्रत्यक्ष प्रमाणथी सम्यग्दर्शननो निर्णय
थई शके छे. तेमां सम्यग्दर्शनना बाह्य चिह्ननुं वर्णन कर्युं.
(प६) वळी सम्यग्दर्शनने निश्चय तत्त्वार्थश्रद्धान पण कहेवामां आवे छे. पोताना स्वानुभववडे
पोताना सम्यग्दर्शननो बराबर निर्णय थाय छे. सम्यग्दर्शन थतां पोताने ज स्वानुभव थाय छे. पर जीवना
सम्यग्दर्शननो निर्णय तेना वचन वगेरेथी थई शके छे; आ रीते शब्दादि उपरथी सम्यग्दर्शनने नक्की करवुं ते
व्यवहार छे केमके ते परोक्ष प्रमाण छे. सम्यग्दर्शनने सीधुं प्रत्यक्ष तो श्रीसर्वज्ञदेव ज जाणे छे, छद्मस्थ जीवो तो
ज्ञान के वचन उपरथी अनुमान करीने सम्यग्दर्शनने जाणे छे तेथी तेमने व्यवहारनुं अवलंबन छे.
केवळीभगवाने व्यवहारी जीवोने व्यवहारनुं शरण उपदेश्युं छे. व्यवहारनुं शरण एटले शुं? रागनुं शरण, के
रागवडे धर्म थाय एम तेनो अर्थ नथी, परंतु छद्मस्थ जीवोनुं ज्ञान अपूर्ण होवाथी सम्यग्दर्शननो निर्णय करवा
माटे तेमने बीजा गुणनो (ज्ञाननो) आश्रय लेवो पडे छे, ए रीते अनुमान प्रमाणथी तेओ जाणे छे,
अनुमानादि प्रमाण ते परोक्ष होवाथी व्यवहार छे, केम के तेमां सम्यग्ज्ञान उपरथी सम्यग्दर्शननुं अनुमान करीने
जाणे छे. आ रीते, परोक्ष ज्ञानवडे एक गुण उपरथी बीजा गुणने नक्की करवो ते व्यवहार छे, अने एवा
व्यवहारनुं अवलंबन छद्मस्थने होय छे.
(चालु...)
* * *
भाईश्री धनजीभाई गफलभाईनो स्वर्गवास
ता. २–१०–४६ आसो सुद ७ना रोज वढवाणना रहीश भाईश्री धनजीभाई गफलभाई वढवाण मुकामे
स्वर्गवास पाम्या छे. तेमने ठेठ सुधी घणी ऊंची भावना अने शांति रही हती. शारीरिक व्याधि होवा छतां ते जातनुं
वेदन देखातुं न हतुं. एक बाबत तेमना दिलमां घोळाया करती हती, ते तेमणे सौ मंडळने बोलावीने, तेमना
पुत्रोनी रूबरूमां व्यक्त करी के–मारी भावना सत्धर्मनी वृद्धिनी छे एटले वढवाणमां एक स्वाध्याय मंदिर तथा एक
जिनमंदिर मारा वती बनाववुं, अने ते माटे रूा. २० थी २प हजारनी जे कांई रकम थाय ते खर्चवी. आ सांभळी सौ
खुशी थया अने पोते पण खुशी थया पछी पू. गुरुदेवश्रीनुं चित्रपट मंगावी पोते दर्शन कर्या अने त्यार पछी तेमणे
शांतिपूर्वक देह त्याग कर्यो.
स्व. धनजीभाई छेल्ला त्रण वर्षमां पू. गुरुदेवश्रीना समागममां आव्या हता, अने ते दरमियान तेमना
जीवनमां घणो फेर पडी गयो हतो. टूंका वखतमां तेओए तत्त्वनो सारो प्रेम प्रगट कर्यो हतो, तत्त्वज्ञाननी तेओने
रुचि हती. अने आवुं परम सत्य तत्त्वज्ञान खूब प्रचार पामे एवी तेमनी भावना हती अने ते माटे पोते वारंवार
उत्साह दर्शाव्यो हतो; तेमनी उंमर पप वर्षनी हती. तेमना वियोगथी मुमुक्षुओने तथा श्री जैन अतिथि सेवा
समितिने एक सारा उत्साही साथीदारनी खोट पडी छे.
सत्धर्म प्रत्ये तेमनो केटलो प्रेम हतो ते तेमनी अंतिम भावना उपरथी जणाई आवे छे. जेमणे पोताना
जीवनमां आत्मानी दरकार करीने सत्य समजणनां बीजडां रोप्यां छे तेनुं ज जीवन सार्थक छे. आवा वैराग्यमय
प्रसंगोनुं उदाहरण लईने अन्य मुमुक्षुओए सवेळा चेतवुं योग्य छे.