Atmadharma magazine - Ank 037
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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कारतकः २४७३ः १पः
श्री सर्वज्ञाय नमः ।।।। श्री वीतरागाय नमः
श्रावण वद १३ थी भादरवा सुद प सुधीना धार्मिक दिवसो दरमियान थयेला
श्री समयसारजी गाथा १३ तथा श्री पद्मनंदी पंचविंशति शास्त्रना ऋषभजिनस्तोत्र उपरनां
व्याख्यानो अने चर्चाओनो टूंकसार लेखांकः २
(आ लेखनां (१) थी (२प) उतारा गतांकमां आवी गया छे, त्यार पछी आगळ अहीं आपवामां आवे छे)
(२६) भक्तनी निःशंकता
श्री ऋषभदेव भगवाननी भक्ति करतां पद्मनंदी आचार्य पोतानी निःशंकतानी जाहेरात करे छे के हवे एकाद
भव स्वर्गनो करी मनुष्य थई मुक्ति पामशुं. हे नाथ! देव–मनुष्य सिवाय हवे बीजा अवतार अमारे होई शके नहि.
तारा शरणे आव्या, हवे अमारे नरक–तीर्यंच ए बे गति माटे हवे अमारी योग्यता रही नथी. प्रभु! आपनी
ओळखाणपूर्वक आपनी भक्ति करनारने हलकी गतिना भव रहे एम अमे मानता नथी. नरक तिर्यंच गतिने तो ताळां
ज देवाई गया, पण देव अने मनुष्यमां पण हवे वधारे भव नथी, अल्पकाळे चतुर्गतिनो अंत छे–एम अमारो निर्णय
छे अने आपना केवळज्ञानमां आपे पण एम ज जोयुं छे एम अमने प्रतीत छे.
हे वीतरागी नाथ! जे सजजन आपने ज नमस्कार करे अने अन्य कोई कुदेवादिने न माने तेना अवतारनो
अंत अमे देखी रह्या छीए. आप भवरहित छो अने आपना भक्तोने भव होय एम बनी शके नहि. प्रभु! तने
अवतार नहि अने जो तारा भक्तने अवतार रहे तो तारी भक्ति कोण करे? हे नाथ! जे जीवोए सर्वज्ञ वीतरागीपणे
आपने जगतथी जुदा तारव्या ते जीवोए खरेखर आत्मानो पूरो स्वभाव ज तारव्यो. आपश्री समान पूरा स्वभावने
जेणे स्वीकार्यो तेने भव होय नहि.
धनवाननी सेवा करे अने जो भूख्या रहेवुं पडे तो तेवी सेवा कोण करे? तेम हे नाथ! भवरहित एवा तने
ओळखीने सेवा करे अने जो भव रहे तो एवी सेवा कोण करे? अमने तो तारी भक्तिथी भवरहितपणानी प्रतीत छे.
अमे कुदेवादिने सेव्या नथी के जेथी नरकादि गति होय? अने पुण्यादि विकारमां धर्म मान्यो नथी के जेथी झाझा भव
होय? हे नाथ! अमे तो वीतरागी देवने ओळखीने स्वीकार्या छे अने रागरहित वीतरागी स्वभावने स्वीकार्यो छे, तेथी
हवे भव नथी.
पूर्वे १८ मां बोलमां कहेवाई गयुं छे तेम अहीं पण ए खास ध्यान राखवुं के–वीतराग देवनी भक्तिमां
वीतरागपणानी ओळखाण अने बहुमानवडे पोताने वीतराग स्वभावनी जे रुचि अने भावना वधे छे तेना ज जोरे
भवरहितपणानी निःसंदेहता थाय छे, परंतु जे शुभराग छे तेना वडे आत्माने खरेखर लाभ थतो नथी. जो राग अने
वीतरागता वच्चेना विवेकपूर्वकनी भक्ति होय तो ज ते साची भक्ति छे, पण जो रागथी ज लाभ माने तो तेनी भक्ति
साची नथी.
(२७) काळ द्रव्य अने वस्तुस्वरूप
काळद्रव्य अनादिअनंत छे; तेनी पर्यायना त्रण भेद पडे छे. भूत, वर्तमान अने भविष्य. जे काळ गयो तेने
भूतकाळ, जे एक समय चाली रह्यो छे तेने वर्तमानकाळ अने जे समयो थवाना बाकी छे तेने भविष्यकाळ कहेवाय छे.
काळद्रव्यना जेटला समयो छे तेटली ज दरेक द्रव्यनी पर्यायो छे.
भूतकाळना समयो करतां भविष्यकाळ अनंतगुणो अधिक छे एवो ज द्रव्यस्वभाव छे; तेने बदले ‘भूतकाळ
करतां भविष्यकाळ एक ज समय अधिक छे’ एम मानवुं ते द्रव्यना स्वरूपनी ज भूल छे. भूतकाळ करतां भविष्यकाळ
एक ज समय अधिक मान्यो तेनो अर्थ ए थयो के–जगतना बधा द्रव्योनी जेटली पर्यायो थई गई तेना करतां फक्त
एक ज वधारे (=भूतकाळना समयो+१) पर्याय थवानी बाकी छे. परंतु ए वात यथार्थ नथी. भूतकाळमां द्रव्यनी
जेटली पर्यायो थई गई तेना करतां अनंत गुणी (= भूतकाळना समयो × अनंत) पर्यायो भविष्यमां थवानी छे. आ
वातस्वभावथी ज बेसे तेम छे. तेनो एक न्याय ए छे के– संसारना काळ करतां सिद्ध दशानो काळ अनंत गुणो ज होय.
संसारना विकार भावमां मर्यादित पुरुषार्थ छे अने सिद्धदशाना भावमां तेनाथी अनंतगुणो अमर्यादित पुरुषार्थ छे, तेनुं
फळ संसारना काळ करतां