‘व्रतथी धर्म नथी’ एम कहीने तेनुं जोर ढीलुं करी नाखो छो, तो पछी आमां सिद्धांत बोध के उपदेश बोध शुं आव्यो?
छोडीने आ एकला आत्मानी वात सांभळे छे अने ते समजवा रोकाय छे तेमां जिज्ञासा केटली छे? कषायनी मंदता केटली छे? शुं
आ बधो व्यवहार न आव्यो? आत्मानुं स्वरूप समजवानी रुचि थई अने तेमां रोकाणा तेटले अंशे शुं संसार प्रत्येनो वैराग्य न
आव्यो? सत् समजवाना जिज्ञासुने सत्नुं अने सत्ना निमित्त तरीके देव–गुरु–शास्त्रनुं अपार बहुमान होय छे. आ रीते
शुभराग, भक्ति, कषायनी मंदता, वैराग्य इत्यादिरूप व्यवहार आवे छे खरो परंतु आत्मानुं शुद्ध स्वरूप समजाववानी मुख्यतामां
ते व्यवहारने गौण करवामां आवे छे. जो जिज्ञासाथी आ मार्गने बराबर समजे तो सत्यनो मार्ग तो सीधो सट सम्यग्दर्शनपूर्वक
केवळज्ञान अने मोक्षनो ज छे. आ भाषा ज्ञाननी वातो नथी पण स्वभावनो मार्ग छे. यथार्थ सत् तरफनी जिज्ञासा अने सत्मां
अर्पणता ते ज सत स्वरूपने पामवानो स्वतंत्र उपाय छे; आमां पराधीनता नथी तेमज बुद्धिने गीरवी मूकवा जेवी वात नथी.
आग्रह छोडीने आत्मानी दरकारथी पोते समजवा मागे तो पोते ज सत् स्वरूप छे तेमां अभेद थाय छे.
शुद्धात्मस्वभावने निश्चय वडे जाणवाथी ज सम्यग्दर्शन प्रगटे छे अने सम्यग्दर्शनथी ज अनंत संसारनो अंत आवे छे.
व्यवहार नथी तो शुं निश्चय छे? सत्यनुं श्रवण करवुं तेम ज प्रतिपादन करवुं ते शुभरागरूप व्यवहार छे; लौकिक शुभराग करतां
सत् प्रत्येनो आ राग जुदा प्रकारनो छे, ते लोकोत्तर पुण्यनुं कारण छे. साधकने शुभराग होय छे तेनो निषेध करवामां आवतो
नथी परंतु ते रागने मुक्तिना कारण तरीके मानवानो निषेध ज्ञानीओ करे छे. राग मारी आत्मशांतिने मददगार नथी, एम
रागरहित स्वभावनी रुचि अने प्रतीतमां बराबर द्रढता करवी ते ज मुक्तिनो मार्ग छे.
के, हुं शुद्ध चैतन्य ज्ञाता शांतिस्वरूप छुं, आ राग छे ते मारामां रहेवा माटे नहि, ते विकार छे, मारुं स्वरूप नथी. आम समजीने ते
रागनो आदर छोड अने आत्मानी रुचिने द्रढ करीने अभेद स्वभाव तरफ ढळ. आम करवाथी सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र प्रगट
थईने मोक्ष थशे अने बंधभाव छूटी जशे.
आत्माने शुं फळ? प्रथम तो, पंचमहाव्रतनो राग कर्यो तेमां आत्माने शुं फळ? प्रथम तो, पंचमहाव्रतना रागथी आत्माने लाभ
मानवो ते ज मिथ्यात्व छे अने ते महापाप छे. हवे विचारो के–पंचमहाव्रत पाळनार अज्ञानी आत्माने शरूआतमां, मध्यमां अने
अंतमां शुं फळ आव्युं? शुभराग छे ते पोते आकूळता छे, तेनुं अभिमान करीने मिथ्यात्वने द्रढ करे छे, अने ते शुभरागना
फळरूपे पण जडनो संयोग आवे छे. क्यारेय पण ते राग वडे आत्माने लाभ थतो नथी. छतां प्रथम भूमिकामां देव–गुरु–
शास्त्रनी ओळखाण पूर्वक तेमनुं बहुमान–भक्ति, ज्ञानीओनो समागम, वैराग्य इत्यादिनो शुभराग आवे छे. संसारनी तीव्र
रुचि होय अने ज्ञानीओनुं बहुमान तथा भक्ति न आवे ते तो जिज्ञासु पण नथी. अहीं तो जे जिज्ञासु थयो तेने पण शुभराग
सम्यग्ज्ञाननुं कारण नथी–एम समजाव्युं छे.