पडी छे. आत्माना स्वरूपनी समजण थईने अल्पकाळे मोक्ष थाय एवो उपाय दर्शावनारी वाणीनो योग मळ्यो, आटले सुधी
आवीने पण बहारना भावोनी (शुभाशुभ विकार भावोनी) रुचि राख्या करे तो तेने सत्नुं वलण थयुं नथी अर्थात् पोताना
आत्मानी दरकार–रुचि थई नथी. ज्यां सुधी पोते आत्मानी रुचि जागृत न करे त्यां सुधी, साचा देव–गुरु–धर्मनो संयोग होय
तोपण, तेने माटे ते सत्नुं निमित्त थयुं नथी, मात्र शुभरागनुं निमित्त थयुं छे. जीव पोते रागनी रुचि छोडीने स्वभावनी रुचि
न करे तो तेने धर्मनो लाभ थाय नहि अने जन्म–मरणनो अंत आवे नहि. शुभराग करे तो तेनाथी पुण्य बंधाय परंतु तेमां
आत्माने शुं? पुण्यनो भाव के पुण्यना परमाणुओ कांई आत्मामां टकी रहेतां नथी. जे धर्म प्रगटीने आत्मामां अभेदपणे टकी
रहे ते धर्म ज आत्माने मुक्तिनुं कारण छे; ए धर्म सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान अने सम्यक् चारित्र ज छे.
पोते ज मोक्षरूपे थाय छे, माटे बधा संज्ञी आत्मामां मोक्ष थाय तेटलुं समजवानी ताकात छे. स्वभावनी रुचिपूर्वक जो प्रयत्न
करे तो जरूर समजाय. *
ज होय, कूतराने अंदर पेसवा ज न दे, देखतां ज तेनो धूत्कार करे....तेम मोक्षमार्ग साधनारा ज्ञानीओ व्यवहार सामे प्रज्ञा
लईने ज बेठा छे अर्थात् शुद्धात्मस्वरूपनुं साधन करतां वच्चे रागरूप व्यवहार आवी पडे त्यां प्रज्ञावडे तेनो निषेध करे छे. पण
छतां व्यवहार आवे छे तो खरो ने? जो व्यवहार होय ज नहि तो निषेध कोनो करवो? समजवुं अने समजाववुं ते व्यवहार
छे. आ तत्त्वनी वात सांभळे छे तेमां शुभभाव थया ते व्यवहार न आव्यो? व्यवहार आवे छे तेनी ना नथी पण तेने
ज्ञानीओ सारो कहेता नथी. निश्चय अने व्यवहार बंनेने सारा केम कहेवाय? शुद्ध चैतन्य स्वरूप ते निश्चय छे अने पर्यायना
भेद तथा राग आवे ते व्यवहार छे. आ बंनेने ज्ञानीओ जाणे छे खरा, परंतु तेमां राग आत्माने लाभदायक छे एम तेओ
मानता नथी. व्यवहार हेय बुद्धिए जाणवा योग्य छे. पण जो व्यवहारने उपादेयपणे जाणे तो तेने निश्चय–व्यवहारनुं साचुं
ज्ञान नथी. पहेलां साधकदशामां छोडवानी द्रष्टिए व्यवहार वच्चे आवे छे एम ज्ञानीओ जाणे छे अने तेथी तेओ परमार्थ
शुद्धस्वभाव तरफ ढळे छे. पण पहेलेथी ज शुभराग करवानी जेनी द्रष्टि होय ते पोतानुं लक्ष व्यवहार उपरथी खसेडीने निश्चय
शुद्ध स्वभाव उपर ढळतो नथी, तेथी ते मिथ्याद्रष्टि ज रहे छे. आमां व्यवहार क्यां न आव्यो अने क्यां व्यवहार आदरणीय
रह्यो?–व्यवहार बधे आवे खरो पण आदरणीय क्यांय नथी.
यथार्थ होय नहि. जेओ साधक ज्ञानी छे तेओ आत्माना शुद्ध स्वरूपने जाणे छे अने तेमां ठरतां पहेलां ‘हुं चेतनार छुं’ एम
विकल्प आवे छे ते व्यवहार छे. हुं चेतनार छुं एम स्वभावनी