ः ६ः आत्मधर्मः ३७
पोताना पूरेपूरा गुणोने ओळखीने जीव तेमां स्थिर थाय तो पर्याय पण पूरी ज प्रगटे. तेथी प्रथम आत्माना द्रव्य–गुण
पर्यायनुं स्वरूप ओळखवुं जोईए.
सुरेशः– तमे आत्मा छो? तमे घरेथी अहीं आव्या त्यारे शरीरने तमारी साथे पराणे–बळजबरीथी आववुं पडयुं के
नहि?
दीनेशः– ना, शरीर बळजबरीथी आव्युं नथी. आत्मा अने शरीर बंने जुदा पदार्थो छे तेथी एक बीजानुं कंई करी
शके नहि. आत्मा पोताने कारणे आव्यो छे अने शरीर शरीरना कारणे आव्युं छे. शरीरना जड परमाणुओमां द्रव्यत्व नामनी
शक्ति छे तेथी तेओ परिणमीने अहीं आव्या छे; परंतु आत्माने कारणे शरीर आव्युं नथी तेमज शरीरना कारणे आत्मा
आव्यो नथी. बंने पदार्थो स्वतंत्र छे.
सुरेशः– जीव अने पुद्गलमां शुं फेर छे?
दीनेशः– जीवमां ज्ञान छे, पुद्गलमां ज्ञान नथी. पुद्गल रूपी छे, जीव अरूपी छे.
सुरेशः– पुद्गलमां ज्ञानगुण केम न होई शके?
दीनेशः– पुद्गल जड रूपी छे तेथी तेमां ज्ञान नथी. ज्ञान तो अरूपी छे अने पुद्गल तो रूपी छे, रूपी वस्तुना बधा
गुणो रूपी ज होय पण अरूपी न होय.
सुरेशः– पुद्गल रूपी छे अने ज्ञान अरूपी छे–ए शी रीते जाण्युं.
दीनेशः– जे रूपी वस्तु होय ते इन्द्रियो द्वारा जाणी शकाय अने पुद्गलो रूपी छे तेथी ते इन्द्रियो द्वारा जाणी शकाय
छे. जे आंखथी देखाय, नाकथी सुंघाय, कानथी संभळाय, जीभथी चखाय, अने चामडीथी स्पर्शाय ते बधुंय रूपी पुद्गल छे;
अने ज्ञान तो अरूपी होवाने लीधे ते आंखथी देखातुं नथी, कानथी संभळातुं नथी, हाथ वगेरेथी स्पर्शातुं नथी, जीभथी
चखातुं नथी अने नाकथी सुंघातुं नथी. कोई पण अचेतन पदार्थमां ज्ञान होई शके नहि.
सुरेशः– आपणे रेडियामां जे सांभळीए छीए ते शब्दो आकाशमांथी आवे छे के शुं छे?
दीनेशः– ना. शब्दो आकाशमांथी आवता नथी. शब्द तो जड परमाणुओनी अवस्था छे, ते आकाशनो गुण नथी.
घणा परमाणुओ भेगा थईने शब्दरूपे परिणमे छे ते आपणे सांभळीए छीए. परमाणुओमां ज शब्दरूप थवानी शक्ति छे.
आकाश द्रव्य तो जुदुं छे.
सुरेशः– परमाणुमां ‘स्पर्श’ गुण छे एम शी रीते कही शकाय?
दीनेशः– केमके पाणी वगेरे पदार्थो टाढामांथी उना थाय छे, टाढुं अने उनुं ए बन्ने स्पर्श गुणनी ज पयार्यो छे.
सुरेशः– पाणीने टाढामांथी उनुं तो अग्निए कर्युं छे ने?
दीनेशः– नहि, अग्नि अने पाणी बन्ने पदार्थो जुदां छे तेथी अग्नि पाणीने उनुं करती नथी. पाणीमां अनंत
परमाणु द्रव्यो छे अने ते दरेक परमाणुओमां स्पर्श गुण छे, ते गुण पहेलां ठंडी पर्यायरूपे हतो अने पछी ते ज गुण पोतानी
शक्तिथी उनी दशा रूपे थयो; तेमां अग्नि वगेरे कोईए कांई कर्युं नथी. पाणीना परमाणुओ पोतानी लायकातथी पोताना
कारणे स्वयं उना थया छे.
सुरेशः– जो पाणी पोतानी ज लायकातथी ज उनुं थतुं होय तो अग्नि आव्या पहेलां ते केम उनुं थयुं न हतुं?
दीनेशः– दरेक द्रव्यमां ‘द्रव्यत्व’ नामनी शक्ति छे, ते शक्तिने लीधे द्रव्यो सदाकाळ एक सरखां रहेतां नथी अने
तेनी हालत सदाकाळ बदलाया करे छे. परमाणुओमां पण द्रव्यत्वगुण होवाने लीधे तेनी हालत बदलाया करे छे. तेथी तेओ
कोईवार ठंडा, कोई वार गरम वगेरे होय छे. जे परमाणुओ ठंडामांथी गरम थया ते अग्निए कर्या नथी. पण तेनी पोतानी
द्रव्यत्वशक्तिने लीधे ज थयां छे.
सुरेशः– अग्निए पाणीने उनुं कर्युं एम मानीए तो शुं वांधो आवे?
दीनेशः– जो अग्निए पाणी उनुं कर्युं एम मानीए तो अग्निना परमाणुओमांथी कांईक नीकळीने पाणीना
परमाणुओमां प्रवेशी जाय–एम होवुं जोईए. अग्निमांथी गरमी नीकळीने पाणीमां प्रवेशी गई–एम थतुं नथी. केमके दरेक
द्रव्योमां ‘अगुरुलघुत्व’ नामनी शक्ति छे तेथी एक द्रव्यना कोई गुण के पर्याय बीजा द्रव्यमां प्रवेशी शकतां नथी. दरेक
द्रव्योना गुण–पर्याय पोतपोतामां ज रहे छे. वस्तुनी पर्याय बहारथी आवती नथी परंतु पोताना गुणमांथी ज पर्याय आवे
छे; तेथी पाणीनी उनी दशा तेना स्पर्श गुणमांथी ज आवी छे परंतु अग्निना परमाणुओमांथी आवी नथी.
वळी दरेक पदार्थ अनेकांत स्वरूप छे, एटले पोताना स्वरूपपणे छे अने परना स्वरूपपणे नथी. पाणी अग्नि–