ना स्वरूपपणे नथी, अग्नि पाणीना स्वरूपपणे नथी. आम होवाथी तेओ एक बीजानुं कांई ज करी शकता नथी. जो
अग्निए पाणीने उनुं कर्युं एम मानीए तो उपरना बधा सिद्धांत तूटी जाय अर्थात् द्रव्यना अगुरु–लघुत्व गुणनो
नाश थाय, बधा गुणोनो नाश थाय अने द्रव्यो एक बीजामां भळी जईने द्रव्यनो पण नाश थाय. माटे कोई द्रव्य
बीजा द्रव्यनुं कांई ज करी शकतुं नथी.
दीनेशः– वस्तुना स्वभावमां जे गुण होय ते गुण जाणवाथी वस्तुनुं स्वरूप ख्यालमां आवे छे अने तेथी
समजतां शरीरमां रोग आवे तो जाणे छे के ते रोगनी मारामां नास्ति छे, मारुं ज्ञान रोगथी जुदुं छे. मारो कोई गुण
शरीररूपे नथी तेथी शरीरमां रोग आववाथी मने नुकसान थतुं नथी, तेमज शरीर निरोग होय तेने लीधे मने लाभ
थतो नथी. अने शरीरनी मारामां नास्ति होवाथी हुं शरीरनुं कांई काम करी शकुं नहि. आम, नास्तित्वगुणनी
समजण थतां निरंतर स्व–परना भिन्नपणानो ख्याल रहे छे अने तेथी शांति रहे छे, शरीर, पैसा वगेरे चाल्या
जवाथी आत्मामांथी कांई चाल्युं जतुं नथी, केमके ज्ञानस्वरूप आत्मामां शरीर पैसा वगेरेनी नास्ति छे.
दीनेशः– मने मारी साची समजणथी लाभ थाय, परंतु देव–गुरु–शास्त्र के पुण्य वगेरे कोईथी लाभ थाय
पदार्थो मारा आत्माने कांई करी शके नहि.
दीनेशः– वस्तु स्वरूप ज ए प्रमाणे छे माटे तेम समजवाथी ज सम्यग्ज्ञान थाय छे. पर द्रव्योथी मने कांई
घटे छे अने शांति–सुख थाय छे. पर द्रव्यनी ओशियाळरूप पराधीनता जीव मानी बेठो छे ते मान्यता साचुं
समजतां टळी जाय छे. पोताना दोषथी ज पोताने नुकसान थाय छे एम समजे तो पोतानो दोष टाळीने ते नुकसान
टाळे अने गुणनो लाभ थाय.
दीनेशः– जड देहमां अनंत रजकण–परमाणुओ छे, ते दरेक स्वतंत्र द्रव्य छे. ते दरेक परमाणु द्रव्यमां
मनमां दुःखी थई रह्यो छे, तो तेनुं दुःख मटाडवानो शुं उपाय?
संबंधीनी आ जीवनी इच्छा दूर थाय तो तेनुं दुःख टळे.
दुःख कदी पण मटवानुं नथी. बीजो उपाय स्वाधीन होवाथी ते उपाय जीव करी शके छे. परंतु ज्यां सुधी, ‘आ मडदुं
छे अने ते कदापि खावा पीवानुं नथी’ एम ते जीवने विश्वास न आवे त्यां–