मागशरः २४७३ः २९ः
वीर सां. २४७१ ना पर्युषण दरमियान पु. सद्गुरुदेव
(आ उपादान–निमित्तना संवादना ४७ दोहानुं व्याख्यान पर्युषण दरमियान वंचाई गयेल छे तेमांथी
१ थी १प दोहानुं व्याख्यान आत्मधर्म मासिकना २पमां अंकमां आवी गयेल छे.
अहीं त्यारपछी आगळना दोहाओनुं व्याख्यान आपवामां आवे छे.)।। ॐ ।।
श्रीसद्गुरुदेवने अत्यंतः भक्तिए नमस्कारः
श्री कानजी स्वामीना व्याख्यानो भैया भगवतीदासजी कृत लेखांक बीजो
उपादान–निमित्तनो संवाद
अत्यार सुधीमां उपादान सामे पोतानुं बळवानपणुं सिद्ध करवा निमित्ते अनेक प्रकारनी दलीलो करी अने
उपादाने न्यायना बळथी तेनी बधी दलीलो तोडी नाखी; हवे निमित्त नवा प्रकारनी दलील रजू करे छे–
यह तो बात प्रसिद्ध है, शोच देख उर मांहि;
नरदेहीके निमित्त बिन, जिय कयों मुक्ति न जाहिं. १६.
अर्थः– निमित्त कहे छेः– ए वात तो प्रसिद्ध छे के नरदेहना निमित्त वगर जीव मुक्ति पामतो नथी, माटे हे
उपादान! तुं आ बाबत अंतरमां विचार करी जो.
निमित्त– बीजी बधी वात तो ठीक पण मुक्तिमां नरदेहनुं निमित्त छे के नहि? मनुष्य शरीर वळावियो तो
छे ने? ए वळावियो तो जोईए ज.
उपादान– एकलाने वळावियो कोण? नागाबावाने वळावियानुं शु काम छे? नागाने कोण लूंटनार छे? ए
नागाबावाने वळाविया न होय. तेम आत्मा समस्त परद्रव्यना परिग्रहथी रहित एकलो स्वाधीन छे, मोक्षमार्गमां
तेने कोई लूंटनार नथी. आत्मा पोतानी शक्तिथी परिपूर्ण छे तेने कोई अन्य वळावियानी जरूर नथी. मनुष्य शरीर
जड छे ते मुक्तिनुं वळावियुं नथी.
मनुष्यपणामां ज मुक्ति थाय छे, अन्य त्रण गति (देव, नारक ने तीर्यंच) मां मुक्ति थती नथी, तेथी
मनुष्यदेह ज आत्मानी मुक्ति करावी दे छे–एवा प्रकारे निमित्त दलील करे छे–आखी दुनियाना मत ल्यो तो
प्रसिद्धपणे एवा वधारे मत मळशे के–मनुष्यदेह विना मुक्ति न थाय माटे मनुष्यदेहथी ज मुक्ति थाय छे; आ वात
तो जगप्रसिद्ध छे, हे उपादान! तेने तुं तारा अंतरमां विचारी जो. शुं कांई देव के नरकादि भवमां मुक्ति थाय? न ज
थाय, माटे मनुष्यशरीर ज मुक्तिमां कंईक मदद करनारूं छे. भाई! आत्माने मुक्त थवामां कोईक चीजनी मददनी तो
जरूर पडे ज पडे. सो हळवाळाने पण एक हळावाळानी कोईक वार जरूर पडे, माटे आत्माने मुक्ति माटे तो चोक्कस
आ मानवदेहनी मदद जोईए.–१६–
निमित्त बिचारो पोतानुं बधुं जोर भेगुं करीने दलील करे छे परंतु उपादाननो एक ननैयो ते बधाने हणी
नाखे छे. उपादान कहे छे केः–
देह पींजरा जीवको, रोकैं शिवपुर जात;
उपादानकी शक्तिसों, मुक्ति होत रे भ्रात. १७.
अर्थः– उपादान निमित्तने कहे छे के अरे भाई! देहनुं पींजरुं तो जीवने शिवपुर (मोक्ष) जतां रोके छे; पण
उपादाननी शक्तिथी मोक्ष थाय छे.
नोंधः– देहनुं पींजरुं जीवने मोक्ष जतां रोके छे एम अहीं कह्युं छे ते व्यवहारकथन छे, जीव शरीर उपर लक्ष
करी मारापणानी पक्कड करी पोते विकारमां रोकाय छे त्यारे शरीरनुं पींजरुं जीवने रोके छे एम उपचारथी कहेवाय छे.
हे निमित्त! मनुष्यदेह जीवने मोक्ष माटे मदद करे एम तुं कहे छे, पण भाई! देह, उपरनुं लक्ष तो उलटुं
जीवने मोक्ष जतां अटकावे छे; केमके शरीरना लक्षे तो राग ज थाय छे अने राग जीवनी मुक्ति अटकावे छे, एटले
देहरूपी पींजरुं तो जीवने शिवपुर जतां रोकनारुं निमित्त छे.
ज्ञानी सातमा–छठ्ठा गुणस्थाने आत्मानुभवमां झूलता होय त्यां छठ्ठा गुणस्थाने संयमना हेतुथी शरीरना
निभावखातर आहारनी शुभ–लागणी ऊठे ते पण मुनिना केवळज्ञान अने मोक्षने रोके छे, माटे हे निमित्त!