शरीर आत्माने मुक्ति करवामां मदद करे ए तारी वात तद्न खोटी छे.
नहि अने पराश्रयमां ज अटकी गयो तेथी ज मुक्ति थई नथी. केवळज्ञान अने मुक्ति ते आत्माना स्वाश्रय भावथी
उपजेली अवस्था छे, शरीरना कोई हाडकामांथी के इन्द्रियोमांथी ते उपजता नथी.
तेनी ज शक्ति ते माने छे. ज्ञानीनी द्रष्टि पोताना आत्मस्वभाव उपर छे, तेने उपादाननी स्वाधीन–शक्तिनी खबर
छे, तेथी ते जाणे छे के ज्यां पोतानुं स्वभाव साधन होय त्यां निमित्त अनुकूळ होय ज; परंतु निमित्त उपर ज्ञानीनी
द्रष्टि नथी, जोर नथी. जो मनुष्यदेह धर्मनुं कारण होत तो मनुष्यदेह तो अनंतवार मळ्यो त्यारे जीव धर्म पामी गयो
होत! परंतु धर्म तो जीव पूर्वे पाम्यो नथी केमके जो पूर्वे धर्म पाम्यो होय तो अत्यारे आवो संसार न होय. माटे
मनुष्य शरीर जीवने धर्म पामवामां किंचित्त पण मददगार नथी.
उत्तरः– भाई! स्व कोण ने पर कोण तेना निर्णय वगर धर्म क्यां करीश? उपादान अने निमित्त बन्ने
काढी नाखवी जोईए. आत्मा ज पोते पोताने लाभ नुकशान करे छे–एवी स्वाधीन द्रष्टि थतां असंयोगी
आत्मस्वभावनी साची ओळखाण थाय छे ते ज धर्म छे अने ते ज आत्मकल्याण छे. आ वात समज्या वगर जीव
गमे तेम करे तोपण तेनुं कल्याण थाय नहि.–१७
रोके छे? जीवोने सारूं निमित्त नथी मळतुं तेथी तेओ मुक्तिमां जता नथी. मनुष्यभव, आर्यक्षेत्र, उत्तमकूळ, पांच
इन्द्रियोनी पूर्णता, सारूं क्षेत्र, निरोगी शरीर अने साक्षात् भगवाननी हाजरी ए बधाय निमित्तो सारां मळे तो
जीवने धर्म थाय. आंखोथी भगवाननां दर्शन अने शास्त्रनुं वांचन थई शके छे माटे आंख धर्ममां मददगार थईने?
अने कान छे तो उपदेश संभळाय छे ने! जो कान न होय तो शुं उपदेश संभळाय? माटे पण मददगार थया. आ
रीते इन्द्रिय वगेरेनी सामग्री सारी होय तो जीवनी मुक्ति थाय. एकेन्द्रि जीवने पण उपादान तो छे तो पछी ते केम
मुक्ति जता नथी? तेने इन्द्रिय वगेरे सामग्री सारी नथी माटे ते मुक्ति पामी शकता नथी, तेथी निमित्तनुं ज जोर
छे...”–१८–
पोते न जागे तो तेनी मुक्ति थती नथी–ए मतलबे उपादान हवे उत्तर आपे छेः–