पण ते पोताना ज ऊंधा भावने कारणे ज्ञानशक्ति हारी गयो छे; ‘इन्द्रियो नथी माटे ज्ञान नथी’ –एम नथी परंतु
‘पोतामां ज ज्ञानशक्ति हणाई गई छे माटे निमित्त पण नथी’ आम उपादान तरफथी लेवानुं छे. सारा कान अने
सारी आंख मळे तेथी शुं? काने उपदेश पडवा छतां जो उपादान न जागे तो ते धर्म समजे नहि; तेम ज सारी आंख
होय अने शास्त्रोना शब्दो वंचाय परंतु जो उपादान पोतानी ज्ञानशक्तिथी न समजे तो तेने धर्म थाय नहि.
आंखथी अने शास्त्रथी जो धर्म थतो होय तो मोटी आंखवाळा पाडा पासे पोथां मूको ने? सारां निमित्त होवा छतां
ते केम नथी समजतो? उपादानमां ज शक्ति नथी तेथी ते समजतो नथी; कर्म वगेरे कोइनुं जोर आत्मा उपर छे ज
नहि. उपादान अनादिथी होवा छतां आत्मा पोते अभान दशामां पोताना ऊंधा पुरुषार्थथी अटकयो छे, ज्यारे
आत्मभान करी सवळो थाय त्यारे ते मुक्ति पामे छे. निमित्तना अभावे मुक्तिनो अभाव नथी परंतु
उपादाननी जागृतिना अभावे मुक्तिनो अभाव छे.
निमित्तनी मदद छे.
रोटली बनती नथी. अने लोटमां रोटली पणे थवानी जे समये लायकातरूपे उपादान शक्ति होय छे ते समये तेने
अनुकूळ निमित्तो हाजर होय ज–परंतु रोटली तो स्वयं लोटमांथी ज थाय छे. कार्य तो एकला उपादानथी ज थाय
छे. आत्मामां एकला पुरुषार्थथी ज कार्य थाय छे. मनुष्यभव, आर्यक्षेत्र, उत्तमकूळ, पांच इन्द्रियोनी पूर्णता, निरोग
शरीर अने साक्षात् भगवाननी हाजरी–ए कोईथी जीवने लाभ थतो नथी, ए बधां निमित्तो तो जीवने अनंतीवार
मळ्यां छतां उपादान पोते सूलटयुं नहि तेथी जराय लाभ थयो नहि. पोते जो सवळो पुरुषार्थ करे तो आत्मानी
परमात्म दशा पोते ज पोतामांथी प्रगट करे छे–तेमां तेने कोई निमित्तो मददरूप थई शकतां नथी, आमां केटलो
पुरुषार्थ आव्यो? एक आत्मस्वभाव सिवाय जगतनी समस्त परवस्तुनी द्रष्टिने पांगळी बनावी दीधी. मने मारा
आत्मा सिवाय जगतनी कोई चीजथी लाभ के नुकशान नथी. कोई चीज मने राग करावती नथी अने मारा
स्वभावमां राग छे नहि–आवी श्रद्धा थतां ज, द्रष्टिमां राग न रह्यो, तेमज परनो के रागनो आधार न रह्यो.
आधार स्वभावनो रह्यो; एटले राग निराधार लुल्लो थई गयो ते अल्पकाळमां क्षय थई वीतरागता थई जशे.
आवो अपूर्व पुरुषार्थ आ साची समजणमां आवे छे.
केवळज्ञान पामे छे. आमां निमित्ते शुं कर्युं? एक द्रव्य बीजा द्रव्यनी अवस्थाने रोके के मदद करे ए वात सत्यना
जगतमां (–अनंत ज्ञानीओना ज्ञानमां अने वस्तुना स्वभावमां) नथी; असत्य जगत (अनंत अज्ञानीओ)
तेम माने छे तेथी ते संसारमां दुःखी थईने रखडे छे.
लीधे ते मनुष्य थाय छे. कर्मनुं जोर ओछुं थतां शुभभाव थया ए वात पण खोटी छे. पर वस्तुथी कांई पुण्य–पाप
थतां ज नथी. जीव पोते ज मंद ऊंधावीर्यवडे शुभभाव करे छे. उपादान पोते सवळो पडीने समजे तो पोते मुक्ति
पामे छे. ऊंधो पडे त्यारे पोते ज रोकाय छे, कोई बीजुं तेने रोकतुं नथी.
पूर्णताना निमित्तो मळे, परंतु जागृत थयेलो साधक जीव ते पुण्यना लक्षमां न रोकातां, स्वभावमां आगळ