Atmadharma magazine - Ank 038
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 13 of 21

background image
ः ३२ः आत्मधर्मः ३८
वधतो वधतो पुरुषार्थनी पूर्णता करीने मोक्ष पामे छे. उपादान मोक्ष पामे छे त्यां बाह्य निमित्तो तो एम ने एम
पडयां रहे छे, ते कांई उपादान साथे जतां नथी. आ रीते पुरुषार्थनी पूर्णतावडे मोक्ष थाय छे.
जीव अनादिथी ऊंधुं समज्यो ते खोटा देव–गुरु–शास्त्रना कारणे नहि पण पोताना अणसमजणरूप भावने
लीधे ज ऊंधुं समजीने रखडयो छे. तेम ज जीव साची समजण पोते ज करे छे, कानथी–आंखथी के देव–गुरु–शास्त्रथी
जीवने साची समजण थती नथी. जो ते कान वगेरेथी समजण थती होय तो जेने जेने ते निमित्तो मळे ते बधाने
एक साथे समजण थई जवी जोईए–परंतु एम तो थतुं नथी; माटे मोक्ष अने संसार, ज्ञान अने अज्ञान, के सुख
अने दुःख ए बधुं उपादानथी ज थाय छे. आ रीते जीवने लाभ–नुकशानमां कोई पण परनुं किंचित् कारण नथी.
एम सचोटपणे सिद्ध करीने, ‘निमित्तनुं कांई पण जोर छे’ एवी मिथ्यामान्यतारूप अज्ञानने सोई झाटकीने काढी
नांख्युं. १९.
(उपादान–निमित्तना कुल ४७ दोहा छे तेमांथी १९ दोहानुं व्याख्यान अहीं सुधीमां पूरूं थयुं.)
हवे निमित्त नवी दलील करे छे–
कहुं अनादि बिन निमित्तही, उलट रह्यो उपयोग
ऐसी बात न संभवै, उपादान तुम जोग. २०.
अर्थः– निमित्त कहे छे–शुं अनादिथी निमित्त वगर ज उपयोग (ज्ञाननो व्यापार) ऊलटो थई रह्यो छे?–
एवी वात तो संभवती नथी, माटे हे उपादान तारी वात योग्य नथी.
१९ मा दोहामां उपादाने एम कह्युं हतुं के उपादान अनादिथी ऊलटुं थई रह्युं छे, ते लक्षमां लईने निमित्त
एम दलील करे छे के हे उपादान! तारामां जे अनादिथी विकार भाव थई रह्यो छे ते शुं निमित्त वगर ज थाय छे?
जो पर निमित्त वगर एकला आत्माथी ज विकार थतो होय तो ते आत्मानो स्वभाव ज थई जाय अने तेथी
सिद्धभगवंतोने पण विकार थवो जोईए. परंतु विकारी भाव बीजा निमित्त वगर होय नहि केमके ते आत्मानो
स्वभाव नथी. जो निमित्त वगर थाय तो विकार ते स्वभाव थई जाय; परंतु विकारमां निमित्त तो होय ज छे, माटे
निमित्तनुं जोर थयुं के नहि?
ऊंधो भाव एकला स्वभावमांथी आव्यो के तेमां कोई निमित्त हतुं? शुं बंगडी एकली एकली खखडे?
एकली बंगडी खखडे नहि पण साथे बीजी बंगडी, होय तो ज खखडे. जो सामे चंद्रमा न होय तो आडी आंखे बे
चंद्र देखाय नहि, माटे सामी बीजी चीज छे तेथी ज विकार थाय छे. तेम आत्माने विकारमां बीजी चीजनी जरूर पडे.
उपादान अने निमित्त बे भेगा थाय तो विकार थाय. आत्मा विकार करे त्यारे परना लक्षे करे के आत्माना लक्षे?
एकला आत्माना लक्षे विकार थवानी लायकात ज नथी माटे विकार थवामां हुं (निमित्त) पण कंईक करूं छुं. ध्यान
राखजो! आ तो बधी निमित्तनी दलीलो छे. उपरथी जोरदार लागती दलील अंदरथी तद्न ढीली छे, मूळथी ज पायो
खोटो छे, उपादान सामे आ एकेय दलील टकवानी नथी. २०
हवे उपादाननो उत्तर–
उपादान कहे रे निमित्त, हमपै कही न जाय;
ऐंसे ही जिनकेवळी, देखे त्रिभुवनराय. २१.
अर्थः– उपादान कहे छे, अरे निमित्त! माराथी कह्युं जाय तेम नथी, जिनकेवळी त्रिभुवनराय एम ज देखे
छे.
नोंधः– अहीं उपादाननो एम कहेवानो आशय छे के– जीव विकार करे त्यारे बीजी चीज उपर तेनुं लक्ष होय
छे, ते बीजी चीजने निमित्त कहेवाय छे, परंतु–निमित्तनी असर विना ज उपादाननुं कार्य थाय छे एम श्री
जिनभगवान देखे
छे; एटले के निमित्तनी असर वगर ज उपादाननो उपयोग पोताना कारणे ऊल्टो थयो छे; माटे तुं कहे छे तेम
माराथी कही शकाय नहि.
अरे निमित्त! आत्मा पोताना ऊंधा भावे राग–द्वेष करे छे त्यारे बीजी चीज हाजर होय छे तेनी केम ना
कहेवाय? जीव विकार करे त्यारे बीजी चीज निमित्तरूपे हाजर होय छे ते बराबर छे परंतु ते निमित्तने लईने
आत्मा विकार करे छे ए वात बराबर नथी. भले, विकार ते आत्माना स्वभावमांथी आवतो नथी, परंतु विकारनी
उत्पत्ति तो आत्मानी ज अवस्थामां थाय छे, कोई निमित्तनी अवस्थामांथी थती नथी. बे बंगडी भेगी थतां खखडे
छे तेमां केई एक बीजाना कारणे खखडती नथी पण दरेक बंगडी पोतानी शक्तिथी ज खखडे छे. बे लाकडां भेगां
थाय तो ते बंगडी जेवा नहि खखडे, केमके तेनामां ते जातनी उपादान शक्ति नथी. कोईकवार बे बंगडी अथडातां
फूटी पण जाय छे, त्यां केम खखडती नथी? तेनामां तेवो अवाज थवानी उपादान शक्ति नथी