Atmadharma magazine - Ank 038
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 14 of 21

background image
मागशरः २४७३ः ३३ः
पण फूटवारूप लायकात छे तेथी तेम थाय छे. वळी चंद्र छे तेथी आडी आंखे बे चंद्र देखाय छे–ए वात पण खोटी छे.
चंद्रना कारणे जो तेम थतुं होय तो जे जे चंद्रने जुए ते बधायने बे चंद्र देखावा जोईए; परंतु तेम थतुं नथी, केमके
तेमां चंद्रनुं कारण नथी. एक जोनारने चंद्र स्पष्ट एक ज देखाय अने बीजा जोनाराने चंद्र बे देखाय छे त्यां
जोनारानी द्रष्टिमां कांईक फेर छे, जे जोनार पोतानी आंखनी आडाईथी जुए छे तेने बे चंद्र देखाय छे, बीजाने
देखाता नथी तेथी सिद्ध थयुं के निमित्त अनुसार कार्य थतुं नथी पण उपादान कारणनी शक्ति अनुसार कार्य थाय छे;
ज्यारे जीव स्वरूपने भूलीने आडी द्रष्टिथी विकार करे छे त्यारे ते पोते ज करे छे, कोई पर करावतुं नथी. सामे
निमित्त तो एकने एक ज होवा छतां उपादानने कारणे परिणाममां फेर पडे छे; तेनुं द्रष्टांतः– कोई एक खूबसुरत
मरेली वेश्या रस्ता वच्चे पडी हती, तेने साधु, चोर, विषयासक्त पुरुष अने कूतरो ए चारेये जोई, तेमांथी साधुने
एवो विचार आव्यो के अहो! आवो मनुष्य अवतार पामीने पण आत्मानी साची समजण कर्या वगर आ मरी
गई. चोरने एवो विचार आव्यो के जो अहीं कोइ न होय तो आना शरीर उपरना दागीना काढी लउं. विषयासक्त
पुरुषने एवो विचार आव्यो के जो आ जीवती होत तो आनी साथे भोग भोगवत. अने कूतराने एवो विचार
आव्यो के जो अहींथी बधा चाल्या जाय तो आना शरीरनुं मांस खाउं. हवे जुओ! सामे निमित्त बधाने एक ज
सरखुं होवा छतां दरेकना उपादाननी स्वतंत्रताना कारणे विचारमां केटलो फेर पडयो? जो निमित्तनी असर थती
होय तो बधाना विचार सरखा थवा जोईए, परंतु तेम थयुं नहि, ए ज सिद्ध करे छे के उपादाननी स्वाधीनताथी ज
कार्य थाय छे. जीव पोते ज पापराग, पुण्यराग के पुण्य पाप रहित शुद्ध वीतराग भाव जेवा भाव करवा मागे तेवा
भाव ते करी शके छे.
आ तो धर्मनी समजाय तेवी वात छे, प्रथमदशामां समजवा माटेनी साधारण वात छे. सम्यग्दर्शन अर्थात्
स्वतंत्र परिपूर्ण आत्मस्वभावनी ओळखाण प्रगट करवा पहेलां वस्तुनो साचो निर्णय करवा माटेनी आ पहेली
भूमिका छे. कल्याण माटेनी आ अपूर्व समजण छे, आ मात्र शब्दोनी वातो नथी परंतु आनी पाछळना भावमां तो
केवळज्ञान लेवाना कक्का छे, माटे बराबर रुचिपूर्वक आ समजवुं जोईए.
अज्ञानी कहे छे–कर्मना निमित्त विना आत्माने विकार थाय नहि माटे कर्म ज विकार करावे छे. ज्ञानी कहे
छे–आत्मा पोते विकार करे त्यारे कर्म निमित्तरूप हाजर होय छतां ते कर्म आत्माने विकार करावे नहि. कोई हजारो
गाळ्‌यो दे ते क्रोधनुं कारण नथी परंतु जीव जो क्षमा छोडीने क्रोध करे तो गाळ्‌यने क्रोधनुं निमित्त कहेवाय. जीव जो
पोताना भावमां क्षमा जाळवी राखे तो हजारो के करोडो गाळ्‌य होवा छतां तेने निमित्त पण कहेवाय नहि.
उपादानना भाव प्रमाणे सामी चीजमां निमित्तपणानो आरोप आवे छे, परंतु सामी चीजना कारणे
उपादानना भाव थाय एम बनतुं ज नथी.
उपादान ज्यारे स्वाधीनपणे पोताना कार्यने करे त्यारे बीजी चीज
निमित्त हाजर होय ज छे एम श्री सर्वज्ञदेवे जोयुं छे, तो हे निमित्त! तेनी माराथी केम ना पडाय? अहीं उपादान
एम कहेवा मागे छे के जगतनी बीजी वस्तुओ हाजर छे तेने मारा ज्ञानमां जाणुं खरो, बीजी वस्तुने जाणवामां कांई
वांधो नथी परंतु बीजी चीज मारामां कांई करे ए वात मारे मान्य नथी. जगतमां अनंत परद्रव्यो सौ स्वतंत्र
भिन्न भिन्न छे एम जे न माने तो ज्ञान खोटुं छे, अने एक द्रव्य बीजा द्रव्यने कांई करे एम माने तोय ज्ञान खोटुं
ज छे. जीव तीव्र रागद्वेष करे तेना निमित्तथी जे कर्मो बंधाय ते कर्मनो ज्यारे उदय आवे त्यारे पाछा तीव्र रागद्वेष ते
जीवने करवा ज पडे–ए वात तद्न खोटी अने जीवनी स्वाधीनतानुं खून करनारी छे. जीव रागद्वेष करे त्यारे कर्मनुं
निमित्त होय छे खरूं, परंतु कर्म जीवने रागद्वेष करावतां नथी. जीव द्रव्य के पुद्गल द्रव्य बंने स्वतंत्र द्रव्यो छे अने
पोतपोतानी अविकारी के विकारी अवस्था पोते ज स्वतंत्रणे करे छे, कोई एक बीजाना कर्ता नथी. आवा स्वतंत्र
वस्तु स्वभावनी ओळखाण करवी ते पहेलो धर्म छे. – २१– (चालु...)
* * * * * * * *
पोताना आत्मानी रुचि अने विश्वास करतां परनो अहंकार टळे छे, अने पोताना आत्मामां स्थिरता करतां
राग–द्वेष टळीने वीतरागता थाय छे. आत्माने पोतानी रुचि अने वीतरागता प्रगट करवा माटे पर साथेनो संबंध
नथी.