नुकशान छे, अने ‘हुं ज्ञानस्वरूप आत्मा छुं, साचा ज्ञानथी ज धर्म थाय छे, पुण्यथी धर्म थतो नथी तेमज शरीर
वगेरे परद्रव्योनी क्रिया हुं करी शकतो नथी’ आवी साची समजण पूर्वे कदी न करी होवा छतां ज्यारे तेवी साची
समजण वडे सम्यग्दर्शनादि प्रगट करे त्यारे ते भाव पवित्र होवाथी तेनाथी धर्म थाय छे. पवित्र भाव ते ज धर्म छे.
कोई पण जीव ज्यारे अज्ञान टाळीने साचुं ज्ञान प्रगट करे त्यारे ते जीवने माटे तो ते नवुं ज छे; परंतु अनादि
सनातन मार्गनी अपेक्षाए जुओ तो ते भाव नवो नथी, पण पूर्वे अनंत जीवो ते भावे धर्म पाम्या छे, अने ते ज
भावे दरेक जीव धर्म पामे छे. जेओने आत्माना सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप पवित्र भावोनी ओळखाण नथी
तेओ विकारथी अने जडथी आत्मानो महिमा माने छे, पण भाई रे! जडथी के विकारथी चैतन्यप्रभुनो महिमा न
होय! ए तो कलंक छे.
कहे–मफतनी तो तुं आवी छो, मारा बापे तो प०००) रूा. लीधा छे, हुं तो प०००) नी किंमते आवी छुं. जेठाणी
कहे–अरे मुर्खी! तारा बापे रूा. लीधा ते तो तारा कूळमां कलंक लगाडयुं छे. कलंक लगाडनारा काम वडे महिमा न
होय!
अमारा जेवो त्याग, सामायिक वगेरे तो करी जुओ! तमारे उपवास, व्रत वगेरेना शुभभाव कर्या वगर मफतमां
मोक्ष जोईए!”
जन्ममरणनो अंत लावनारूं जे निर्दोष निष्कलंक वीतरागी ज्ञान तेनो तने महिमा नथी आवतो अने चैतन्यने कलंक
लगाडनारा रागादि विकारनो तने महिमा आवे छे ते मिथ्यात्व छे. अनंतकाळे नहि करेलुं एवुं सम्यग्ज्ञान–के जे
अनंत संसारनो अंत लावनारूं छे–ते तने मफतियुं लागे छे अने ज्ञान वगर शुभरागनी अने शरीरनी क्रियामां तने
होंश आवे छे! पण तें शुं कर्युं? राग करीने तेना वडे चैतन्यनो महिमा कर्यो एटले चैतन्यना वीतरागी स्वभावनुं
खून करीने विकार वडे तें तारी मोटप मानी. स्वभावने कलंक लगाडीने प्रगटेली विकार परिणतिमां तें धर्म मान्यो
अने स्वभावनी वृद्धि करनारी, निर्दोष, कलंक विनानी सीधी प्रगटेली चेतना परिणतिरूप पवित्र धर्म छे तेनो
महिमा न आव्यो–तो तने धर्म–अधर्मना स्वरूपनी ज खबर नथी. अज्ञानीने विकारवाळी क्रिया गोठे छे पण विकार
वगरनी ज्ञानक्रिया गोठती नथी. एक मात्र सम्यग्ज्ञान वगर पूर्वे अनंतवार शुभकरणी करी, व्रत उपवासादिना
शुभराग कर्या अने बाह्य त्यागी पण थयो परंतु अज्ञानरूपी पाडो ते बधुं चावी गयो.
थाय छे. ज्ञाननी स्वरूपमां स्थिरता ते ज चारित्र छे.
उत्तरः– कष्ट सहन करवां ते तो दुःख छे. कष्ट सहन करवां ते मोक्षनुं कारण नथी परंतु मोक्षनुं कारण तो
प्रत्याख्यान छे. परंतु बाह्यथी जोनाराओ मात्र बाह्यत्यागने ज चारित्र माने छे. अज्ञान टाळ्युं त्यां अनंत भव टळी
गयां ते महान त्याग तेमने भासतो नथी. साचुं ज्ञान करवुं ते ज पहेलुं चारित्र छे. हजी जे साचा ज्ञाननी ज ना
पाडे छे ते चारित्र क्यांथी लावशे? सम्यग्ज्ञान प्रगटया पछी जेम जेम ते ज्ञान आत्मस्वरूपमां ठरतुं जाय छे तेम
तेम राग टळतो जाय छे अने राग टळतां बाह्य त्याग तो स्वयं होय छे.