प्रभु छे, तेने मानीने तेमां ज ठर! आत्मदर्शन ते ज जिनदर्शन छे. कह्युं छे के–
ए वचनसें समज ले जिन प्रवचनका मर्म.
जैन नथी पण अन्यमति छे; समयसारना आ पुरुषार्थमूलक सूत्रोवडे तेमनी मान्यतानुं निराकरण कर्युं छे.
मात्र जड कर्मोने ज माने तो बंधननो छेद कोना जोरे करशे? जेने कर्मप्रकृतिनुं लक्ष छे अने उपादानना जोरनी प्रतीत
नथी तेणे स्वभावने स्वीकार्यो नथी. ज्यां अंदरना स्वभावने स्वीकार्यो त्यां निमित्ताधीनपणानो नकार थयो–
परावलंबन छूटयुं–एटले हवे एकला स्वभावना लक्षे भवनो अभाव ज छे. निमित्त कर्मोनुं लक्ष करवाथी मुक्ति
थती नथी परंतु सत्य पुरुषार्थ वडे उपादाननुं लक्ष, तेनी प्रतीत अने स्थिरता करवाथी ज मुक्ति थाय छे. माटे चेतन
आत्मामां जडकर्मनी हैयाति ज नथी एम समजीने आत्मस्वरूप प्रत्येनो स्वतंत्र–स्वाधीन सत्य पुरुषार्थ करवो.
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सांभळ्युं अने मान्युं ते खोटुं?
संसारभाव छे माटे तेने साचो करवो छे? अनंतकाळनो संसारभाव टाळीने एक क्षणमां मोक्षमार्ग (सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्र भाव) प्रगट थई शके छे. त्यां कोई एम माने छे–“अमे तो अनंतकाळना संसारी छीए अने तमे तो हजी आ ज
क्षणे केवळी थाय छो माटे तमारा करतां घणा काळनो अमारो जुनो संसार सारो छे?” अरे भाई! केवळ पर्याय नवी छे
तेथी शुं? संसार तो बधा जीवने अनादिनो छे तेमां कांई अपूर्वता नथी, परंतु जे जीवो सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र प्रगट
करीने, संसार भाव टाळीने मुक्ति पाम्या, तेओए अपूर्व पवित्रता प्रगट करी छे. घणो काळ के ओछो काळ तेना आधारे
सारूं के खराब नथी, परंतु सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र भाव ते ज सारो छे अने मिथ्यात्वादि भाव ते ज खराब छे.
अनंतकाळ पहेलां, आजे के अनंतकाळ पछी दरेक जीवने सम्यग्दर्शनादि भावथी ज धर्म थाय छे, तेना वगर कोई जीवने
क्यारेय धर्म थतो नथी. एक जीव अनंतकाळ पहेलां सिद्धदशा पाम्या होय अने बीजा जीव हमणां ज सिद्धदशा पाम्या होय
तो ते बन्नेना भावनी पवित्रता समान होवाथी बन्नेने सरखुं ज सुख छे. परंतु–अनंतकाळ पहेलां जे सिद्ध थया तेमने
वधारे सुख अने पाछळथी सिद्ध थया तेमने ओछुं सुख–एम नथी.