Atmadharma magazine - Ank 038
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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मागशरः २४७३ः ३पः
स्थापी कहेवाय, तेथी कह्युं के ज्ञान मात्रमां स्थापेली द्रष्टि वडे खरेखर एक आत्मा ज देखाय छे. ते द्रष्टिमां गुण–
गुणी भेद पण देखाता नथी. आवी ज्ञानमात्रमां अचलितपणे स्थापेली द्रष्टि वडे ज शुद्ध दशा प्रगटे छे.
अहीं आत्मानी ओळखाण करवा माटे ज्ञानमात्रमां द्रष्टि स्थापवानुं ज कह्युं, परंतु दान भक्ति पूजा जात्रा
वगेरेनो शुभराग करवानुं कह्युं नहि केमके शुभराग वडे आत्मानी ओळखाण थई शकती नथी, तेमज शुभराग
आत्मानी ओळखाणनुं साधन पण नथी.
१६. प्रश्नः– धर्ममां प्रथम शुं अने छेल्लुं शुं?
उत्तरः– धर्ममां सौथी प्रथम सम्यग्दर्शन छे अने सौथी छेल्ली सिद्धदशा छे.
१७. प्रश्नः– आत्मामां क्रमरूप अने अक्रमरूप धर्मो रहेला छे ते कई रीते?
उत्तरः– दरेक द्रव्य गुण–पर्यायवाळुं होय छे, आत्मामां पण तेना अनंत गुण पर्यायो छे. तेमां गुणो बधाय
साथे रहेनारा छे तेथी अक्रमरूप धर्म छे अने पर्याय एक पछी एक क्रमसर ज थाय छे तेथी ते क्रमरूप धर्म छे. आ
रीते अक्रमरूप धर्मो अने क्रमरूप धर्मो (एटले के गुण अने पर्याय) आत्मामां एक साथे छे.
१८. प्रश्नः– अधूरामांथी पूरुं थयुं–ते शुं? द्रव्य, गुण के पर्याय?
उत्तरः– द्रव्य अने गुण तो सदाय एकरूप रहेनारां छे तेमां अधूरापणुं छे ज नहि, पर्यायनो स्वभाव क्षणिक
छे तेथी अधूरी दशा बदलीने पूरी दशा थाय छे. फेरफार पर्यायमां ज थाय छे, द्रव्य–गुण एकरूप छे.
१९. प्रश्नः– आत्मा, राग, सुख, श्रद्धा, पुण्य, शरीरनी क्रिया–एमांथी ज्ञान साथे अविनाभावपणुं कोने छे?
उत्तरः– ज्ञान आत्मानो स्वभाव छे, ते ज्ञान साथे सुख, श्रद्धा वगेरे अनंतगुणो अविनाभावी रहेला छे,
ज्ञान अने आत्माने अविनाभावीपणुं छे; अने राग, पुण्य वगेरे परभाव तथा शरीरनी क्रिया वगेरे पर द्रव्य ते
कोई ज्ञाननुं स्वरूप नथी तेथी तेओ ज्ञानथी भिन्न छे. तेथी जे ज्ञानने ओळखे ते आत्माने ओळखे, रागने पोतानुं
स्वरूप माने नहि तथा शरीरनी क्रिया वगेरेनो कर्ता पोताने माने नहि.
२०. प्रश्नः– आत्मामां अनंत धर्मो छे, तेमांथी मुख्य थोडाक गणावो.
उत्तरः– १. जीवत्वशक्ति. २. चितिशक्ति. ३. दर्शनक्रियारूप शक्ति. ४. ज्ञान उपयोगमयी शक्ति. प. सुख. ६.
वीर्य. ७. प्रभुत्व. ८. विभुत्व. ९. सर्वदर्शित्व. १०. सर्वज्ञत्व. ११. स्वच्छत्व. १२. प्रकाश शक्ति. १३. त्याग उपादान
शून्यत्व. १४. उत्पाद, व्यय ध्रुवत्व. १प. अस्तित्व. १६. अमूर्तत्व. १७. अकर्तृत्व. १८. अभोक्तृत्व. १९. निष्क्रियत्व.
२०. सर्वधर्मव्यापकत्व. २१. अनंतधर्मत्व. २२. विरुद्धधर्मत्व. २३. तत्त्वशक्ति. २४. अतत्त्वशक्ति. २प. एकत्व
शक्ति. २६. अनेकत्व शक्ति. २७. भावशक्ति. २८. अभावशक्ति. २९. क्रियाशक्ति. ३०. कर्मशक्ति. ३१. कर्तृत्वशक्ति.
३२. करणशक्ति. ३३. संप्रदान शक्ति. ३४. अपादान शक्ति. ३प. अधिकरण शक्ति. ३६. स्वभावमात्र
स्वस्वामीत्वमयी संबंध शक्ति. (‘शक्ति’ अने ‘धर्म’–ए बंने शब्दो अहीं एकार्थवाचक छे.) आ सिवाय बीजा
अनंतधर्मो आत्मामां रहेला छे; अनंत अन्यत्व अने अनंत अगुरुलघुत्व धर्मो छे. अहीं कहेली शक्तिओनुं
(धर्मोनुं) विशेष स्वरूप श्री समयसारजी पा. प०प–प०६मां जोई लेवुं.
२१. प्रश्नः– अज्ञानीओ प्रथम सम्यग्दर्शनने बदले बाळतप शा माटे करे छे?
उत्तरः– अज्ञानीओ आत्माना यथार्थ स्वरूपने ओळखता नथी. तेथी तेमनी द्रष्टि बहारमां छे अने तेओ
बहारनी क्रियाथी धर्म माने छे. आ कारणे बहारमां अन्न वगेरेना त्यागने तेओ तप माने छे; वळी रागरहित
आत्म–स्वभावनी द्रष्टि अज्ञानीने नथी तेथी ते शुभरागने धर्म माने छे. परंतु शुभराग तो विकार छे. अज्ञानीने
विकार करवो सहेलो लागे छे, तेमज बहारनी क्रिया हुं करी शकुं एम ते माने छे, परंतु आत्मानो स्वभाव परनुं कांई
करवानो नथी–एवी साची समजण करवी तेने अघरी लागे छे तेथी तेओ प्रथम सम्यग्दर्शन करवाने बदले तेमणे
मानी लीधेलो तप करवो ठीक माने छे. परंतु सम्यग्दर्शन वगर साचो तप कदी होय ज नहि. आत्मस्वभावमां
एकाग्रता वडे शुभाशुभ इच्छा तूटी जाय तेनुं नाम तप छे.
२२. प्रश्नः– परिग्रह एटले शुं? सौथी मोटो परिग्रह कयो?
उत्तरः– आत्माना स्वभाव सिवाय जेटलो विकारभाव ते बधोय परिग्रह छे. अने विकारनुं मूळ कारण
मिथ्यात्व छे, तेथी मिथ्यात्व ए ज सर्वथी महान परिग्रह छे. जे जीवने मिथ्यात्व छे ते जीव पुण्य–पापने पोतानुं
स्वरूप माने छे, वळी पुण्यथी मने लाभ थाय एम मान्युं तेणे त्रणे काळना विकारभावनो परिग्रह राख्यो छे. अने
जे ज्ञानीने आत्मभान वर्ते छे