करना उत्कृष्ट पुण्यमां एवो कोई तीव्र पापराग होय नहि के जेथी ‘बे बापवाळो’ एवुं खराब वचन सांभळवानो
प्रसंग आवे.
(६२) पोते विचार करीने समजवुं; आ बीजाने माटे वात नथी, पण पवित्रदशा वधतां केवा केवा प्रकारना
स्वभावनी श्रद्धा थाय छे. आ कोई संप्रदायनी पक्कडनी वात नथी पण राग रहित पवित्र आत्मपद केवां होय तेनी
प्रतीत करवानी वात छे. मुमुक्षुओए आ समजवानी जरूर छे.
तुल्य छे तेवा पवित्र सतिने जे ग्रंथकार पांच पति मनावे ते मिथ्याद्रष्टि छे. दियर पोतानी भोजाईने जनेता तुल्य
माने छे तेने बदले तेने पति ठरावे ते जैनमार्ग नथी पण लौकिकमार्ग छे.
राग रहित साचा देव–गुरु–शास्त्रनी प्रतीत थई तेने रागरहित आत्मानी ज प्रतीत छे अने रागरहित पवित्र
पदमां पण जे राग मनावे तेणे आत्माने ज रागवाळो मान्यो छे, ते अन्यमति छे.
स्वानुभव वडे प्रतीत न थई होय अने संदेह होय तो यथार्थ निर्णय अने अभ्यास करवो. संदेह होवा छतां पोताने
सम्यग्द्रष्टि मानी लेवो नहि. सौथी पहेलां सम्यग्दर्शनने ज नक्की करवुं केम के आत्माना धर्मनुं मूळ सम्यग्दर्शन ज छे.
यथार्थपणे साचा देव–गुरु–धर्मने ओळखे तेने पोताना आत्मानी प्रतीत थया वगर रहे ज नहि–एवी शैलिनी वात
छे. ज्यां सुधी संदेह होय त्यां सुधी सत्समागमे यथार्थ अभ्यास करीने निर्णय करवो; परंतु आत्मानी खबर न पडे
माटे आपणे व्रत करवा–एम माने ते मिथ्याद्रष्टि छे. तेथी धर्मने माटे सौथी पहेलां सम्यग्दर्शननो ज मुख्य
उपदेश छे.
हवे व्यवहार तत्त्वार्थ श्रद्धानने सम्यग्दर्शनना बाह्य चिह्न तरीके वर्णवे छे. ज्ञान अपेक्षाए नव तत्त्वोनी यथार्थ श्रद्धा
ते सम्यग्दर्शननुं बाह्य चिह्न छे. बाह्य चिह्न कहेतां आत्माथी पर द्रव्यो न समजवा, पण जे ज्ञान गुण छे ते श्रद्धा
गुणथी बीजो गुण छे तेथी तेने बाह्य चिह्न कहेल छे; ते वडे सम्यग्दर्शननो निर्णय थई शके छे. ज्यां सम्यग्दर्शन होय
त्यां तेनी साथे रहेलुं सम्यग्ज्ञान नव तत्त्वोने यथार्थपणे जाणे छे. व्यवहार तत्त्वार्थ श्रद्धान पण क्यारे कहेवाय? के
पुण्यने पुण्य माने पण पुण्यने धर्म न माने, जडनी क्रियानो कर्ता चेतनने न माने–तो व्यवहार तत्त्वार्थ श्रद्धान छे, ते
तो सम्यग्दर्शननुं बाह्य चिह्न छे. खरेखर जे नवतत्त्वनी श्रद्धा छे ते व्यवहार सम्यग्दर्शन छे अने नवना विकल्प
छोडीने एक शुद्धात्मानी श्रद्धा ते निश्चयसम्यग्दर्शन छे. अहीं व्यवहार सम्यग्दर्शनने निश्चय सम्यग्दर्शननुं बाह्य चिह्न
कहेल छे. व्यवहार सम्यग्दर्शन ते श्रद्धागुणनी पर्याय नथी पण ज्ञानगुणनी पर्याय छे, तेमां भेदथी आत्मानी प्रतीत
होवाथी ते सम्यग्दर्शननुं बाह्य चिह्न छे अने ज्यारे अभेद स्वभाव तरफ ढळीने प्रतीत करे त्यारे निश्चय सम्यग्दर्शन
छे, ते श्रद्धागुणनी ज पर्याय छे.
स्वानुभूतिरूप जे ज्ञान छे ते रागरहित छे, ते स्वानुभूति साथे सम्यग्दर्शन अवश्य होय ज छे. सम्यग्दर्शन पोते तो
शुद्धप्रतीतिरूपछे अने तेनी साथे रहेली अनुभूति ते ज्ञाननी पर्याय छे. आ रीते श्रद्धा अने ज्ञान गुण जुदा