Atmadharma magazine - Ank 039
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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पोषः२४७३ः ४९ः
दिकभाव थाय तेवुं नाम जीवने कहेवामां आवे छे. ज्यारे द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावनी बाह्य–अंतरंग सामग्रीनुं निमित्त
पामीने शुद्ध निश्चयनयना विषयस्वरूप पोताना शुद्ध स्वरूपने जाणीने श्रद्धा करे अने कर्मसंयोगनुं अने तेना
निमित्तथी थता पोताना भावोनुं यथार्थ स्वरूप जाणे त्यारे भेदज्ञान प्रगटे, परभावोथी विरक्त थाय तथा ते
परभावने मटाडवानो उपाय सर्वज्ञना आगमथी यथार्थ समजीने ते उपाय अंगीकार करे, त्यारे पोताना स्वभावमां
स्थिर थईने अनंतचतुष्टय प्रगट करे अने सर्व कर्मनो क्षय करीने लोक–शिखरे बिराजे त्यारे जीव मुक्त थयो
कहेवाय, तेने सिद्ध पण कहेवाय छे. आ प्रमाणे जेटली संसारनी अवस्था अने आ मुक्त अवस्था एवा भेदरूपे
आत्माने निरूपे छे ते पण व्यवहारनयनो विषय छे, अध्यात्मशास्त्रोमां तेने ‘अभूतार्थ, असत्यार्थ एम कहीने
वर्णन कर्युं छे; केमके शुद्ध आत्मामां संयोगजनित जे अवस्था थाय ते तो असत्यार्थ ज छे, कंई शुद्ध वस्तुनो तो ते
स्वभाव नथी माटे असत्य ज छे. वळी निमित्तनी अपेक्षाथी जे अवस्था थई ते पण आत्माना ज परिणाम छे, अने
जे आत्माना परिणाम छे ते आत्मामां ज छे तेथी तेने कथंचित् सत्य पण कहेवाय छे; परंतु ज्यां सुधी भेदज्ञान न
होय त्यां सुधी आ द्रष्टि (पर्यायद्रष्टि) छे, भेदज्ञान थया पछी जेम छे तेम जाणे छे.
वळी जे द्रव्यरूप पुद्गलकर्म छे ते आत्माथी जुदा ज छे अने तेने लीधे शरीरादिकनो संयोग छे ते पण
आत्माथी प्रगटपणे भिन्न छे, तेने आत्माना कहीए छीए–एवो आ व्यवहार प्रसिद्ध ज छे, तेने असत्यार्थ एटले
के उपचार कहेवाय छे. कर्मना संयोगजनित जे भाव छे ते सर्वे निमित्ताश्रितव्यवहारनो विषय छे, अने उपदेश
अपेक्षाए तेने प्रयोजनाश्रित पण कहेवाय छे.
आ प्रमाणे निश्चय–व्यवहारनुं संक्षिप्त स्वरूप छे.
ज्यां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रने मोक्षमार्ग कह्यो त्यां एम समजवुं के ते त्रणेय एक आत्माना ज भाव छे
तेथी ते सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र स्वरूप आत्मानो ज अनुभव थवो ते तो निश्चय मोक्षमार्ग छे; तेमां पण ज्यां
सुधी अनुभवनी साक्षात् पूर्णता न थाय त्यां सुधी एकदेशरूप मोक्षमार्ग होय तेने कथंचित् सर्वदेशरूप मोक्षमार्ग
कहेवो ते व्यवहार छे, अने ते एकदेशने एकदेशरूपे कहेवो ते निश्चय छे. वळी दर्शन–ज्ञान–चारित्रने भेदरूप कहीने
तेने मोक्षमार्ग कहेवो ते व्यवहार छे, तेम ज बाह्य परद्रव्यरूप जे द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भाव तेना निमित्त छे तेने दर्शन–
ज्ञान–चारित्र नामथी कहेवां ते व्यवहार छे; देव–गुरु–शास्त्रनी श्रद्धाने सम्यग्दर्शन कहेवुं, जीवादिक तत्त्वोनी श्रद्धाने
सम्यग्दर्शन कहेवुं, शास्त्रना ज्ञानने एटले के जीवादिक पदार्थोना ज्ञानने सम्यग्ज्ञान कहेवुं इत्यादि, तथा पांच
महाव्रत–पांच समिति–त्रण गुप्तिरूप प्रवृत्तिने चारित्र कहेवुं अने बार प्रकारना तपने तप कहेवुं–आवी रीते भेदरूप
तथा परद्रव्यना आलंबनरूप जे प्रवृत्ति छे ते सर्वेने अध्यात्म शास्त्रनी अपेक्षाए व्यवहार नामथी कहेवामां आवे
छे; केम के वस्तुना एकदेशने वस्तु कहेवी ते पण व्यवहार छे अने परद्रव्यना आलंबनरूप प्रवृत्तिने ते वस्तुना (स्व
वस्तुना) नामथी कहेवी ते पण व्यवहार छे.
वळी अध्यात्मशास्त्रोमां एवुं पण वर्णन छे के–अनंतधर्मरूप वस्तु छे तेने सामान्य–विशेषरूपे तेमज द्रव्य–
पर्यायरूपे वर्णववामां आवे छे. त्यां वस्तुने द्रव्यमात्र कहेवी अथवा पर्यायमात्र कहेवी ते व्यवहारनो विषय छे; अने
द्रव्यनो तेमज पर्यायनो पण निषेध करीने वस्तुने वचनअगोचर कहेवी ते निश्चयनयनो विषय छे; तथा जे वस्तु
द्रव्यरूप छे ते ज पर्यायरूप छे–एम बंनेने प्रधान करीने कहेवुं ते प्रमाणनो विषय छे. तेनुं उदाहरण आ प्रमाणे–
जेम के–जीवने चैतन्यरूप नित्य एक अस्तिरूप इत्यादि अभेदमात्र कहेवो ते तो द्रव्यार्थिकनयनो विषय छे;
अने ज्ञानदर्शनरूप, अनित्य, अनेक, नास्तित्वरूप इत्यादि भेदरूप कहेवो ते पर्यायार्थिकनयनो विषय छे. (आ
द्रव्यार्थिक तेमज पर्यायार्थिक ते बंनेनो समावेश व्यवहारनयमां समजवो) अने ते बंने प्रकारनी प्रधानताना
निषेधमात्र वचन अगोचर कहेवो ते निश्चयनयनो विषय छे; अने ते बंने प्रकारने प्रधान करीने कहेवुं ते प्रमाणनो
विषय छे,–इत्यादि.
आ प्रमाणे निश्चय–व्यवहारनुं सामान्य संक्षिप्त स्वरूप छे ते समजीने, जे प्रमाणे आगम अध्यात्म
शास्त्रोमां विशेषपणे वर्णन होय ते प्रमाणे तेने सूक्ष्मद्रष्टिवडे स्याद्वाद छे, अने नयोने आश्रये तेनुं कथन छे. त्यां
नयोनो परस्पर विरोध छे तेने स्याद्वाद मटाडे छे; नयोना विरोधनुं तथा अविरोधनुं स्वरूप जाणवुं. *