Atmadharma magazine - Ank 039
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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पोषः २४७३ः प३ः
छे, तेने कर्म रोकी शकतां नथी; अने जीव पोते दोष करे तो कर्म वगेरे बीजी चीजने निमित्त कहेवाय छे, परंतु कर्म
बळजोरीथी आत्माने विकार करावतुं नथी. आ रीते परवस्तुनी निमित्तरूप हाजरी छे एटलुं ज्ञानमां स्वीकार्युं परंतु
ते उपादानने कांई पण करे ए वातने तो मूळथी उडाडी दीधी.
हवे निमित्त जराक ढीलुं पडीने, उपादान–निमित्त बंनेने सरखां (पचास–पचास टका) कहेवा माटे
उपादानने समजावे छे–
जो देख्यो भगवानने, सोही सांचो आंहि;
हम तुम संग अनादिके, बली कहोगे काहि. २२.
अर्थः– निमित्त कहे छे–भगवाने जे देख्युं छे ते ज साचुं छे, मारो अने तारो संबंध अनादिनो छे माटे
आपणामांथी बळवान कोने कहेवो? अर्थात् बंने सरखा छीए एम तो कहो?
निमित्त–हे उपादान! भगवानश्री जिनदेवे आपणने बंनेने (उपादान–निमित्तने) जोयां छे, तो भगवाने
जे जोयुं ते साचुं; आपणे बंने अनादिथी भेगां छीए माटे कोई बळवान नहि–बंने सरखां, आम तो कहो?
उपादान–ना, ना. निमित्ताधीन परावलंबी द्रष्टिथी तो जीव अनादिथी संसारमां रखडया करे छे. संसारना
अधर्मो, स्त्री–पैसा वगेरे निमित्तो करावे अने धर्म देव–गुरु–शास्त्रना निमित्तो करावे–एवी सर्वत्र पराधीन
निमित्तद्रष्टि ए ज मिथ्यात्व छे अने तेनुं ज फळ संसार छे.
निमित्त– भगवाने एक कार्यमां बे कारण जोयां छे, उपादानकारण अने निमित्तकारण बंने होय छे माटे
कार्यमां उपादान अने निमित्तना बंनेना पचास पचास टका (percent) राखो. स्त्रीनुं निमित्त होय तो विकार
थाय, गाळ देनार होय तो क्रोध थाय माटे पचास टका निमित्त करावे अने पचास टका उपादान करे एम बंने भेगा
थईने कार्य थाय, चोकखो हिसाब छे.
उपादान–खोटुं, तद्न खोटुं. पचास टकानो चोकखो हिसाब नथी पण ‘बे ने बे त्रण’ (२ + २=३) जेवी
चोकखी भूल छे. जो स्त्री के गाळो ए कोई पचास टका विकार करावतां होय तो केवळी भगवानने पण तेटलो विकार
थवो ज जोईए, परंतु कोईपण निमित्त एक टको पण विकार कराववा समर्थ नथी. जीव पोते सो ए सो टका
पोताथी विकार करे त्यारे पर चीजनी हाजरीने निमित्त कहेवामां आवे छे. आ समजणमां ज चोकखो हिसाब छे के
दरेक द्रव्य जुदे जुदां छे, अने स्वतंत्रपणे पोतपोतानी अवस्थाना कर्ता छे, कोई द्रव्य बीजानुं कांई ज करी शकतुं
नथी.
आ दोहामां निमित्तनी विनंति छे के आपणने बंनेने समकक्षी (सरखी हदना) राखो. अनादिथी जीवनी
साथे कर्म चोंटयां छे अने जीवने विकारमां निमित्त थाय छे; निमित्तरूप कर्म अनादिथी छे माटे तेने जीवनी साथे
समकक्षी तो राखो! –२२–
हवे उपादान एवो जवाब आपे छे के–संभाळ रे सांभळ! निमित्तरूप जे कर्मना परमाणुओ छे ते तो
अनादिथी पलटतां ज जाय छे अने हुं उपादान स्वरूप तो एवो ने एवो त्रिकाळ रहुं छुं, माटे हुं ज बळवान छुंः–
उपादान कहे वह बली, जाको नाश न होय;
जो उपजत बिनशत रहै, बली कहीं ते सोय? २३.
अर्थः– उपादान कहे छे के–जेनो नाश न थाय ते बळवान. जे उपजे अने विणसे ते बळवान केवी रीते होई
शके? (न ज होय.)
नोंधः– उपादान पोते त्रिकाळी अखंड एकरूप वस्तु छे तेथी तेनो नाश नथी. निमित्त तो संयोगरूप छे,
आवे ने जाय, तेथी ते नाशरूप छे माटे उपादान ज बळवान छे.
जीव पोते अज्ञानभावे भले अनादिथी राग–द्वेष नवा नवा करे छे तोपण निमित्त कर्म अनादिथी एकने
एक ज रहेतां नथी, ए तो बदलतां ज रहे छे. जुनां निमित्त कर्म खरीने नवां बंधाय छे अने तेनी मुदत पूरी थतां
ते पण खरी जाय छे; जीव जो नवा रागद्वेष करे तो ते कर्मोने निमित्त कहेवाय छे. आ रीते उपादान स्वरूप आत्मा
तो अनादिथी एवोने एवो ज रहे छे, अने कर्म तो बदल्या ज करे छे माटे हुं–उपादान ज बळवान छुं. मारा गुणने
प्रगट करवानी ताकात पण मारामां ज छे. सत्देव–गुरु–शास्त्र ए पण जुदा जुदा पलटता जाय छे, अने तेमनी
साची वाणी पण पलटती जाय छे (–भाषाना शब्दो सदा एक सरखा रहेता नथी) परंतु सत्देव–गुरु–शास्त्र अने
तेमनी वाणी ज्ञान करती वखते मारा पोतानुं ज्ञान ज्ञानथी काम करे छे हुं आत्मा त्रिकाळ छुं अने गुणना निमित्तो
के दोषना निमित्तो ए तो बधा बदलता ज जाय छे. कर्मोना