Atmadharma magazine - Ank 039
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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ः प४ः आत्मधर्मः ३९
परमाणुओ पण फरता ज जाय छे तो कर्म मोटा के हुं मोटो? अज्ञानीओनी महामिथ्यात्वरूप भयंकर भूल छे के कर्म
आत्मानो पुरुषार्थ अटकावे, आत्माना पुरुषार्थने पराधीन माननाराओ महा मिथ्यात्वरूप सौथी मोटो दोष
वहोरे छे. वीतराग शासनमां परम सत्य वस्तुस्वरूप जाहेर थाय छे के आत्माना भावमां कर्मनुं जोर बिलकुल
नथी, आत्मानुं ज बळ छे. आत्मा संपूर्ण स्वाधीन छे, पोते स्वाधीनपणे पोताना गमे ते भावने करी शके छे,
आत्मा पोते जे समये जेवो पुरुषार्थ करे त्यारे तेवो पुरुषार्थ थई शके छे. आवी आत्मस्वाधीनतानी समजण ए
ज मिथ्यात्वना सौथी मोटा दोषने नाश करवानो एकमात्र उपाय छे.
भाई रे! तुं आत्मा स्वतंत्र वस्तु छो, तारा भावे तने लाभ–नुकशान छे. कोई पर चीज तने लाभ–नुकशान
करती नथी; आवुं साचुं भान जीव करे तो ते स्वलक्षे ठरीने मुक्ति पामे, परंतु जो जीव पोताना भावने ओळखे नहि
अने पर निमित्तथी पोताने लाभ–नुकशान थाय एम मान्या ज करे तो तेनुं पर लक्ष कदी छूटे नहि अने स्वनी
ओळखाण कदी थाय नहि, तेथी ते संसारमां रखडया ज करे. माटे उपादान अने निमित्त ए बंनेना स्वरूपने ओळखीने
एम नक्की करवुं जोईए के उपादान अने निमित्त ते बंने जुदा जुदा पदार्थो छे, कदी कोई एक बीजानुं कार्य करता नथी.
आम नक्की करीने निमित्तनुं लक्ष छोडीने पोताना उपादान स्वरूपने लक्षमां लईने ठरवुं ते ज सुखी थवानो–मोक्षनो
उपाय छे. –२३–
निमित्तनी दलीलः–
उपादान तुम जोर हो, तो कयों लेत अहार;
पर निमित्तके योग सों, जीवत सब संसार. २४.
अर्थः– निमित्त कहे छे–हे उपादान, जो तारुं जोर छे तो तुं आहार शा माटे ले छे? संसारना बधा जीवो पर
निमित्तना योगथी जीवे छे.
हे उपादान! आ कर्म वगेरे बधुं तो ठीक, ए तो कांई नजरे देखातुं नथी, परंतु आ तो नजरे देखाय छे के
आहारना निमित्तथी तुं जीवे छे. जो तारुं जोर होय तो तुं आहार केम ले छे? आहार वगर केम एकलो नथी जीवतो?
अरे! छठ्ठा गुणस्थान सुधी मुनिराज पण आहार ले छे, तो आहारना निमित्तनी तारे जरूर पडी के नहि? आखुं जगत
आहारना निमित्तथी ज जीवे छे. शुं आहारना निमित्त वगर एकला उपादानथी जीवाय? माटे निमित्त ज जोरवाळुं छे.–
आम निमित्त तरफना वकील दलील करे छे. वकील होय ते तो पोताना ज असील तरफनी दलील मूके ने! सामा पक्षनी
साची दलील जाणता होय तोपण कांई ते दलील रजु करे! सामा पक्षवाळा तरफनी दलील करे तो ते वकील केम कहेवाय!
अहीं निमित्तना वकील कहे छे के निमित्तना पण थोडाक दोकडा छे, एकलुं उपादान ज काम करतुं नथी, माटे निमित्तनी
शक्ति पण कबुल राखो...–२४–
उपादाननो जवाबः–
जो अहारके जोगसों, जीवत है जगमाहिं;
तो वासी संसारके, मरते कोउ नाहिं. २प.
अर्थः– उपादान कहे छे–जो आहारना जोगथी जगतना जीवो जीवता होत तो संसारवासी कोई जीव मरत नहीं.
हे निमित्त! आहारना कारणे जीवन टकतां नथी. जो जगतना जीवोना जीवन आहारथी टकतां होय तो आ
जगतमां कोई जीवो मरवां न जोईए; परंतु खाता खाता पण जगतना अनेक जीवो मरी जता देखाय छे, माटे आहार
ते जीवतरनुं कारण नथी. सौ पोतपोताना आयुष्यथी जीवे छे. आयुष्य होय त्यां सुधी जीवे अने आयुष्य न होय तो
चक्रवर्ती–वासुदेव–बळदेव पोताना माटे बनावेला ‘सिंह–केसरीआ लाडु’ खाय छतां पण मरी जाय. ज्यां जीवन खूटयां
त्यां आहार शुं करे? आठे पहोर खान–पान अने आरामथी शरीरनी मावजत करवा छतां जीवो केम मरी जाय छे?
आहारना निमित्तना कारणे उपादान टकतुं नथी. एक चीजमां पर चीजने लीधे कांई ज थतुं नथी; माटे हे निमित्त! तारी
वात खोटी छे. भाणां उपर बेठो होय, भोजन करीने पेट भर्युं होय, हाथमां कोळीयो रही गयो होय अने शरीर छूटी
जाय–एम बने छे. जो आहारथी शरीर टकतुं होय तो खानार कोई मरवा न जोईए अने उपवासी बधा मरी जवा
जोईए. परंतु आहार खानार पण मरे छे अने आहार वगर पण पवन भक्षीओ वर्षो सुधी जीवे छे माटे आहार साथे
जीवन–मरणने संबंध नथी. आहारनो संयोग ते परमाणुओना कारणे आवे छे अने शरीरना परमाणुओ शरीरना
कारणे टके छे, आहार