Atmadharma magazine - Ank 039
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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पोषः २४७३ः पपः
अने शरीर बंनेना परमाणु जुदा छे. आहारनी माफक दवाना कारणे पण शरीर टकतुं नथी अने दवाना कारणे रोग
टळतो नथी. हजारो दवा लावे छतां रोग न मटे अने दवा वगर पण रोग मटी जाय–ए तो स्वतंत्र द्रव्यनी स्वतंत्र
अवस्थाओ छे. एक वस्तुना कारणे बीजी वस्तुमां कार्य थाय ए वात
पवित्र जैनदर्शनने मान्य नथी केमके
वस्तुनी स्थिति ज तेम नथी. एक द्रव्यना कारणथी बीजा द्रव्यनुं कार्य थाय एवी जेने ऊंधी मान्यता छे ते महा
अज्ञानी छे, वस्तुनी स्थितिनी तेने खबर नथी, जैनधर्मने ते जाणतो नथी. –२प–
हवे निमित्तनी दलील कहे छेः–
सुर सोम मणि अग्निके, निमित्त लखैं ये नेन;
अंधकारमें कित गयो, उपादान दग दैन. २६.
अर्थः– निमित्त कहे छे–सूर्य, चंद्र, मणि के अग्निनुं निमित्त होय तो आंख देखी शके छे, उपादान जो देखवानुं
काम आपतुं होय तो अंधकारमां तेनी जोवानी शक्ति क्यां गई? (अंधकारमां केम आंखेथी देखातुं नथी?)
तुं बधामां ‘हुं–हुं’ करे छे अने बधुं मारी (उपादाननी) शक्तिथी ज थाय एम कहे छे परंतु हे उपादान!
जोवानुं काम तो तुं सूर्य–चंद्र–मणि के दीपक ना निमित्तथी ज करी शके छे, जो जाणपणुं तारा ज्ञानथी ज थतुं होय तो
अंधारा वखते तारूं ज्ञान क्यां जाय छे? दीपक वगेरेना निमित्त वगर अंधारामां तुं केम नथी जोई शकतो? वळी
पुस्तक वगर तने केम ज्ञान नथी थतुं? शुं शास्त्र वगर एकला ज्ञानमांथी ज्ञान थाय छे? जुओ, आ सामे
समयसार शास्त्र राख्युं होय तो तेनुं ज्ञान थाय छे, जो ज्ञानथी ज ज्ञान थतुं होय तो सामे शास्त्र केम राखो छो?
माटे मारुं ज जोर छे. तारो ‘हुंकार’ छोड अने मारूं पण जोर छे ए कबुल कर! आम निमित्ते दलील करी.–२६–
उपादाननो जवाबः–
सुर सोम मणि अग्नि जो, करै अनेक प्रकाश;
नैनशक्ति बिन नर लखैं, अन्धकार सम भास. २७.
अर्थः– उपादान कहे छे–जो सूर्य, चंद्र, मणि अने दीपक अनेक प्रकारनो प्रकाश करे छे तोपण देखवानी शक्ति
विना देखाय नहि, बधुं अंधकार जेवुं भासे छे.
भाई रे! कोई परवस्तु वडे ज्ञान थई शकतुं नथी. ज्ञाननो, प्रकाश करनारो तो ज्ञानस्वरूपी आत्मा छे अने
प्रकाश वगरनो प्रकाशक पण आत्मा ज छे. सूर्य वगेरे कोईथी ज्ञान प्रकाशतुं नथी अर्थात् परनिमित्तथी आत्मा
जाणतो नथी. हे निमित्त! जो सूर्य, चंद्र के दीपकथी देखातुं होय तो अंध पासे ते बधुं मूकीने तेनामां देखवानी शक्ति
लावी दे. ते सूर्य वगेरे बधुं होवा छतां आंधळाने केम नथी देखातुं? उपादानमां ज जाणवानी शक्ति नथी तेथी ज ते
जाणी शकतो नथी जो उपादानमां जाणवानी शक्ति होय तो ते (–बिलाडी वगेरे) अंधारामां पण जाणी शके छे. ज्यां
प्राणीनी आंख ज जाणवानी ताकातवाळी छे त्यां तेने कोई अंधारूं रोकी शके नहि, तेम सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान वगेरे
आत्माना गुणोनो चैतन्यप्रकाश कोई संयोगथी प्रगटतो नथी पण आत्मस्वभावथी ज ते प्रगटे छे. ज्यां आत्मा
स्वयं पुरुषार्थवडे सम्यग्दर्शनादिरूप परिणमे छे त्यां तेने कोई निमित्त रोकनार के मददगार नथी, माटे निमित्तनुं कांई
ज जोर नथी. आ ज प्रमाणे शास्त्रनी मददथी पण ज्ञान थतुं नथी. समयसार शास्त्र तो हजारो माणसो पासे एक ज
प्रकारनुं होय, जो शास्त्रथी ज्ञान थतुं होय तो ते बधायने एक ज प्रकारनुं ज्ञान होवुं जोईए, परंतु तेम तो बनतुं
नथी. एकने एक ज शास्त्र होय छतां कोई सवळो अर्थ समजी सम्यक्त्व प्रगट करे अने कोई ऊंधो अर्थ लई ऊलटो
मिथ्यात्वने पूष्ट करे, त्यां शास्त्र शुं करे? समजण तो पोताना ज्ञानमांथी काढवी छे ने! कांई शास्त्रमांथी समजण
काढवी नथी. हुं मारा ज्ञानवडे मारा स्वतंत्र आत्मस्वभावनी ओळखाण करूं तो मने धर्मनो लाभ थाय छे, कोई
संयोगथी मने लाभ थतो नथी– आम जे नथी मानता ते अज्ञानी छे.
अहा! जुओ तो खरा, उपादान स्वभावनुं केटलुं जोर छे! क्यांय जराक पण पराधीनपणुं पालवे तेम नथी.
आवा उपादान स्वरूपने ओळखीने तेनो जे आश्रय करे ते अल्पकाळमां ज मुक्ति पामे. जीवोए अनादिथी पोतानी
मूळ शक्तिनी ओळखाण ज करी नथी एटले परनी जरूर मानी बेठा छे, तेथी ज पराधीन–दुःखी थई रह्या छे. आ
जे रीते कहेवाय छे ते रीते पोताने स्वाधीनपणे प्रथम ओळखवो जोईए ते ज मुक्तिनो मार्ग छे. –२७–