Atmadharma magazine - Ank 039
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 17 of 21

background image
ः प६ः आत्मधर्मः ३९
हवे निमित्त दलील करे छेः–
कहै निमित्त वे जीव को? मो बिन जगके माहिं;
सबै हमारे वश परे, हम बिन मुक्ति न जाहिं. २८.
अर्थः– निमित्त कहे छे–मारा विना जगतमां जीव कोण मात्र? बधा मारे वश पडया छे, मारा विना मुक्ति
थती नथी.
निमित्त वगर जीव मुक्ति पामतो नथी, पहेलां मनुष्य शरीरनुं निमित्त, पछी देव–गुरु–शास्त्रनुं निमित्त
पछी पंचमहाव्रतादिना शुभरागनुं मुनिदशामां निमित्त–आम बधी निमित्तनी परंपरा वगर जीव मुक्ति पामी शकतो
नथी. शुं वच्चे व्रतादिना पुण्य आव्या वगर कोई जीवनी मुक्ति थाय? न ज थाय, माटे पुण्य निमित्त छे अने तेना
ज बळथी जीव मुक्ति पामेछे–आ निमित्तनी दलील!–२८–
उपादाननो जवाबः–
उपादान कहैं रे निमित्त, ऐसे बोल न बोल;
ताको तज निज भजत हैं, तेहीं करै किलोल. २९.
अर्थः– उपादान कहे छे–अरे निमित्त! एवां वचनो न बोल. तारा उपरनी द्रष्टि तजीने जे जीव पोतानुं
भजन करे छे ते ज किलोल (आनंद) करे छे.
हे निमित्त! तारा प्रतापथी जीव मुक्ति पामे छे ए वात तुं रहेवा दे; केमके शरीर देव–गुरु–शास्त्र के
पंचमहाव्रत ए बधाय निमित्तोना लक्षे तो जीवने राग ज थाय छे अने तेने संसारमां रखडवुं पडे छे, परंतु ज्यारे
ए बधा निमित्तोनुं लक्ष छोडीने अने पंचमहाव्रतना विकल्पने पण छोडीने पोताना अखंडानंदी स्वरूप आत्मानी
भावना करीने सम्यग्दर्शन–ज्ञान पूर्वक जे अंतरमां स्थिरता करे छे ते ज जीवो मुक्ति पामे छे अने तेओ ज परम
किल्लोल भोगवे छे; निमित्तना लक्षे आनंदनो अनुभव थई शकतो नथी. जेओ निमित्तनी द्रष्टिमां रोकाय छे तेओ
मुक्ति पामता नथी. आ रीते, निमित्तनुं बळ छे ए दलील तूटी गई. –२९–
हवे, पंचमहाव्रतादि क्रियाथी जीवनी मुक्ति थाय छे एवी दलील निमित्त करे छेः–
कहैं निमित्त हमको तजै, ते कैसे शिव जात;
पंचमहाव्रत प्रगट है, और हु क्रिया विख्यात. ३०.
अर्थः– निमित्त कहे छे–अमने तजवाथी मोक्ष केवी रीते जवाय? पांच महाव्रत प्रगट छे, वळी बीजी क्रिया
पण विख्यात छे (–के जेने लोको मोक्षनुं कारण माने छे).
शास्त्रोमां तो निमित्त तरफना लखाणना पानांना पानां भरेलां छे, तो निमित्तनी मददनी तमे केम ना पाडो
छो? पंचमहाव्रत, समिति–गुप्ति ए बधानुं तो शास्त्रोमां खूब लखाण छे, ते धार्या वगर शुं जीव मोक्ष जई शके?
मने छोडवाथी जीव मोक्ष जई शके नहि. अहिंसा वगेरे पंचमहाव्रतमां परनुं लक्ष करवुं पडे छे के नहि?
पंचमहाव्रतमां पर लक्षे जे रागनो विकल्प ऊठे छे तेने आगळ लावीने अहीं निमित्त कहे छे के शुं पंचमहाव्रतना
राग वगर मुक्ति थाय? पंचमहाव्रतना शुभरागथी मुक्ति माननारा अज्ञानीओ घणा छे तेथी निमित्ते ते दलीलने
रजु करी छे. दलील तो बधी ज मूके ने? जो आवी ऊंधी दलीलो न होय तो जीवनो संसार केम टके? आ बधी
निमित्ताधीननी दलीलो संसार टकाववा माटे साची छे अर्थात् निमित्ताधीन द्रष्टिथी ज संसार टकयो छे. जो
निमित्ताधीन द्रष्टि छोडीने स्वभावद्रष्टि करे तो संसार टकी शके नहि. –३०–
हवे, पंचमहाव्रतादिने जीव छोडे त्यारे ते मुक्ति पामे छे एम, उपादान उत्तर आपे छेः–
पंचमहाव्रत जोगत्रय, और सकल व्यवहार;
परको निमित्त खपायके, तब पहुचें भवपार. ३१.
अर्थः– उपादान कहे छे–पांच महाव्रत, मन, वचन अने काय ए त्रण तरफनुं जोडाण, वळी बधो व्यवहार
अने पर निमित्तनुं लक्ष ज्यारे जीव छोडे त्यारे भवपारने पहोंचे छे.
ज्ञानमूर्ति आत्मानुं जेटलुं पर लक्ष जाय छे ते बधो विकार भाव छे. भले पंचमहाव्रत हो तोपण ते विकार
छे, ते विकार भावने अने बीजा जे जे व्यवहार छे ते बधा रागने अने निमित्तना लक्षने जीव ज्यारे छोडे छे त्यारे
ज ते मोक्ष पामे छे. पुण्य–पाप रहित आत्मस्वभावनी श्रद्धा–ज्ञान अने स्थिरता वडे ज मुक्ति थाय छे. तेमां क्यांय
पण राग होतो नथी. पंचमहाव्रत ते आस्रव छे, विकार छे, आत्मानुं खरूं चारित्र ते नथी, तेने चारित्रनुं खरूं स्वरूप
माने तो मिथ्याद्रष्टि छे. आत्मानो चारित्र–धर्म तेनाथी पार छे. जगतना अज्ञानी जीवोने आ महा आकरूं लागे तेवुं
छे परंतु परम सत्य महा हितकारी छे.
प्रश्नः– पंचमहाव्रत ते भले चारित्र न होय परंतु ते धर्म तो छे ने?
उत्तरः– पंचमहाव्रत ते चारित्र पण नथी अने धर्म पण नथी. सर्व प्रकारना रागरहित एकला ज्ञायक