सबै हमारे वश परे, हम बिन मुक्ति न जाहिं. २८.
नथी. शुं वच्चे व्रतादिना पुण्य आव्या वगर कोई जीवनी मुक्ति थाय? न ज थाय, माटे पुण्य निमित्त छे अने तेना
ज बळथी जीव मुक्ति पामेछे–आ निमित्तनी दलील!–२८–
ताको तज निज भजत हैं, तेहीं करै किलोल. २९.
ए बधा निमित्तोनुं लक्ष छोडीने अने पंचमहाव्रतना विकल्पने पण छोडीने पोताना अखंडानंदी स्वरूप आत्मानी
भावना करीने सम्यग्दर्शन–ज्ञान पूर्वक जे अंतरमां स्थिरता करे छे ते ज जीवो मुक्ति पामे छे अने तेओ ज परम
किल्लोल भोगवे छे; निमित्तना लक्षे आनंदनो अनुभव थई शकतो नथी. जेओ निमित्तनी द्रष्टिमां रोकाय छे तेओ
मुक्ति पामता नथी. आ रीते, निमित्तनुं बळ छे ए दलील तूटी गई. –२९–
हवे, पंचमहाव्रतादि क्रियाथी जीवनी मुक्ति थाय छे एवी दलील निमित्त करे छेः–
पंचमहाव्रत प्रगट है, और हु क्रिया विख्यात. ३०.
मने छोडवाथी जीव मोक्ष जई शके नहि. अहिंसा वगेरे पंचमहाव्रतमां परनुं लक्ष करवुं पडे छे के नहि?
पंचमहाव्रतमां पर लक्षे जे रागनो विकल्प ऊठे छे तेने आगळ लावीने अहीं निमित्त कहे छे के शुं पंचमहाव्रतना
राग वगर मुक्ति थाय? पंचमहाव्रतना शुभरागथी मुक्ति माननारा अज्ञानीओ घणा छे तेथी निमित्ते ते दलीलने
रजु करी छे. दलील तो बधी ज मूके ने? जो आवी ऊंधी दलीलो न होय तो जीवनो संसार केम टके? आ बधी
निमित्ताधीननी दलीलो संसार टकाववा माटे साची छे अर्थात् निमित्ताधीन द्रष्टिथी ज संसार टकयो छे. जो
निमित्ताधीन द्रष्टि छोडीने स्वभावद्रष्टि करे तो संसार टकी शके नहि. –३०–
परको निमित्त खपायके, तब पहुचें भवपार. ३१.
ज ते मोक्ष पामे छे. पुण्य–पाप रहित आत्मस्वभावनी श्रद्धा–ज्ञान अने स्थिरता वडे ज मुक्ति थाय छे. तेमां क्यांय
पण राग होतो नथी. पंचमहाव्रत ते आस्रव छे, विकार छे, आत्मानुं खरूं चारित्र ते नथी, तेने चारित्रनुं खरूं स्वरूप
माने तो मिथ्याद्रष्टि छे. आत्मानो चारित्र–धर्म तेनाथी पार छे. जगतना अज्ञानी जीवोने आ महा आकरूं लागे तेवुं
छे परंतु परम सत्य महा हितकारी छे.
उत्तरः– पंचमहाव्रत ते चारित्र पण नथी अने धर्म पण नथी. सर्व प्रकारना रागरहित एकला ज्ञायक