शुभविकारी लागणी मुनिदशामां आवी जाय छे परंतु
ते विकल्प छे, राग छे, विकार छे–अधर्म छे केमके ते
लागणीओ आत्माना शुद्ध चारित्रने अने
केवळज्ञानने रोके छे. आत्माना गुणने रोकनार ते
लागणीओमां जो धर्म माने तो आत्माना पवित्र
गुणोनो महान अनादर करी रह्यो छे, तेने आत्मानुं
भान नथी.
छठ्ठा गुणस्थानमां होय छे ते राग छे–आस्रव छे,
आत्माना केवळज्ञानने ते विघ्न करे छे. निमित्ते
दलीलमां कह्युं हतुं के आ मोक्षमां मदद करे छे; उपादान
कहे छे–ते मोक्षमां डखल करे छे, ते विकल्पोने तोडीने
ज्यारे स्वरूप स्थिरतानी श्रेणी मांडे त्यारे मोक्ष थाय
छे, पण पंचमहाव्रतादि राखीने कदी मोक्ष थतो नथी,
माटे हे निमित्त! ताराथी उपादाननुं एक पण कार्य थतुं
नथी. –३१– (चालुं...)
प्रतिज्ञा करी छे. गाथा नीचे प्रमाणे छे–
‘ध्रुव, अचल ने अनुपम गति पामेल सर्वे सिद्धने
वंदी कहुं श्रुतकेवळी–कथित आ समयप्राभृत अहो!’ १.
विनाश रहित छे, परिभ्रमणरहित छे अने अनुपम छे.
उ.–पोतानो आत्मा सिद्धसमान छे एवी
ओळखाण पूर्वक भगवानने पोताना आत्मामां स्थाप्या
छे ते ज नमस्कार छे.
संसारी भव्य जीवो सिद्धना स्वरूपनुं चिंतवन करीने,
पोताना आत्माने पण तेवा ज स्वरूपे ओळखीने ध्यावे
छे अने ए रीते तेओ पण सिद्ध जेवा थई जाय छे. माटे
सिद्ध भगवंतोने नमस्कार कर्या छे.
सिवायना आत्माओ सर्व प्रकारे शुद्ध नथी.
कोईए?
आत्माने सिद्धपणे स्थापीने तेनुं ध्यान करवाथी शुद्धदशा
प्रगटे छे अने आत्मा पण सिद्धसमान थाय छे. परंतु
जुदा सिद्ध भगवानना लक्षे तो राग थाय छे, तेनाथी
सिद्धपणुं थतुं नथी.
(सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र) प्रगट करवो ते सिद्धनी
भावस्तुति छे, अने सिद्ध भगवान प्रत्येनुं लक्ष–विकल्प
तथा वाणी ते सिद्धनी द्रव्यस्तुति छे.
अने बाह्यमां निर्ग्रंथ शरीरनो संयोग अने
समवसरणादिकनी रचना तथा दिव्यध्वनि वगेरे होय छे.
उ.– जेवा सिद्ध भगवान छे तेवो ज हुं पण
सिद्ध समान ज छुं. सिद्धने जे भाव न होय ते भाव