Atmadharma magazine - Ank 039
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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पोषः २४७३ः प७ः
स्वभावी आत्मानुं सम्यक्भान कर्या पछी ज
विशेष स्वरूप स्थिरता करतां पहेलां पंचमहाव्रतनी
शुभविकारी लागणी मुनिदशामां आवी जाय छे परंतु
ते विकल्प छे, राग छे, विकार छे–अधर्म छे केमके ते
लागणीओ आत्माना शुद्ध चारित्रने अने
केवळज्ञानने रोके छे. आत्माना गुणने रोकनार ते
लागणीओमां जो धर्म माने तो आत्माना पवित्र
गुणोनो महान अनादर करी रह्यो छे, तेने आत्मानुं
भान नथी.
आत्माना भानसहित सातमे–छठ्ठे गुणस्थाने
आत्मानुभवमां झुलता मुनिने पंचमहाव्रतना विकल्प
छठ्ठा गुणस्थानमां होय छे ते राग छे–आस्रव छे,
आत्माना केवळज्ञानने ते विघ्न करे छे. निमित्ते
दलीलमां कह्युं हतुं के आ मोक्षमां मदद करे छे; उपादान
कहे छे–ते मोक्षमां डखल करे छे, ते विकल्पोने तोडीने
ज्यारे स्वरूप स्थिरतानी श्रेणी मांडे त्यारे मोक्ष थाय
छे, पण पंचमहाव्रतादि राखीने कदी मोक्ष थतो नथी,
माटे हे निमित्त! ताराथी उपादाननुं एक पण कार्य थतुं
नथी. –३१– (चालुं...)
* * * * * * *
श्रीसमयसारजी गाथा एकना प्रवचनना
आधारे केटलाक प्रश्नोत्तर
(पहेलाना पर प्रश्नोत्तर माटे जुओ अंक ३प)
प३. प्र. श्रीसमयसारशास्त्रनी पहेली गाथा कई
छे अने तेमां शुं सूचन छे?
उ.– पहेली गाथामां मंगळिक तरीके श्री
सिद्धभगवंतोने नमस्कार कर्या छे अने ग्रंथ कहेवानी
प्रतिज्ञा करी छे. गाथा नीचे प्रमाणे छे–
‘ध्रुव, अचल ने अनुपम गति पामेल सर्वे सिद्धने
वंदी कहुं श्रुतकेवळी–कथित आ समयप्राभृत अहो!’ १.
प४. प्र. कयुं पद प्राप्त करवा योग्य छे? ने ते
शा माटे?
उ. सिद्धपद प्राप्त करवा योग्य छे केम के ते
आत्माना स्वभावभावभूत छे तेथी ध्रुव छे; ते पद
विनाश रहित छे, परिभ्रमणरहित छे अने अनुपम छे.
पप. प्र.– सिद्ध भगवंतोने नमस्कार कई रीते
कर्या छे?
उ.–पोतानो आत्मा सिद्धसमान छे एवी
ओळखाण पूर्वक भगवानने पोताना आत्मामां स्थाप्या
छे ते ज नमस्कार छे.
प६. प्र.–सिद्ध भगवंतोने ज नमस्कार केम
कर्या?
उ.– आ जीवने शुद्धात्मा साध्य छे अने सिद्ध
भगवंतो शुद्धात्माना प्रतिच्छंदना स्थाने छे. एटले
संसारी भव्य जीवो सिद्धना स्वरूपनुं चिंतवन करीने,
पोताना आत्माने पण तेवा ज स्वरूपे ओळखीने ध्यावे
छे अने ए रीते तेओ पण सिद्ध जेवा थई जाय छे. माटे
सिद्ध भगवंतोने नमस्कार कर्या छे.
प७. प्र.– आत्माना प्रतिच्छंदना स्थाने
सिद्धप्रभु ज शा माटे?
उ.– सिद्ध प्रभु सर्व प्रकारे संपूर्ण शुद्ध होवाथी
तेओ ज आत्माना प्रतिच्छंदना स्थाने छे. सिद्ध भगवान
सिवायना आत्माओ सर्व प्रकारे शुद्ध नथी.
प८. प्र.– सिद्ध भगवाननुं ध्यान करतां तेमना
जेवा थवाय–तो ते दशा सिद्ध–भगवाने आपी के अन्य
कोईए?
उ.– अहीं आत्माथी भिन्न सिद्ध भगवानना
ध्याननी वात नथी, परंतु ‘हुं सिद्ध छुं’ एम पोताना ज
आत्माने सिद्धपणे स्थापीने तेनुं ध्यान करवाथी शुद्धदशा
प्रगटे छे अने आत्मा पण सिद्धसमान थाय छे. परंतु
जुदा सिद्ध भगवानना लक्षे तो राग थाय छे, तेनाथी
सिद्धपणुं थतुं नथी.
प९. प्र.– सिद्ध भगवाननी द्रव्य स्तुति अने
भावस्तुति एटले शुं?
उ.– जेवा सिद्ध भगवान छे तेवो ज हुं छुं एवा
भानपूर्वक पोताना आत्मामां सिद्धपणानो अंश
(सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र) प्रगट करवो ते सिद्धनी
भावस्तुति छे, अने सिद्ध भगवान प्रत्येनुं लक्ष–विकल्प
तथा वाणी ते सिद्धनी द्रव्यस्तुति छे.
६०. प्र.– अरिहंत प्रभुनी अंतरबाह्य स्थिति
केवी होय?
उ.– अरिहंत प्रभुने अंतरंगमां संपूर्णज्ञान,
संपूण दर्शन, संपूर्ण सुख अने संपूर्ण वीर्य प्रगट होय छे
अने बाह्यमां निर्ग्रंथ शरीरनो संयोग अने
समवसरणादिकनी रचना तथा दिव्यध्वनि वगेरे होय छे.
६१. प्र.– सिद्ध प्रभु जेवो अनुभव करवा माटे
केवी मान्यता करवी?
उ.– जेवा सिद्ध भगवान छे तेवो ज हुं पण
सिद्ध समान ज छुं. सिद्धने जे भाव न होय ते भाव