ः प८ः आत्मधर्मः ३९
मारूं स्वरूप नथी–एवी मान्यतापूर्वक आत्मानुं ध्यान
करतां सिद्ध प्रभु जेवो अनुभव थाय छे.
६२. प्र.– जीव सिद्ध भगवानने भाव नमस्कार क्यारे
करे छे?
उ.– साधकदशानी शरूआतथी साधकदशानी पूर्णता
सुधी सिद्ध भगवानने नमस्कार करे छे.
६३. प्र.– सिद्धदशा सादि अनंत केम छे?
उ.– केमके ते सिद्धदशा पोताना स्वस्वभावने
अवलंबीने प्रगटी छे तेथी ते ध्रुव छे. सिद्धदशा ते
स्वभावभूत छे, एटले प्रगटया पछी तेनो कदी नाश
थतो नथी. जे भाव स्वभावभूत होय तेनो कदी नाश
थाय नहि.
६४. प्र.– आत्माने सिद्धसमान स्थाप्यो एटले के
सिद्धदशा ज आत्मानी छे, तो पछी श्रावक–मुनिदशा
आवे ते कोनी छे?
उ.– श्रावक–मुनिदशा ते जो के आत्मानी ज पर्यायो
छे परंतु अहीं तो आत्मानो पूरो स्वभाव बताववो छे
तेथी पूरी अवस्था ते ज आत्मानुं स्वरूप छे पण
श्रावकमुनि वगेरे अधुरी अवस्था ते आत्मानुं स्वरूप
नथी. जे श्रावक के मुनिदशा जेटलो आत्माने माने ते
संपूर्ण शुद्ध आत्माने ओळखी शके नहि.
६प. प्र.– सर्वार्थसिद्धिनो भव तेमज तीर्थंकरगोत्र ते
आत्माना आश्रये छे के केम?
उ.– सर्वार्थसिद्धिनी सामग्री अने तीर्थंकरगोत्र ए तो
बंने जड छे–पुद्गलोने आधारे छे; परंतु जे रागथी ते
सर्वार्थसिद्धिनो भव मळे के तीर्थंकरगोत्र बंधाय ते राग
पण खरी रीते आत्माना आश्रये नथी. केम के जे भाव
आत्माना आश्रये होय ते भाव आत्माना आश्रये
सदाय टकी रहेवो जोईए. पण रागादि भाव तो नाश
पामी जाय छे, माटे तेनो आधार आत्मा नथी.
सम्यग्दर्शनादि जे गुणो प्रगटे तेनो आधार आत्मा छे.
६६. प्र.– सिद्ध भगवानने कयुं गुणस्थान होय?
उ.– सिद्ध भगवानने एके गुणस्थान होय नहि; केम
के जे चौद गुणस्थान छे ते बधाय संसारी जीवने ज होय
छे, गुणस्थाननुं कारण मोह अने योग छे,
सिद्धभगवानने मोह के योग होता नथी तेओ
गुणस्थानथी पार (मुक्त) छे.
६७. प्र.–ज्ञानीओ कहे छे के–नवमी ग्रैवेयके जनारा
अनंत जीवो अत्यारे नरक–निगोदमां पडया छे–तो तेनुं
शुं कारण?
उ.–शुभभाववडे नवमी ग्रैवेयक सुधी जवा छतां ते
जीवो आत्मानुं साचुं स्वरूप समज्या नहि अने
मिथ्यात्व छोडयुं नहि तेथी तेओने संसारपरिभ्रमण टळ्युं
नहि.
परिभ्रमणनुं कारण विकार होवाथी ते सदा बदल्या करे छे
एटले अज्ञानी जीव शुभराग पलटीने अल्पकाळमां
अशुभराग करीने नरकादिमां जाय छे अने तत्त्वनो
विरोधी होवाथी परंपरा ते निगोद जाय छे. संसारमां
भ्रमण करता जीवनो सौथी वधारे काळ निगोदमां ज
जाय छे.
६८. प्र.–समयसारनुं स्वरूप आत्माथी समजे तेने शुं
मळे?
उ.–समयसार एटले शुद्धात्मस्वरूप; तेने जे आत्मा
समजे ते जीव तेवा शुद्धात्माने पामे अर्थात् रत्नत्रयीने
पामीने ते जीव अल्पकाळमां पंचमगति जे मोक्ष तेने
पामे.
६९. प्र.–आ जीवने अनंत भवो कोनां कारणे थया?
उ.–पोताना आत्मानी ओळखाण न करी तेना कारणे
अनंतभव थया छे.
७०. प्र.–ते अनंतभव केम टळे?
उ.–पोताना आत्मानी साची समजण (सम्यग्दर्शन)
छे.
७१. प्र.–अहीं नमस्कार कोने कर्यां अने शुं समजीने
कर्या छे?
उ.–अहीं सिद्धभगवंतोने नमस्कार कर्या छे. जेम
सिद्धभगवान सर्व प्रकारे शुद्ध छे तेम मारो स्वभाव पण
सर्व प्रकारे शुद्ध सिद्ध समान ज छे– एम सिद्ध समान
पोताना आत्माने स्वीकारीने अहीं नमस्कार कर्या छे.
७२. प्र.–जेमां एक समयमां अनंत गुणोनी अनंत
आनंदमय पूर्ण अवस्था छे एवी सिद्धदशाने कोनी उपमा
आपशो?
उ.–आ जगतमां एवी कोई ज वस्तु नथी के जेनी
साथे सिद्धदशाने सरखावी शकाय! एटले सिद्धदशा
अनुपम छे. सिद्धनी उपमा सिद्धने. अर्थात् सिद्धदशा
केवी? के जेवा सिद्ध भगवान तेवी.
७३. प्र.–सिद्ध भगवानने शरीर वगेरेनो संयोग तो
होतो नथी, तो पछी सिद्ध भगवानने सुख कई वस्तुनुं?
उ.–सुख ते जीवनो स्वभाव छे. सुख के दुःख
परवस्तुने आधारे नथी. संसारी जीव पण शरीर, पैसा,
खोराक वगेरेनो भोगवटो करतो नथी परंतु तेने जाणे छे
अने राग करीने ते रागने ज भोगवे छे. अने सिद्ध–
भगवान संपूर्ण ज्ञान करे छे अने राग करता नथी तेथी
तेओ पोताना वीतराग अनाकुळ स्वभावने भोगवे छे,
तेनुं ज सुख छे. दरेक जीव पोतानी पर्यायमां ज सुख–
दुःखने भोगवे छे. सिद्ध भगवाननी पर्याय संपूर्ण
ज्ञानमय शुद्ध होवाथी तेओ संपूर्ण सुखने भोगवे छे.
(चालुं...)