Atmadharma magazine - Ank 039
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष चोथुंसळंग अंकपोषआत्मधर्म
अंक त्रीजो३९र४७३
मोक्षमार्ग
रुचि तो आत्मानो गुण छे, ए क्यांक रुचि तो करशे ज. जे तरफनी रुचि करे ते तरफनी
परिणति थाय. जो स्वभावनो महिमा लावीने स्वभावनी रुचि करे तो स्वभाव तरफनी परिणति
(–मोक्षमार्ग) प्रगटे अने जो परमां रुचि करे तो संसार तरफनी विकारी परिणति थाय. पण
परिणति वगर तो कोई ज जीव होता नथी.
पोताना स्वभाव सामर्थ्यना महिमाने यथार्थपणे जाणे तो तेनी रुचि करे अने रुचि करे
तो ते तरफ परिणति लंबाईने स्थिर थाय अने स्वभावनुं कार्य अर्थात् मोक्ष प्रगटे. आ टूंकामां
मोक्षनो उपाय जाणवो.
(मोक्ष अधिकार गाथा–२९७)
अज्ञानीओ भले पुकारे...
ज्यारे सत्य वस्तुस्वरूपने ज्ञानीओ प्रगट करे छे त्यारे वस्तुस्वरूपने नहि जाणनारा अज्ञानीओ, पोतानी
कल्पना करतां जुदी रीते वस्तुस्वरूप सांभळीने तेनो विरोध करे छे–ए अज्ञानीनो स्वभाव छे. परंतु सत्य
वस्तुस्वरूप तो जेम छे तेम ज छे. आप्तमीमांसा–गाथा ११० मां श्री समंतभद्राचार्य कहे छे के–
‘यहां एसा जानना जो वस्तु है सो तो प्रत्यक्षादि प्रमाण का विषयभूत सत् असत् आदि विरुद्ध धर्म
का आधाररुप है सो अविरुद्ध है। सो अन्यवादी ‘सत् रूप ही है’ तथा ‘असत् रूप ही है’ एसा ऐकान्त कहै
तौ कहो, वस्तु तो ऐसैं है नाहीं। वस्तु ही अपना स्वरूप अनेकान्तात्मक आप दिखावै है तो हम कहा करे?
वादी पूकारे हे ‘विरुद्ध हैरे विरुद्ध है रे’ तौ पुकारो, किछू निरर्थक पुकारनेमें साध्य है नाहिं।’
अर्थः– अहीं एम जाणवुं के जे वस्तुस्वरूप छे ते तो प्रत्यक्षादि प्रमाणना विषयभूत, अस्ति–नास्ति आदि
विरुद्ध धर्मोना आधाररूप छे, ते अविरुद्ध–सत्य छे. छतां अन्यवादी तेने ‘एकांतअस्तिरूप छे’ अथवा ‘एकांत
नास्तिरूप छे’ एम एकांत कहे तो भले कहो, परंतु वस्तु तो एवी नथी. वस्तु ज पोते पोतानुं स्वरूप अनेकांतात्मक
देखाडे छे तो अमे शुं करीए? वादी (–अज्ञानीओ) पूकारे छे के ‘विरुद्ध छे रे, विरुद्ध छे’ तो भले पुकारो, तेमना
निरर्थक पुकारथी कांई साध्य नथी.
अज्ञानीओ पोकार करे तेथी कांई वस्तुस्वरूप फरी जवानुं नथी. जेम छे तेम वस्तुस्वरूप कहेवा छतां
अज्ञानी विरोधनो पोकार करे तो भले करे, पण ज्यां सत्य वस्तु पोतानुं स्वरूप एम जाहेर करे छे तो ज्ञानीओ
बीजुं केम कहे? माटे ज्ञानीओ वस्तुस्वरूपने जेम छे तेम निःशंकपणे जाहेर करे छे.
अहीं अस्ति, नास्ति आदि धर्मोथी वस्तुस्वरूपनी वात करी छे, ते ज प्रमाणे वस्तुस्वरूपना बीजा पडखां
नीचे प्रमाणे छे–
‘आत्मा जडनी क्रिया करी शकतो नथी. अने जडनी क्रियाथी आत्माने लाभ के नुकसान थतुं नथी’ एम
ज्ञानीओ जाहेर करे छे, त्यारे अज्ञानीओ पोकार करे छे के ‘क्रिया ऊडी जाय छे.’ अज्ञानीओ पोकारे तो भले
पोकारो, पण आत्मानुं वस्तुस्वरूप ज स्वयं एम बोले छे के चैतन्यनी वस्तुनी क्रिया चैतन्यमां ज छे, ज्ञाननी
स्थिरता ते ज मारी (–आत्मानी) वास्तविक क्रिया छे; हुं जडथी भिन्न छुं, जडनी क्रिया साथे मारे संबंध नथी. माटे
पुकार व्यर्थ छे.
‘पुण्य ते विकार छे, पुण्य करतां करतां आत्माने धर्म थतो नथी’ एम ज्यारे ज्ञानीओ जाहेर करे छे, त्यारे
अज्ञानीओ विरोधथी पुकारे छे के ‘अरे, पुण्य ऊडी जाय छे.’ अज्ञानीओ भले पुकारे, पण ज्यांं पुण्यनुं अने धर्मनुं
सत्य स्वरूप ज एवुं छे त्यां ज्ञानीओ शुं करे? अज्ञानीनो ते पुकार व्यर्थ छे.
‘निमित्त परवस्तुनी हाजरी मात्र छे, उपादानना कार्यमां ते कांई करी शकतुं नथी, निमित्त आवे तो कार्य
थाय–एम नथी, उपादानना पोताना स्वभावथी ज कार्य थाय छे’–आम ज्ञानीओ कहे छे. त्यारे अज्ञानीओ विरोध
करीने पुकारे छे के ‘रे निमित्त उडी जाय छे.’ तेमनो ए पुकार व्यर्थ छे, केम के उपादान अने निमित्तनी हद ज तेटली
छे. ज्यां वस्तु पोते ज पोताना स्वरूपनो पोकार करी रही छे त्यां कोईनो विरोध काम आवे तेम नथी.