ः ४४ः आत्मधर्मः ३९
चैतन्यघन अमृत–स्वरूप आत्मा ते आ मृतक कलेवरमां मूर्छाई गयो. अहा! शुं आ शरीर ते अमृतनो पिंड
छे के तेमांथी अज्ञानी जीव सुखनां बटकां भरी लेवा मागे छे? सुख स्वरूप भगवान आत्माने जेणे जाण्यो नथी एवा
मूढ प्राणी विषयादिद्वारा शरीरमांथी सुख लेवा मागे छे–ज्यारे–ज्ञानी धर्मात्मा तेनाथी उदास रहीने आत्मानुं कल्याण
करे छे.
वळी आ शरीरनुं आयुष्य तो पाणीना परपोटा जेवुं छे, क्षणमां फू थई जशे. अने धन, कुटुंब, स्त्री, पुत्र
वगेरे पवननां वादळां जेवां छे, पवनथी वादळां भेगां थाय अने बीजी दिशाना पवननुं झापटुं आवे त्यां वीखराई
जाय. तेम ज्यां सुधी पुण्य होय त्यां सुधी आ स्त्री, पुत्र, धन वगेरे भेगां रहे अने ज्यां पापनो पवन वायो के बधा
उडी जवाना छे. कोई क्यांक अने कोई क्यांक चाल्या जशे. आ आत्मानुं भान न कर्युं तो पुण्य–पापना वंटोळीए
चोराशीमां क्यांय उडी जशे, पत्तो पण नहि खाय!
एक माणस एकलो मुंबईमां गयो, त्यां पैसा भेगां थयां, बायडी परण्यो छोकरां थयां–एम पुण्यना कारणे
मुंबईमां ने मुंबईमां बधुं भेगुं थयुं अने केटलाक वर्षो सुधी तो बधुं रह्युं पण त्यां पापनो एवो पवन फुंकाणो के
अकस्मात (मुंबईनी होनारत) मां बधुं चाल्युं गयुं अने पोते एकलो रह्यो. जेवो एकलो मुंबई गयो हतो तेवो ज
पाछो आव्यो, वचमां बधुं बनी गयुं. जेनो संयोग थयो तेनो वियोग तो अवश्य थाय ज.
वळी आंखना कटाक्षनी जेम विषयादिनुं सुख चंचळ छे. ‘विषयादिनुं सुख’ ए भाषा पण अज्ञानीए मानी
राख्युं छे ते अपेक्षाए वापरी छे, खरेखर विषयादिमां सुख छे ज नहीं. अज्ञानीए मात्र कल्पनाथी विषयादिमां सुख
मान्युं छे, ते पण क्षणिक छे. तेथी स्त्री, पुत्र, धन के शरीर वगेरेना मळवाथी डाह्या पुरुषे हर्ष न करवो जोईए अने
जवाथी शोक न करवो जोईए. ए वात तो जगप्रसिद्ध छे के, जे उत्पन्न थाय तेनो अवश्य नाश थाय छे. तेथी संयोग
वियोगमां हर्ष–शोक न मानतां जे रीते आत्मानुं कल्याण थाय ते ज करवुं योग्य छे.
देहना संबंधमां क्यांय सुख नथी. घडीमां रोग, घडीमां क्षय वगेरे शरीरना संबंधे तो दुःख अने शोकनी ज
उत्पत्ति छे ते माटे डाह्या पुरुषोए आत्मानुं ज ज्ञान करवा जेवुं छे के जेथी फरीने दुःख अने शोकनुं घर एवा आ
शरीरनो संयोग ज न मळे!
पूर्व कर्मने लईने मळेलां, स्त्री, पुत्र, शरीरादिनो वियोग थतां गांडा माणसनी लीलानी जेम (गांडा मनुष्यनुं
दृष्टांत आगळ आवशे) कांई पण प्रयोजन वगर मफतनो शोक करे छे, शोक करवाथी कांई स्त्री, पुत्रादि पाछां
आववानां नथी, छतां मूर्ख मनुष्य शोक करे छे, अने भविष्यमां फरी तेवो वियोग थाय एवां कर्म उपार्जे छे, माटे ते
प्रमाणे डाह्या पुरुषोए शोक न करवो जोईए.
चोराशीना अनित्य पदार्थोमां शरीर धारण करवुं अने तेने जतुं करवुं नहीं ए केम बने? मोटा चोकमां
बंगलो बांध्यो होय अने पासेथी मोटर, घोडा, माणसो वगेरे पसार थाय तेने “मारां मारां” एम मानीने रोकी
राखवा मागे तो तेम चाले नहीं. चौटा वच्चे बंगलो बांधवो अने पासेथी माणस वगेरेने जवा न देवा ए केम बनी
शके? तेम चोराशीना चार गतिना चौटे शरीर धारण करवुं अने ते जतां राडो पाडवी अने शरीरने न जवा देवुं ए
केम बने?
एकवार भोजा भगतनो दीकरो मरी गयो त्यारे बधा मोंकाणिया भेगा थईने छाजीया लेवा मंडया त्यारे
भोजा भगतने थयुं के आ बधा मफतनो कूटारो करे छे, त्यारे तेणे कह्युं– सांभळो, हुं छाजीया लेवरावुं, एम कहीने
गवराववा मांडयुंः–
अरे रोनाराओ?
मरनाराने शीद तमे रूओ रे?
रोनारा नथी रहेवाना; तमे मरनाराने शीद रूओ रे?
बीजो प्रसंगः– एक डाॉकटरनो जुवान दीकरो मरी गयो त्यारे छोकरानी मा खूब रडे–खूब रडे! अने मडदाने
बहार काढवा न दे, त्यारे डोकटर जराक समजु माणस हतो, तेणे बायडीने कह्युं के बोल! तारे रडवुं छे कोने? आ
देहमांथी जे चाल्यो गयो तेने (आत्माने) तो आपणे जीवता कदी जाण्यो नथी, अने आ शरीरने
–त्रण फाइल–
संभव छे के घणा ग्राहको पासे पहेला, बीजा के त्रीजा वर्षनी गुजराती आत्मधर्मनी फाइल नहि होय. एथी
जेओने आत्मधर्मनी शरूआतथी आज सुधीना प्रवचनो तेमज लेखोनु वांचन–मनन करवु होय तेओ पोतानी पासे
जे वर्षनी फाइल न होय ते वसावे.
दरेकनी किं रूा. ३–४–० ट.ख. रजीस्ट्रेशन साथे ०–९–०
प्राप्तिस्थानः आत्मधर्म कार्यालय, मोटा आंकडिया– काठियावाड.