Atmadharma magazine - Ank 039
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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पोषः २४७३ः ४पः
छोकरा तरीके मान्युं छे तो तुं रडे छे कोने? जे शरीरने छोकरा तरीके मान्यु हतुं ते शरीर तो हजी पडयुं छे, अने तुं
कहे तो आपणे तेने पटारामां राखी मूकीए? त्यारे स्त्री कहे ए मडदुं तो सडी जाय! त्यारे रडे छे कोने? शरीर
गंधाई जाय अने आत्माने जाण्यो नथी. पोताने ज खबर नथी के ‘हुं कोने माटे रडुं छुं?’ विचार ज करता नथी.
रोवाथी कांई मरनार तो पाछा आवनार नथी, ऊलटुं आर्तध्यान थशे अने फरीथी एवो वियोग थाय एवा अशुभ
कर्म बांधशे; माटे डाह्या पुरुषोए संयोग–वियोगमां हर्ष–शोक करवो योग्य नथी.
जेम सूर्य अस्त थवा माटे ऊगे छे तेम आ शरीरादिनो संयोग पण अवश्य वियोग थवा माटे ज थाय छे;
जे उत्पन्न थाय तेनो नाश पण अवश्य थाय ज एवो नियम छे; माटे संयोग–वियोगमां डाह्या पुरुषो हर्ष–शोक
करता नथी.
जेम वृक्षमां क्रमेक्रमे डाळीओ, फूल, फळ विगेरे ऋतु अनुसार फाले छे अने पाछा सूकाई जाय; (भादरवा
मासमां भींडो एकदम फाले अने पाछो एकाद मास पछी सूकाई जाय छे;) जेम मनुष्य पोत–पोताना कर्मानुसार
ऊंच, नीच कूळमां जन्मे छे अने त्यां स्त्री, पुत्रादि सौ सौना कर्म प्रमाणे आवे छे अने टाणां आव्ये चाल्या जाय छे.
अहो हो! आवुं अनित्य शरीर! छेल्लुं डचकुं लईने देह छोडीने चाल्यो जाय त्यां पासे बेठेलां तो हजी शरीर
तपासता होय के नाडी चाले छे के नहीं अर्थात् अंदर आत्मा छे के नहीं! एम अहीं तपासता होय त्यां तो ते जीवनो
बीजे अवतार पण थई गयो होय! केमके देह छोडतां ज बीजा भवनुं आयुष्य साथे लईने गयो छे, तेथी तरत ज
बीजो देह धारण करे छे.
छेल्लो ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती थयो, तेना पूर्वना पुण्यने कारणे ९६००० तो स्त्रीओ हती, अने १६००० देवो सेवा
करता हता, तथा ३२००० तो मोटा शहेनशाह जेवा राजाओ तेनी सेवामां हता अने अन्नदाता–अन्नदाता करता
हता; अने ज्यां जीवन पूरूं थयुं त्यां पहेली पळनो अन्नदाता बीजी पळे अन्न वगरनो थईने गयो सातमी
अप्पयठाणा नरकमां! त्यां अबजो–अबजो वर्ष सुधी अन्ननो दाणो के पाणीनुं टीपुंय न मळे! क्यां ९६०००
स्त्रीओ, १६००० देवो अने ३२००० मोटा राजाओ वाळुं चक्रवर्तीनुं राज अने क्यां सातमी नरक!
ऋषभदेव भगवान तीर्थंकर थवाना हता, ते पहेलां राजपाटमां हता, तेमने चारित्र अंगीकार (मुनिदशा)
पहेलां वैराग्यनुं निमित्त केवी रीते बन्युं तेनी वात आ प्रमाणे छे; – ज्यारे तेमने दीक्षानो काळ थयो त्यारे इन्द्रे
देवीओना नाचमां एक एवी देवीने गोठवी के जेनुं आयुष्य नाच करतां करतां ज पूरुं थई जवानुं हतुं. श्रीऋषभदेव
सभामां हता अने सामे देवीओनुं नृत्य थतुं हतुं. त्यां नाच करतां करतां ज ते देवीनुं आयुष्य पूरूं थई गयुं अने
(देव–देवीनुं शरीर एवुं होय छे के आयुष्य पूरूं थतां तेना परमाणुओ वीखराई जाय छे) तेनां शरीरनां परमाणुओ
छूटा पडी गया. इन्द्रे तरत ज ते जग्याए बीजी देवीने गोठवी दीधी, पण नाचमां वच्चे जराक भंग पडयो ते
श्रीऋषभदेवना लक्षमां आवी गयुं अने ऋषभदेवे तेनुं कारण इन्द्रने पूछतां ईन्द्रे प्रथमनी देवीनुं आयुष्य पूरूं
थवानी वात जणावी! आ वखते ऋषभदेव भगवानने वैराग्यनुं निमित्त थयुं के अहो! आ क्षणभंगुर देह! क्यारे
देहनो वियोग थई जशे–एनो भरोसो नथी! देह तो नाशवान छे. शीघ्र आत्मकार्य करवुं ए ज श्रेष्ट छे, एम श्री
ऋषभदेव भगवानने वैराग्य थयो अने त्यारपछी तुरत ज तेओए दीक्षा लीधी हती.
जुओ! नाचमांथी पण वैराग्यनुं निमित्त मळ्‌युं. श्रीमद् राजचंद्रजीए कह्युं छे के–‘गमे तेवा तुच्छ विषयमां
प्रवेश छतां उज्जवळ आत्माओनो स्वतः वेगवैराग्यमां झंपलाववुं ए छे.’ ज्ञानीओ तो दरेक प्रसंगमां वैराग्यनी
वृद्धि ज पामे छे.
– त्रण पुस्तिका –
पुरुषार्थ–एक प्रवचन–किं. ०–४–० ट. ख. ०–१–०
(श्री सद्गुरुदेवश्रीनुं स्वामीकार्तिकेय गाथा ३२१–२२–२३ पर प्रवचन)
सामान्य अने विशेष–एक प्रवचन–
किं. ०–२–० ट. ख. ०–०–९
(परम पूज्य सद्गुरुदेवश्रीनुं श्रुतपंचमीः २४७१नुं व्याख्यान)
उपादान निमित्त दोहा किं. ०–१–० ट. ख. ०–०–९
(भैया भगवतीदास कृत ४७ दोहा अर्थ साथे)
प्राप्तिस्थानः आत्मधर्म कार्यालय, मोटा आंकडिया–काठियावाड