छोकरा तरीके मान्युं छे तो तुं रडे छे कोने? जे शरीरने छोकरा तरीके मान्यु हतुं ते शरीर तो हजी पडयुं छे, अने तुं
कहे तो आपणे तेने पटारामां राखी मूकीए? त्यारे स्त्री कहे ए मडदुं तो सडी जाय! त्यारे रडे छे कोने? शरीर
गंधाई जाय अने आत्माने जाण्यो नथी. पोताने ज खबर नथी के ‘हुं कोने माटे रडुं छुं?’ विचार ज करता नथी.
रोवाथी कांई मरनार तो पाछा आवनार नथी, ऊलटुं आर्तध्यान थशे अने फरीथी एवो वियोग थाय एवा अशुभ
कर्म बांधशे; माटे डाह्या पुरुषोए संयोग–वियोगमां हर्ष–शोक करवो योग्य नथी.
करता नथी.
ऊंच, नीच कूळमां जन्मे छे अने त्यां स्त्री, पुत्रादि सौ सौना कर्म प्रमाणे आवे छे अने टाणां आव्ये चाल्या जाय छे.
बीजे अवतार पण थई गयो होय! केमके देह छोडतां ज बीजा भवनुं आयुष्य साथे लईने गयो छे, तेथी तरत ज
बीजो देह धारण करे छे.
हता; अने ज्यां जीवन पूरूं थयुं त्यां पहेली पळनो अन्नदाता बीजी पळे अन्न वगरनो थईने गयो सातमी
अप्पयठाणा नरकमां! त्यां अबजो–अबजो वर्ष सुधी अन्ननो दाणो के पाणीनुं टीपुंय न मळे! क्यां ९६०००
स्त्रीओ, १६००० देवो अने ३२००० मोटा राजाओ वाळुं चक्रवर्तीनुं राज अने क्यां सातमी नरक!
देवीओना नाचमां एक एवी देवीने गोठवी के जेनुं आयुष्य नाच करतां करतां ज पूरुं थई जवानुं हतुं. श्रीऋषभदेव
सभामां हता अने सामे देवीओनुं नृत्य थतुं हतुं. त्यां नाच करतां करतां ज ते देवीनुं आयुष्य पूरूं थई गयुं अने
(देव–देवीनुं शरीर एवुं होय छे के आयुष्य पूरूं थतां तेना परमाणुओ वीखराई जाय छे) तेनां शरीरनां परमाणुओ
छूटा पडी गया. इन्द्रे तरत ज ते जग्याए बीजी देवीने गोठवी दीधी, पण नाचमां वच्चे जराक भंग पडयो ते
श्रीऋषभदेवना लक्षमां आवी गयुं अने ऋषभदेवे तेनुं कारण इन्द्रने पूछतां ईन्द्रे प्रथमनी देवीनुं आयुष्य पूरूं
थवानी वात जणावी! आ वखते ऋषभदेव भगवानने वैराग्यनुं निमित्त थयुं के अहो! आ क्षणभंगुर देह! क्यारे
देहनो वियोग थई जशे–एनो भरोसो नथी! देह तो नाशवान छे. शीघ्र आत्मकार्य करवुं ए ज श्रेष्ट छे, एम श्री
ऋषभदेव भगवानने वैराग्य थयो अने त्यारपछी तुरत ज तेओए दीक्षा लीधी हती.
वृद्धि ज पामे छे.