Atmadharma magazine - Ank 039
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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ः ४६ः आत्मधर्मः ३९
अत्यार सुधी बधुं अंधकारमां ज गाळ्‌युं. अहोहो! अमृतकुंभ आत्मा तेने भूलीने आ
मृतककलेवरमां चैतन्य भगवान आत्मा मूर्छाई पडयो!!! जेम अंधकारमां नाच करे तेने कोई देखी शके
नहीं अने नाचनारनी महेनत नकामी जाय, तेम अज्ञानरूपी अंधकारथी घेरायेलो अज्ञानी जीव, जो के पूर्व
कर्ममां कांई पण फेर पाडवानो नथी छतां परद्रव्यमां अहंभाव अने कर्तृत्वभाव करीने नाच कर्या करे छे, अने
फरी अशुभ कर्मो बांधे छे.
वळी जेम सर्प चाल्या पछी तेना लीसोटा उपर लाकडी मारवी ते नकामुं छे, तेम स्त्री, पुत्रादि मरी गया
पछी तेनो शोक करवो तेमां कांई प्रयोजननी सिद्धि नथी; माटे ‘पूर्व कर्म अनुसार जे प्राणीनो जे काळमां अंत
आववानो हतो तेम ज बन्युं छे’ एम श्रद्धा करीने, हे भव्य जीवो! संयोग वियोगमां हर्ष शोक छोडी दईने
रुचिपूर्वक आ धर्मनुं आराधन करो. जेनी प्रत्ये ‘मारे आना वगर एक मिनिट पण नहीं चाले’ एम मानतो हतो
तेना विना अनंतकाळ चाल्यो गयो छतां तुं तो ते ज छो. अने जेने दुश्मन गणीने मोढुं पण जोवा नहोतो इच्छतो ते
ज जीव तारा ज घरे स्त्री, पुत्रादिपणे अनंतवार आवी गया; छतां तारामां कांई फेर पडी गयो नथी. माटे पर प्रत्ये
राग–द्वेष करवो वृथा छे एम कहेवानो आशय छे.
आगळ जतां आचार्यदेव कहे छे के–पूर्वकर्मने कारणे पोताने आवी पडेला संयोगोथी छुटवा माटे जे
महेनत करे छे ते, जो के मूर्ख तो छे, परंतु स्त्री, पुत्रादिना वियोगमां जे शोक करे छे, ते तो मूर्खनो शिरोमणि
छे, केमके तेमां तो उलटुं दुःख वधे छे नवां अशुभ कर्म बंधाय छे; तेथी विद्वानोए स्त्री आदिना वियोगमां शोक
न करवो जोईए.
हे भाई! आ आखो संसार ते इन्द्रजाळ समान अनित्य छे; अने केळना थड जेवो छे. जेम केळनां थड
उपर देखाय लीलांछम अने अंदर होय पोला भम! तेम स्त्री, शरीरादिनो संयोग जाणे आवोने आवो कायम
रहेशे एम अज्ञानीने लागे छे पण ते तो क्षणिक छे एक पळमां फरी जशे! हे मूढ मनुष्य! आ स्त्री, पुत्रादि
तेमां मरे कोण? शुं आत्मा मरे छे? आत्मा तो त्रिकाळी पदार्थ छे, ते आ देह छोडीने बीजे ठेकाणे अवतर्यो
छे; छतां जे आत्माने मरी गयो एम मानीने मरनारनी पाछळ शोक करे छे ते आत्माने क्षणिक माननार
बौद्ध समान छे. हे भाई! तुं जेे माटे शोक करे छे, तेे तो परलोकमां रहेलां छे, ते होवा छतां तेने माटे शोक
करवो ते व्यर्थ छे, माटे स्त्री, पुत्रादिनो शोक छोडी दईने आत्मस्वरूपनी एवी ओळखाण कर के जेथी तने
अविनाशी अने उत्तम सुखनी प्राप्ति थाय.
जो संसार संंबंधी एकपण चीजनो संयोग सारभूत के नित्य रहेतो होत तो तो जे शोक करे छे ते व्यर्थ न
होत, पण संसारमां कोई पण चीज एवी तो नथी के जेनो संयोग कायम टकी रहे! संसारमां तो दरेक चीजनो
संयोग अने वियोग थया ज करे छे; माटे आत्मानी श्रद्धा–ज्ञान अने स्थिरतारूप रत्नत्रयीनुं आराधन करो! ए ज
शाश्वत सुखना देनार छे. परवस्तुमां मारापणुं मानीने तेना वियोग वखते अज्ञानी मफतो दुःखी थाय छे; आ
संबंंधमां एक गांडानुं द्रष्टांतः– कोई गांडो माणस नदीने किनारे बेठो हतो त्यांं कोई राजाना लश्करे पडाव नाख्यो,
तेमां हाथी, घोडा, रथ वगेरे हतुं; गांडो विचार करवा लाग्यो के आ बधुं मारूं लश्कर आव्युं, आ रथ मारो, आ हाथी
मारो एम ते बधाने पोतानुं मानी बेठो; आ लश्कर तो तेनो वखत थतां चालतुं थयुं, तेने जतुं जोईने गांडो कहे–
अरे! केम चाल्या जाव छो? लश्करना माणसो समजी गया के आ कोई गांडो छे; लश्कर वगेरे तेना पोताना कारणे
आव्या हता अने पोताना कारणे चाल्या जाय छे. तेम ज्यां आ जीव जन्मे छे
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट तरफथी प्रकाशित ग्रंथो नीचेना स्थळोएथी पण मळशे...
१. मुंबईः– “श्रीकुंदकुंद स्टोर्स” स्वदेशी मार्केट, शमी गली, कालबादेवी रोड.
२. अमदावादः– शाह न्यालचंद मलुकचंदः काळुपुर पोस्ट ओफिस पासे, अमृत भुवन–त्रीजे माळे.
३. करांचीः– शेठ मोहनलाल वाघजी. सुतार स्ट्रीट, रणछोड लाईन.
४. गोंडलः– खत्री वनमाळी करसनजी, कापडना वेपारी.
आ उपरांत वींछीया, लाठी, वढवाण केम्प अने वढवाण शहेरना श्री जैन स्वाध्याय मंदिरेथी पण मळी
शकशे.