त्यां बीजा संयोगो एना पोताना कारणे आवी मळे छे, अने तेनो वखत पूरो थता चाल्या जाय छे; त्यां गांडानी
जेम अज्ञानी जीव ‘मारूं मारूं’ करीने दुःखी थई रह्यो छे. ‘जेणे जोडी तेणे तोडी’ आ शरीर आव्युं अने ते छूटयुं.
शरीर न छूटे तो शुं ज्ञान छूटे? जेनो संयोग थयो हतो तेनो ज वियोग थाय छे. संयोग वखते जेमां सुख मान्युं हशे
तेना वियोग वखते दुःख थया विना रहेशे नहीं. पण जो संयोग वखते ज वियोगनुं भान हशे तो वियोग वखते
आकूळता थशे नहीं. संयोग–वियोग ते सुख–दुःखनुं कारण नथी, पण कल्पनामां सुख–दुःख अज्ञानी माने छे.
सार्थक छे. मनुष्यपणुं अनंतकाळे दुर्लभ, तेमां पण घणा जीवो तो गर्भमां ज मरी जाय छे, केटलाक जन्मता ज मरी
जाय छे, कोई बाल्यावस्थामां मरी जाय छे, अने लांबु आयुष्य होय तेमां घणा तो मांसाहारी कुळमां अने घणा
चांडाळ कुळमां जन्मे छे तेमने तो धर्म समजवानी वृत्ति ज थती नथी होती. आचार्यदेव कहे छे के संसारना दुःखोथी
मुक्त करवामां आत्मभान सिवाय जगतमां कोई समर्थ नथी. माटे आत्मभान ए ज प्रथम कर्तव्य छे.
होय? बीजानुं शुं थयुं ते जोवा बेठो छो पण पोतानुं शुं थाय छे ते जोतो नथी! भाई! परनुं तो अनादिथी जोतो
आव्यो छो, पण तारूं शुं थई रह्युं छे ते तो हवे जो! एक धर्म ज आत्माने धारी राखे छे. धर्म ए ज आत्माने
शरणभूत छे. (धर्म=स्वभाव).
करडयो, डोसीने खबर पडी त्यां तो एकदम रोवा लागी अने माथुं कूटवा लागी. पण त्यां जंगलमां शरण कोण!
शरणभूत एवुं जे पोतानुं स्वरूप छे तेनां तो भान न मळे अने बहारमां शरण मानी राख्यां छे, पण बहारमांथी
शरण मळे तेम नथी.
मळेली सामग्रीना भोगवटामां ज जीवन पुरूं कर्युं छे तेथी तेना वियोग टाणे झुरे छे. अने ज्ञानी सम्यग्द्रष्टि देव होय
ते तो देह छूटवा टाणे शाश्वत जिनदेवनी प्रतिमा पासे जाय, त्यां खूब भक्ति करे के ‘अहो! जिनदेव! आप पूर्ण
थई गया, अमारा स्वरूपनी भावना अधूरी रही गई, हवे मनुष्य थईने अमारी आराधना पूर्ण करशुं’ एम खूब
भक्ति करीने जिन प्रतिमाजीना चरणकमळमां मस्तक नमावी दीए अने त्यां ज देहना परमाणुओ छुटा पडी जाय.
आम ज्ञानी अने अज्ञानीना मरणमां मोटो आंतरो छे.
शोक न करतां आत्मानुं–ध्यान करवुं, आत्मानी श्रद्धा–ज्ञान करवां ए ज योग्य छे.
पामीने जिन नीतिने एटले के जिनेन्द्रदेवना मार्गने–न्यायने नहि उल्लंघता थका ज्ञानस्वरूप थाय छे. (मो.
शा. गु. टी. पा. ४०)