Atmadharma magazine - Ank 040
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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ः ७२ः आत्मधर्मः ४०
बंधन–मुक्ति ते माने छे; अनादिनुं महा ऊंधुंं शल्य रही गयुं छे के पुण्यथी अने निमित्तोथी लाभ थाय, परंतु बापु!
आत्माने पोतामां अनादिथी कई जातनी भूल छे अने ते कया कारणे छे ते जाणीने ते टाळ्‌या वगर छूटकारा थाय
तेम नथी. पुण्य सारूं अने पाप खराब एम जीव माने छे परंतु मारो स्वभाव सारो अने सर्व विभाव खराब एम
स्वभाव–परभाव वच्चेना भेदने ते जाणतो नथी. खरेखर तो पुण्य अने पाप बंने एक प्रकारना भावो
(विभावरूपभावो) छे, ते बंने आत्माना ज्ञानानंदस्वरूपने चूकीने निमित्त उपरना वलणवाळा जे भाव थाय तेना
ज प्रकारो छे, तेमांथी एके भाव स्वभाव तरफना वलणवाळो नथी. एक देव–गुरु–शास्त्र तरफनो शुभभाव अने
बीजो स्त्री–कुटुंब–पैसा तरफनो अशुभभाव –ए बंने पर तरफ ढळता भावोथी पोतानुं ज्ञान आनंद स्वरूप भिन्न
छे एम समज्या विना अनादिथी महान भूलरूप अज्ञान टळे नहि. सत्य समजणमां साचा ज देव–गुरु–शास्त्र
निमित्तरूपे होय छे. जो साचा देव–गुरु–शास्त्रने निमित्तरूपे न ओळखे तो अज्ञानी छे अने जो तेमनाथी पोताने
लाभ थाय एम माने तोय मिथ्यात्व छे. कोईपण निमित्त मारुं कांई करी दीए एवी मान्यता ते ज महान भूल छे
अने तेनुं फळ दुःख ज छे, माटे निमित्तना लक्षे जीव दुःखी ज थाय, सुखी थाय नहि. ए बराबर समजवुं के
निमित्तना लक्षे दुःख छे, परंतु निमित्तथी दुःख नथी. पैसा–स्त्री वगेरे तो निमित्त छे, तेनाथी जीव दुःखी नथी पण
‘आ वस्तु मारी छे, तेमां मारुं सुख छे, हुं तेनुं करी शकुं छुं’ आवा प्रकारे निमित्तनुं लक्ष करीने जीव दुःखी थाय छे.
निमित्तनुं लक्ष करवुं ते पोतानो दोष छे. उपादानना लक्षे परम आनंद होय अने निमित्तना लक्षे दुःख होय; कोईपण
परनिमित्तनुं लक्ष ते दुःख ज छे–माटे ज्ञान आनंदस्वरूपथी परिपूर्ण पोताना उपादानने ओळखीने तेना लक्षे
एकाग्रता करवी ते ज परमसुख छे अने आ ज मुक्तिनुं कारण छे. –३३–
जीव कुदेवादिना लक्षथी अशुभभावने लीधे दुःखी थाय ज, परंतु साचा देव–गुरु–शास्त्रना निमित्तना लक्षे
शुभभावथी पण जीव दुःखी थाय छे एम कह्युं–तो हे उपादान! जीवने सुख कई रीते थाय? एम हवे निमित्त पूछे
छेः–
कहै निमित्त जो दुःख सहै सो तुम हमहि लगाय,
सुखी कौन तै होत है, ताको देहु बताय. ३४.
अर्थः– निमित्त कहे छे के हे उपादान! जीव जे दुःख सहन करे छे तेनो दोष तुं अमारा उपर लगावे छे तो
जीव सुखी शाथी थाय छे ते बतावी दे!
निमित्तनुं लक्ष करीने अशुभभाव करवाथी तो जीव दुःखी थाय ज, परंतु शुभभाव करीने पुण्य बांधे तोय
जीव दुःखी थाय छे, एम कह्युं तो पछी जीव सुखी कई रीते थाय? जो उपादाननुं लक्ष करीने तेने ओळखे तो ज जीव
सुखी थाय. ज्यारे आत्मा सम्यग्दर्शन द्वारा पोताना स्वभावने ओळखीने पोतामां गुण प्रगट करे त्यारे अधूरी
अवस्थामां शुभराग आवे छे अने ज्यां राग होय त्यां पर निमित्त होय ज छे, केमके स्वभावना लक्षे राग होय
नहि. जो आत्मस्वभावनुं भान होय तो ते शुभरागने अने शुभरागना निमित्तोने (सत्देव–गुरु–शास्त्र वगेरेने)
व्यवहारथी धर्मनुं कारण कहेवाय, परंतु शुभ राग, निमित्तो के व्यवहार ए कोई आत्माने खरेखर लाभ करे के
मुक्तिनुं कारण थाय ए वात खोटी छे. राग, निमित्त अने व्यवहार रहित आत्माना शुद्ध स्वभावनी श्रद्धा–ज्ञान
अने रमणता ते ज मोक्षनुं साचुं कारण छे.
जे भावे सर्वार्थसिद्धिनो भव मळे के तीर्थंकरगोत्र बंधाय ते भाव, स्वभावनुं वलण चूकीने थतो होवाथी
दुःख ज छे. जे भावथी भव मळे अने मुक्ति रोकाय ते भाव विकार छे–दुःख छे. जेटला दुःख आपे तो बधाय भाव
निमित्त तरफना वलणथी थाय छे. निमित्तो तो परवस्तु छे, ते दुःख आपता नथी परंतु स्वनुं लक्ष चूकीने परना लक्षे
जीव दुःखी थाय छे, आम उपादाने प्रबळपणे सिद्ध कर्युं तेथी हवे निमित्ते प्रश्न उपाडयो छे के मारा तरफना तो बधाय
भावोथी जीव दुःखी ज थाय छे तो सुखी कोनाथी थाय छे ए बतावी दे? –३४–
आना उत्तरमां उपादान कहे छे केः–
जो सुखको तुं सुख कहै, सो सुख तो सुख नाहिं,
ये सुख दुःखके मूल है, सुख अविनाशी मांहिं. ३प.
अर्थः– उपादान कहे छे–जे सुखने तुं सुख कहे छे ते सुख ज नथी. ए सुख तो दुःखनुं मूळ छे. आत्माना
अंतरमां अविनाशी सुख छे.
आगला दोहामां निमित्तनो एम कहेवानो आशय हतो के–एक आत्माने स्वने भूलीने पर तरफ विचार