पडखानुं ज्ञान ते (निमित्त द्रष्टिवाळो) छोडी दे छे के–जो पोते न समजे अने ज्ञान न प्रगटावे तो सत्समागम
वगेरेनो संयोग कांई ज करवा समर्थ नथी. माटे क्यारेय कोई पण कार्य निमित्तथी थतुं ज नथी, बधांय कार्यो सदाय
उपादानथी ज थाय छे, तेथी सुख पण उपादाननी जागृति वडे सम्यग्दर्शनथी ज थाय छे.
निर्णय करतो आवे छे अने निर्णय पूर्वक स्वीकार करे छे. आ प्रमाणे अहीं सुधी तो निमित्तनी हार थई, हवे थोडीक
वारमां निमित्त हारी जशे अने ते पोते पोतानी हार स्वीकारी लेशे. –३७– (चालुं...)
छे.
७प. प्र.–स्वर्गनां सुख करतां मोक्षनां सुख अनंतगणां छे–ए खरूं छे?
मोक्षदशा तो आकुळता रहित स्वभाव सुखवाळी छे अने स्वर्गमां तो आकुळता छे, तेथी स्वर्गना सुख साथे मोक्षनां
सुख सरखावी शकाय नहि. गुणनी साथे गुणनी सरखामणी थाय पण दोषनी साथे गुणनी सरखामणी केम थाय?
एम कही शकाय के–सम्यग्द्रष्टि जीवना सुख करतां अनंतगणुं सुख सिद्ध भगवानने छे. ए ध्यान राखवुं के
सम्यग्द्रष्टिने पण स्वर्गादि पर द्रव्योमां सुख नथी, ऊल्टुं ते प्रत्येनी रागनी लागणी ते तो दुःख ज छे; परंतु
सम्यग्दर्शनपूर्वक जेटले अंशे अनाकुळभाव वर्ते छे तेटले अंशे ज सुख छे.
७६. प्र.–जेणे सिद्ध भगवंतोनी वस्तीमां दाखल थवुं होय तेणे शुं आदरवुं ने शुं छोडवुं?
सिद्धभगवानमां नथी ते बधुं मारा आत्मानुं स्वरूप नथी. आ प्रमाणे पोताना आत्मानी ओळखाणपूर्वक
स्वभावनो आदर (श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र) करवो जोईए अने मिथ्यात्व, राग–द्वेषादि विभावोने छोडवा जोईए.
७७. प्र.–स्वभावनो अभ्यास कई रीते थाय?
७८. प्र.–सिद्ध भगवान मनथी अने रागथी पार छे, तेमनुं ध्यान कई रीते थई शके?
ओळखीने ध्यान करवुं ते ज सिद्धनुं ध्यान छे; केम के जेवो सिद्धनो स्वभाव छे तेवो ज आ आत्मानो स्वभाव छे.
पोताना आत्मस्वभावने ओळख्या वगर सिद्धभगवाननुं स्मरण कर्या करे ते शुभराग छे, तेने
सिद्धभगवाननुं ध्यान कही शकाय नहि.
७९. प्र.–सिद्ध भगवानना आत्मामां अने आ आत्मामां समानता तथा असमानता कई रीते छे?