Atmadharma magazine - Ank 040
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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ः ७६ः आत्मधर्मः ४०
पडखानुं ज्ञान ते (निमित्त द्रष्टिवाळो) छोडी दे छे के–जो पोते न समजे अने ज्ञान न प्रगटावे तो सत्समागम
वगेरेनो संयोग कांई ज करवा समर्थ नथी. माटे क्यारेय कोई पण कार्य निमित्तथी थतुं ज नथी, बधांय कार्यो सदाय
उपादानथी ज थाय छे, तेथी सुख पण उपादाननी जागृति वडे सम्यग्दर्शनथी ज थाय छे.
आ रीते, सुख जीवना सम्यग्दर्शनथी ज प्रगटी शके छे एवी उपादाननी वात पात्र जीवोए समजीने
स्वीकारी अने निमित्तनी हार थई. जिज्ञासु पात्र जीव उपादान–निमित्तना संवाद उपरथी एक पछी एक वातनो
निर्णय करतो आवे छे अने निर्णय पूर्वक स्वीकार करे छे. आ प्रमाणे अहीं सुधी तो निमित्तनी हार थई, हवे थोडीक
वारमां निमित्त हारी जशे अने ते पोते पोतानी हार स्वीकारी लेशे. –३७– (चालुं...)
* * *
श्री समयसारजी गाथा एकना प्रवचनना आधारे केटलाक प्रश्नोत्तर
ः (पहेलाना ७३ प्रश्नोत्तर माटे जुओ अंक ३प तथा ३९)ः
७४. प्र.–पांच गतिमां कथंचित् सरखापणुं कई कई गतिओने छे?
उ.–सिद्धगतिने तो अन्य चारे गतिओथी विलक्षणपणुं छे एटले के सिद्धगतिने तो अन्य कोई गति साथे
सरखापणुं नथी. पण अन्य चारे गतिओने परस्पर कथंचित् सरखापणुं छे केम के ते चारे गतिओ विकारनुं ज फळ
छे.
७प. प्र.–स्वर्गनां सुख करतां मोक्षनां सुख अनंतगणां छे–ए खरूं छे?
उ.–ए वात खोटी छे, केम के स्वर्गमां तो आकुळतानुं दुःख छे; स्वर्ग करतां अनंतगणुं मोक्षमां सुख छे एम
मान्यु तेनो अर्थ ए थयो के जेटली आकुळता स्वर्गमां छे तेना करतां अनंतगुणी आकुळता मोक्षमां छे!! परंतु
मोक्षदशा तो आकुळता रहित स्वभाव सुखवाळी छे अने स्वर्गमां तो आकुळता छे, तेथी स्वर्गना सुख साथे मोक्षनां
सुख सरखावी शकाय नहि. गुणनी साथे गुणनी सरखामणी थाय पण दोषनी साथे गुणनी सरखामणी केम थाय?
एम कही शकाय के–सम्यग्द्रष्टि जीवना सुख करतां अनंतगणुं सुख सिद्ध भगवानने छे. ए ध्यान राखवुं के
सम्यग्द्रष्टिने पण स्वर्गादि पर द्रव्योमां सुख नथी, ऊल्टुं ते प्रत्येनी रागनी लागणी ते तो दुःख ज छे; परंतु
सम्यग्दर्शनपूर्वक जेटले अंशे अनाकुळभाव वर्ते छे तेटले अंशे ज सुख छे.
७६. प्र.–जेणे सिद्ध भगवंतोनी वस्तीमां दाखल थवुं होय तेणे शुं आदरवुं ने शुं छोडवुं?
उ.–जे जीवने सिद्धोनी वस्तीमां दाखल थवुं होय एटले के सिद्ध थवुं होय तेणे सिद्ध अने पोताना आत्मामां
कांई फेर मानवो न जोईए; जे कांई सिद्ध भगवानमां छे तेटलुं ज मारा आत्मानुं स्वरूप छे अने जे कांइ
सिद्धभगवानमां नथी ते बधुं मारा आत्मानुं स्वरूप नथी. आ प्रमाणे पोताना आत्मानी ओळखाणपूर्वक
स्वभावनो आदर (श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र) करवो जोईए अने मिथ्यात्व, राग–द्वेषादि विभावोने छोडवा जोईए.
७७. प्र.–स्वभावनो अभ्यास कई रीते थाय?
उ.–संपूर्ण स्वभावने पामेला सिद्धभगवानने ओळखीने, तेमना जेवा ज संपूर्ण स्वभावे पोताना आत्माने
भाववो–ते स्वभावनो अभ्यास छे.
७८. प्र.–सिद्ध भगवान मनथी अने रागथी पार छे, तेमनुं ध्यान कई रीते थई शके?
उ.–प्रथम तो, जेनुं ध्यान करवुं होय तेनुं ज्ञान करवुं जोईए. सिद्ध भगवानने द्रव्य–गुण–पर्यायथी
यथार्थपणे ओळखवा अने पोताना आत्मानो स्वभाव पण एवो ज छे एम पोताना आत्माना स्वभावने
ओळखीने ध्यान करवुं ते ज सिद्धनुं ध्यान छे; केम के जेवो सिद्धनो स्वभाव छे तेवो ज आ आत्मानो स्वभाव छे.
पोताना आत्मस्वभावने ओळख्या वगर सिद्धभगवाननुं स्मरण कर्या करे ते शुभराग छे, तेने
सिद्धभगवाननुं ध्यान कही शकाय नहि.
सिद्ध भगवानना ध्यानथी सिद्धपणुं थाय, परंतु ए परद्रव्यनुं ध्यान नहि, पण सिद्ध जेवा पोताना
स्वभावनुं ध्यान करतां करतां सिद्धदशा थाय छे. सम्यग्दर्शन वगर स्वभावनुं ध्यान होई शके नहि.
७९. प्र.–सिद्ध भगवानना आत्मामां अने आ आत्मामां समानता तथा असमानता कई रीते छे?
उ.–द्रव्य स्वभाव अपेक्षाए सिद्धने अने आ आत्माने समानपणुं छे.