वगेरे मानी लेनारा जीवो घणा मळी आवे छे, परंतु स्वभावनी साची श्रद्धारूप सम्यग्दर्शन तो लाखोमां कोईक
विरल जीवने होय तो! बाकी तो आत्मानी स्वसन्मुख थईने सम्यग्दर्शन–ज्ञान कर्या वगर कोई घणा शास्त्रो भणीने
पंडित नाम धरावे, के कोई पडिमा, व्रत धारीने त्यागी नाम धरावे–पण स्व आत्मानी श्रद्धा–ज्ञान वगर ते
मिथ्याद्रष्टि छे.
शुद्धात्माना श्रद्धा–ज्ञान कर्या पछी जेम जेम जीव शुद्धता वधारे छे तेम तेम राग टळतो जाय छे अने राग टळतां ते
भूमिकाने योग्य बाह्य त्याग पण सहज पणे होय छे. अमुक भूमिकाए अमुक वस्तु खपे अने अमुक न खपे–ए तो
सहजमार्ग छे; ज्ञानीने ते बाह्यनो हठाग्रह होतो नथी. जे जीव बाह्य त्याग उपरथी के व्रत–पडिमा उपरथी ज
आत्मानी शुद्धतानुं माप काढे छे पण अंतरंग श्रद्धा–ज्ञानने जाणतो नथी ते बहिरद्रष्टि अथवा तो संयोगद्रष्टि छे.
हजी पोतानो शुद्ध आत्मस्वभाव केवो छे तेनी ओळखाण नथी अने चोथी भूमिकाना सम्यग्दर्शननुं पण भान नथी,
त्यार पहेलां तो पांचमी अने छठ्ठी भूमिकाने योग्य बहारनी पडिमा अने त्याग वगेरे करवा मांडे छे, परंतु
सम्यग्दर्शन वगरना ते जीवो साचा त्यागी के साचा व्रती नथी–एम श्री कुंदकुंद भगवाननो पोकार छे.
तेओए साचुं तत्त्व समजवुं मुश्केल थई पडयुं छे. आचार्यदेव तो कहे छे के ए कलिकालनी वासना छे, केमके आ
काळमां विराधक वृत्तिना जीवोनी मुख्यता छे. जेम मोटा समूहमांथी एक हंस जुदो पडी जाय अने अजाण्या देशमां
आवी पडे, तेम अत्यारे आ भरतमां कोई विरल धर्मात्मा होय छे. बहु थोडा जीवो एवा छे के जेमना अंतरमां
कलिकाळनी वासना बेठी नथी. सत् समजनारा जीवो विरल होय छे पण जे होय छे तेओ नक्कर द्रढतावाळा होय छे,
त्रणकाळ त्रणलोक प्रतिकूळ थाय तोपण तेओ सत्थी च्यूत थता नथी अने विपरीतपणे मानता नथी. पंचमकाळना
जे जीवो कुमार्गमां नथी पडया, अने पोताना सम्यक्त्वने स्वप्ने पण जेणे मलिन कर्युं नथी–एवा धर्मात्मा जीवोने
वर्तमान त्याग–पडिमा न होय छतां पण ते एक–बे भवमां मुक्ति पामशे. ए सम्यग्दर्शननुं माहात्म्य छे.
कुंदकुंदाचार्यदेवे आ अष्टपाहुडमां जे सत्ने जाहेर कर्युं छे ते धीरा थईने मध्यस्थपणे समजवुं. त्रणकाळमां आ वात
फरे तम नथी. आखी दुनियाथी विरोधी छे परंतु वस्तु स्वभाव साथे तेनो मेळ छे. जो वस्तुनो स्वभाव अने
केवळीनुं ज्ञान फरे तो आचार्यदेवनी आ वात फरे.
पण नष्ट थाय छे.
भेदज्ञान छे तेना हृदयमां सम्यक्त्वरूपी जळनो प्रवाह निरंतर वहे छे, तेथी तेने कर्मनो मेल लागतो नथी, पण
सम्यक्त्वना जोरे पर्याये पर्याये शुद्धता वधती जाय छे.
नथी अने परद्रव्यो साथे मारे कांई संबंध ज नथी,’–आम स्वभाव साथेनो संबंध जोडीने अने पर साथेनो तोडीने
अंतरद्रष्टिथी जुए तो सम्यग्दर्शन थाय. उपवास वगर अने व्रत–त्याग वगर एकला सम्यग्दर्शननुं ज अहीं जोर
आप्युं छे, केम के लोको ते मूळ ज भूली गया छे. व्रत, उपवासादि वगरनुं