माघः २४७३ः ६७ः
नयाभास अथवा मिथ्यानयोनुं स्वरूप
१. जैनशास्त्रोमां कथन बे प्रकारे छे–एक आगमरूप अने बीजुं अध्यात्मरूप. जेमां सामान्य– विशेषपणे
छ ए द्रव्योनुं प्ररूपण होय ते कथन आगमरूप छे अने जेमां एक आत्माना ज आश्रये प्ररूपण होय ते कथन
अध्यात्मरूप छे.
२. आगम कथनमां छए द्रव्योनुं प्ररूपण होवाथी तेमां, दरेक ‘द्रव्य पोतपोताथी द्रव्ये–गुणे अने पर्याये
स्वतंत्र छे एम बताववा उपरांत, दरेक द्रव्यनी पर्याय साथे बीजा द्रव्यनी पर्यायने मेळ छे के नहि अने होय तो ते
केवा प्रकारे छे ते बताववानी जरूर पडे छे; केम के ते जाण्या विना छए द्रव्योनुं यथार्थ ज्ञान थतुं नथी. आम होवाथी
आगम कथनमां ते संबंध बताववामां आवे छे, परंतु तेथी कोई द्रव्यनी पर्याय बीजा द्रव्यनी पर्याय करी शके के तेने
मदद, शरण के आलंबन आपी शके तेम बनतुं नथी; अगर तो एक द्रव्यनी पर्यायनुं कार्य कोई वखते ते द्रव्यनी
पोतानी मुख्यताथी थाय अने कोई वखते परद्रव्यनी मुख्यताथी तेनुं कार्य थाय एम बनतुं नथी; आथी ते पर द्रव्य
साथेना मेळने ज्ञाननुं जे पडखुं जाणे छे ते पडखाने ‘असद्भुत व्यवहारनय’ कहेवाय छे; तेने असद्भूत कहेवानो
हेतु ए छे के, एक द्रव्यनी पर्याय बीजुं द्रव्य करी शके छे, मदद करी शके छे आलंबन आपी शके छे अथवा कोई
वखते परद्रव्यनी मुख्यताथी कार्य थाय छे. एम लोको माने छे तेमज बोले छे तेथी शास्त्रोमां पण तेम कथन करवामां
आवे छे, पण ते असत्य छे, असद्भूतनो अर्थ असत्य थाय छे. तेथी ते असत्य कथनने जाणनारुं ज्ञाननुं पडखुं तेने
असत्य तरीके जाणतुं होवाथी ते नयने असद्भूत व्यवहारनय कहेवामां आवे छे.
३. आ संबंधमां श्री प्रवचनसारशास्त्रना पहेला अध्यायनी सोळमी गाथाना भावार्थमां नीचे मुजब कह्युं
छे–
“व्यवहार छ कारको उपचार असद्भूत नयथी सिद्ध करवामां आवे छे ते कारणे असत्य छे. निश्चय छ
कारको पोतामां ज जोडवामां आवे छे माटे सत्य छे; कारण के वास्तविक रीते कोई द्रव्यनो कर्ता के हर्ता नथी तेथी
व्यवहारकारक असत्य छे.”
४. आ प्रमाणे आगम शास्त्रोमां उपादान कारणथी कार्य थाय छे अने निमित्त कारण असत्य छे एम
जणाव्युं छे; ते निमित्त नैमित्तिक संबंध भेदज्ञान कराववा माटे जणाव्यो होवा छतां पण मंदबुद्धि जीवो ‘निमित्त
अपेक्षाए तो कर्तापणुं छे ने!’ एम कहीने पोतानुं वलण अने वजन निमित्त तरफथी खेंचीने स्वभाव तरफ वाळता
नथी.
प. आ कारणे, पर वलणथी छोडावीने अध्यात्मशास्त्रोनुं प्रयोजन आत्माने स्व तरफ वाळवानुं होवाथी,
आगम शास्त्रोए जे कथन ‘असद्भूत–असत्य’ कह्युं छे तेने विशेष बळवानपणे समजाववा माटे, पर साथे संबंध
बतावनारां बधांय कथनो सम्यक्नय नथी पण मिथ्यानय छे तेथी तेने नयाभास कहे छे.
आ विषय श्री पंचाध्यायशास्त्रना पहेला अध्यायमां प६१ थी प८७ गाथामां लेवामां आव्यो छे, ते गाथाओ
अहीं आपवामां आवे छे. प्रथम ते गाथाओनो टूंक सार नीचे जणाववामां आवे छे–
(१) सम्यक्नय अने मिथ्यानयनी व्याख्या आपी छे के, जे आत्माना गुणनो बोधक होय तथा आत्माने लाभ
थाय तेवा उदाहरण, हेतु अने प्रयोजनसहित होय ते सम्यक्नय छे, अने बीजा बधा मिथ्यानय छे. (गाथा–प६१)
(२) जेम प्रमाण ज्ञानथी आत्माने शुद्धिनो लाभ थाय छे तेम नयनुं फळ पण पर तरफथी खसीने पोताना
आत्मा तरफ वलण वडे आत्मानी शुद्धि थाय तेवुं होवुं जोईए; केम के प्रमाणनो अंश ते ज नय छे. (गाथा–प६२)
(३) जे वस्तुमां जे गुण नथी तेमां ते गुणनो आरोप करवारूप व्यवहार–अर्थात् आत्माने शरीरवाळो
ईन्द्रियवाळो, रंगवाळो इत्यादि प्रकारे कहेवो ते–उपादेय नथी केम के तेनाथी कांई इष्ट फळनी सिद्धि थती नथी; माटे
ते मिथ्यानय छे. (गाथा–प६३)
(४) जीवनी भूमिकामां शरीरनो प्रवेश थतो नथी, पण क्रोधादि
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आत्मधर्म फाईल
आप आत्मधर्मनी शरूआतथी ज ग्राहक न थया हो तो आपनी पासे पहेला बीजा के त्रीजा जे वर्षनी
फाईल न होय ते तुरत ज मगावो. पहेला वर्षनी थोडी ज फाईल बाकी छे.
मूल्य रूा. ३–४–० ट. ख. ०–९–०
आत्मधर्म कार्यालय, मोटा आंकडिया, काठियावाड.