Atmadharma magazine - Ank 041
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947).

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ફાગણઃ૨૪૭૩ઃ ૯પઃ
अभिनंदन पत्रका उत्तर
(अभिनंदन पक्रना उत्तर तरीके शेठश्रीए करेलुं भाषण ता. २२–२–४७)
भेद विज्ञान जग्यो जिनके घट, शीतल चित भयो जिम चंदन।
केलि करे शिव मारगमें जगमांहि जिनेश्वर के लघुनंदन।।
सत्य स्वरुप सदा जिनके प्रगटयो अवदात मिथ्यात निकंदन।
शांत दशा तिनकी पहिचान करुं करजोरि बनारसि बंदन।।
पूज्य गुरु वर्य्य कानजी स्वामी, श्रीमान आदरणीय दीवान साहब श्री अनंतराय पट्टणीजी, दोशी
रामजीभाई, अभिनंदन पक्र देनार अनेकों स्थान के भाईयों, बहिनों तथा सद्गृहस्थों!
आज आपने इस पविक्र भूमि सोनगढ व इस सद्ज्ञान प्रचार के स्थान प्रवचन होलमें मुझे अभिनंदन
पत्र देकर जो मेरा सम्मान बढाया है उसके लिये मैं आपका अत्यन्त आभार मानता हूं।
आपने जो मेरे द्वारा दिये गये दान व इस स्थान के लिये दिये गये द्रव्य की उल्लेखना कर उसकी
सराहना की यह आपका बडप्पन है अन्यथा मैं तो लक्ष्मी को चंचल और उसकी प्राप्ति की सफलता उसके
सद्उपयोगमें मानता हूं। द्रव्य उपार्जन की महिमा व महत्व उस ही में है कि वह पर उपकार व सम्यक्ज्ञान
के प्रचार में काम आवे उसको ही लक्ष्य कर तथा यह समझ कर कि यदि मैरे द्वारा दिया गया द्रव्य असली
मार्ग से विचलित–भूले हुओं को सच्चे ज्ञानी स्वामीजी
(कानजी स्वामी) द्वारा भगवान कुंदकुंदाचार्य के
अभिप्राय के उपदेशों द्वारा अपने सत्य स्वरुप का ध्यान दिला कर उस धर्म्म में प्रवृत्ति करा कर उनका
कल्याण कराने में सहायक हो तो मैं उसकी सार्थकता समझता हूं और अपना अहो भाग्य मानता हूं।
स्वामीजी वास्तव में सच्चे देव सच्चे शास्त्र व सच्चे गुरु के स्वरुप का बोध करा रहे हैं। जनता उसके
उपदेशामृत से जितना भी लाभ ले सके लेवें और अपना असली धर्म्म सच्चे दिगम्बरत्व में ही है यह पहिचान
कर उसके द्वारा अपना कल्याण करने में लगजावें और उस ही आत्मधर्म के सच्चे मार्ग का सहारा लेकर
उस सहजानन्द सच्चे सुख को प्राप्त करें।
यहां गुरु वर्य्य का समागम इस प्रान्त के लिये सौभाग्य की बात है और मैरी हार्दिक इच्छा है कि यह
संस्था श्रीमंत महाराजा साहब भावनगर स्टेट की छक्र छाया में दीवान साहब की शुभभावना व प्रान्त के
गृहस्थों के सतत् सहयोग से उत्तरोत्तर वृद्धि करती रहे और सम्यक्ज्ञान प्रचार से अखिल भारतवर्ष की
जनता को अधिकाधिक संस्थामें लाभ पहुंचावें।
अन्त में स्थानिय बहिन भाईयों का फिर से आभार मानता हूं कि जिन्होंने हमारे लिये इतना कष्ट
उठाया तथा हमें सम्मानित किया हम सबका सत्यधर्म्म को जानने की व अपना कल्याण कर सच्चा सुख
प्राप्त करने की शक्ति प्रगट हो यही शुभ भावना करते हुए अपना आसन ग्रहण करता हूं।
* * * *
અનુભવ પ્રકાશ અને સત્તાસ્વરૂપ (પુષ્પ–૧૪–૧પ)
(૧) અનુભવ પ્રકાશના રચનાર શ્રીમાન દીપચંદજી કાસલીવાલ જૈપુરી છે. આ ગ્રંથમાં આત્મઅનુભવનું
વર્ણન અને તેની પ્રેરણા છે. આત્મઅનુભવનો અભ્યાસ કરનારા અધ્યાત્મરસિકોએ આ ગ્રંથ અવશ્ય સ્વાધ્યાય કરવા
યોગ્ય છે. (૨) સત્તાસ્વરૂપના રચનાર શ્રીમાન પં. ભાગચંદ્રજી છે. આ ગ્રંથમાં પ્રથમ ગૃહિતમિથ્યાત્વ છૂટવાનો ઉપાય
જણાવ્યો છે અને પછી સર્વજ્ઞની સિદ્ધિ કરી છે. આ શાસ્ત્રમાં બીજા પણ અનેક વિષયો અભ્યાસ કરવા લાયક છે.
આ બંને ગ્રંથોનું ગુજરાતી ભાષાંતર છપાઈ ગયું છે. તેની પહેલી આવૃત્તિ ખલાસ થઈ જવાથી બીજી
આવૃત્તિ છપાયેલ છે. આ બંનેનું બાઈન્ડીંગ એક સાથે કરીને તેની કિંમત રૂા. ૧–૦–૦ રાખવામાં આવી છે. આ
પુસ્તક માહ સુદ પના રોજ પ્રગટ થયું હતું.