भूतार्थद्रष्टिथी त्रिकाळी तत्त्वमां ढळीने एकपणुं प्राप्त करतां शुद्धनयपणे स्थपायेली द्रष्टिथी आत्मानी अनुभूति
प्रगट थाय छे, आ अनुभूति ते ज आत्मसाक्षात्कार छे, ते ज सम्यग्दर्शन छे, ते ज स्वानुभव छे, ते ज प्रथम धर्म
छे; परमात्मस्वरूप प्रगट करवानो उपाय ते ज छे. आ अनुभूतिनुं लक्षण आत्मख्याति छे, एटले के जेवो आत्मानो
भूतार्थ स्वभाव छे तेवो ज अनुभूति वडे प्रगट थाय छे–ख्याति पामे छे–प्रसिद्ध थाय छे. आवा आत्मस्वभावनी
प्रसिद्धि वगर (–अर्थात् सम्यग्दर्शन वगर) पोतानां मानेलां त्याग, व्रत, तप जे करे ते बधुंय रणमां पोक छे,
तेनाथी संसारनी सिद्धि छे, पण आत्मानी सिद्धि नथी.
तत्त्वना जवाबो आपती हती. एवी निःशंक आत्मश्रद्धा राजपाटमां रहेली आठ वर्षनी कुमारी पण करी शकती हती,
तो पछी मोटी उंमरना पुरुषोए तो शरमावुं जोईए अने विशेष रुचि वडे वधारे पुरुषार्थ करवो जोईए. भाई!
काळा बजारनां पाप कामोमां तो बुद्धि चलावो छो तो पछी पोताना ज आत्मानुं ज्ञान करवा माटे बुद्धि केम न
चाले? पोताना आत्मानी समजण तो आबाल–गोपाळ सर्वे करी शके छे. जगतनां भणतर न भण्यो होय तोपण
सत्समागमे आत्मानी रुचिवडे आत्मानी समजण करीने धर्म पामी शके छे.
थया अने पांच महाव्रत पाळे तोपण तेनी मोक्षसन्मुख दशा नथी, ते अज्ञानी छे, संसारसन्मुख छे, मिथ्यात्वना
अनंतपापमां पडेलो अधर्मी छे; अने जेणे परमार्थ आत्मस्वभाव जाण्यो छे एवा सम्यग्द्रष्टि जीव राजपाटना
संयोगमां के लडाईमां उभा होवा छतां तेओ मोक्षमार्ग सन्मुख छे, आत्मस्वभावना आराधक छे, क्षणे क्षणे संसार
तोडी रह्या छे अने साधक धर्मात्मा छे.
पोते गाणां गाय छे. गुणोनी रुचिरूप जे भाव ते ज स्तुति छे. पैसानो लोभी जीव लक्ष्मीवंत वगेरेनो आदर करे छे
एम कहेवाय छे, पण खरेखर ते लक्ष्मीवंतनो आदर नथी करतो, पण पोताने लक्ष्मीनी प्रीति छे ते पोताना भावनो
ज पोते आदर करे छे. जेने आत्माना वीतरागभावनी रुचि छे ते वीतरागी देव–गुरु–शास्त्रनां गाणां गाय छे अने
जेने आत्माना वीतरागीस्वभावनो आदर नथी पण रागनो आदर छे ते ज कुदेवादिने वंदन करे छे. जे कुदेवादिने
वंदन करे छे ते वीतराग जिनदेवना पंथनो नथी. जेने पोताना भावमां ज राग गोठयो छे ते रागी देवने माने छे
वीतरागदेवने राग के रागना निमित्तो (–आहार, वस्त्र, ओषध वगेरे) नथी, छतां रागनी रुचिवाळा जीवो
तेमनामां पण राग अने रागना निमित्तोनी कल्पना करे छे; ते जीवो खरी रीते पोताना वीतराग भावनो ज
अनादर करी रह्या छे अने व्यवहारथी वीतरागदेवनो अनादर करी रह्या छे. खरी रीते कोई जीव पोतानी
चैतन्यभूमिकामां परनो आदर के अनादर करतो नथी पण साची समजण वडे पोताना ज गुणनो आदर करे छे अने
अणसमजण वडे पोताना ज गुणनो अनादर करे छे. (चालु...)
समजावी रह्यां छे; ए रीते, भगवानश्री कुंदकुंदाचार्यदेव प्ररूपित आध्यात्मिक तत्त्वोनी तेओ भरतमां महान
प्रभावना करी रह्या छे. भरतनी बहार पण सेंकडो मुमुक्षुओ तेमना प्रवचनो वांचे छे, अने साक्षात्
सांभळवा आतुर छे. छेल्ला बे त्रण वर्षोमां श्री नियमसार, प्रवचनसार (गुजराती गा. ११६ सुधी) अने
अष्टपाहुड वंचाई गया पछी हालमां माह वद ६ थी सवारे ‘श्रीपंचास्तिकायसमयसार’ नुं वांचन शरू कर्युं छे.
हंमेशा बपोरे श्री समयप्राभृत वंचाय छे, अत्यारे समयसार उपर आठमी वखत प्रवचन चाले छे, अने तेमां
कर्ताकर्म अधिकार शरू थयो छे.