अमारी प्रसन्नता कया शब्दोमां व्यक्त करीए? श्री कानजी महाराज जगतमां स्थायी शांतिनो मूळ मंत्र–स्वद्रष्टि–
स्वाधिकारनुं विविधरूप निरूपण करे छे. जगतमां अशांतिनुं मूळ कारण ए छे के प्रत्येक द्रव्य बीजा द्रव्य उपर
अधिकार जमाववा चाहे छे, तेने पोताने अनुकूळ परिणमन कराववा चाहे छे, द्रव्य पोताना ज गुण–पर्यायोनुं
स्वामी छे अने पोताना ज रूपमां परिणमन करे छे. पर द्रव्य उपर के तेना परिणमन उपर तेनो कोई अधिकार
नथी. परंतु मूढ प्राणी हंमेशा एम इच्छे छे के जगतना बधा पदार्थो मारी अनुकूळताए परिणमन करे अने पर
पदार्थोनुं परिणमन पोताने अनुकूळ कराववानी धूनमां अनेक प्रकारे हिंसा अने संघर्षनी उत्पत्ति करे छे. संक्षेपमां–
पर पदार्थोने पोताने अनुकूळ परिणमाववानी वृत्ति ते ज हिंसा छे अने स्वाधिकार–स्वगुणपर्यायाधिकार ते ज
अहिंसा छे.
अमे ते बधाने अभिनंदन आपीए छीए अने भगवान जिनेन्द्रदेव पासे प्रार्थना छे के श्री कानजी महाराज सो वर्ष
सुधी चिरजीवन प्राप्त करे अने आपणने बधाने लाभ पहोंचाडता रहे. अमे आपने फरथी अभिनंदन करीए छीए.
दुःखदायक माने छे. अशुभ लागणीओ ते तो धगधगता डाम जेवी दुःखदायक छे, तेनाथी आत्मानो निराकूळ आनंद
लूंटाय छे; अने शुभलागणीथी पण आत्मानो निराकूळ आनंद लूंटाय छे, तेथी ते पण दुःखदायक छे. आ
सम्यग्द्रष्टिनुं अंतरपरिणमन छे ते बहारथी देखाय नहीं.
ते कारणे शुभ–अशुभवृत्तिओ आवी जाय छे, परंतु ज्ञानी तेने स्वपणे स्वीकारता नथी, तेथी तेमां सुखबुद्धि केम
होय? पुरुषार्थनी नबळाई अने राग द्वेष तेने पण आत्मामां स्वीकारता नथी, संयोग तो परद्रव्य ज छे, ए प्रमाणे
ज्ञानी तो पोताने एक ज्ञायक भाव ज माने छे. सम्यग्दर्शन थतां तुरत ज जीवने विषयादिनी आसक्ति छूटी ज जाय
एम नथी, केम के विषयनी आसक्ति टळवी ते तो चारित्रनुं कार्य छे, परंतु विषयादिनी रुचि, सुखबुद्धि तो अवश्य
टळी ज जाय. (रुचि ते श्रद्धानो दोष छे अने विषयनी आसक्ति ते चारित्रनो दोष छे. श्रद्धानो दोष टळतां
चारित्रनो दोष पण साथे टळी ज जाय– एवो नियम नथी. सम्यग्दर्शन थतां श्रद्धानो दोष तो टळे छे, तेथी
परद्रव्यमां सुखबुद्धि के रुचि होती नथी, छतां आसक्तिनो राग होय छे, ते चारित्रनी अस्थिरता छे.)