चैत्रः२४७३ः ११७ः
जवुं के तेओ सत्य अने असत्यने समान गणे छे. तेओ सत्य असत्यनो बराबर विवेक करीने असत्यनो आदर
जरा पण करता नथी. तेथी–
(११६) अहीं ए सम्यग्दर्शननुं माहात्म्य जणाव्युं छे के जेना आत्मामां शुद्धात्मानी श्रद्धारूपी सम्यकत्व जळ
प्रवाह निरंतर वहे छे अने तेने अतिचार लगावतो नथी–कुदेवादिने मानतो नथी, तेने सम्यग्दर्शनने लीधे नवां कर्मो
बंधाता नथी अने जुनां कर्मो पण टळी जाय छे.
अष्टप्राभृतमां पहेलां दर्शनप्राभृतनी सातमी गाथा पूरी थई. (क्रमशः)
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श्री सर्वज्ञाय नमः।। ॐ ।। श्री वीतरागाय नमः
भैया भगवतीदासजी कृत
उपादान–निमित्त संवाद
लेखांक पांचमो
(आ उपादान–निमित्त संवादना ४७ दोहानुं व्याख्यान वीर सं. २४७१ना पर्युषण दरमियान वंचाई
गयेल छे तेमांथी ३७ दोहा सुधीनुं व्याख्यान अंक ४०मां आवी गयेल छे. अहीं त्यारपछी आगळना
दोहाओनुं व्याख्यान आपवामां आवे छे.)
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सम्यग्दर्शन सुधी तो वात आवी छे के–सम्यग्दर्शनथी ज जीवने सुख थाय छे अने साचा निमित्तो होवा
छतां सम्यग्दर्शन न होवाने लीधे ज जीवने दुःख छे. सम्यग्दर्शननी वात स्वीकार्या पछी हवे सम्यक्चारित्र संबंधी
निमित्त तरफनी दलील मूके छे–
सम्यक्दर्श भये कहा त्वरित मुक्तिमें जाहिं?
आगे ध्यान निमित्त है, ते शिवको पहुंचाहि. ३८.
अर्थः– सम्यग्दर्शन थवाथी शुं तरत ज जीव मुक्तिमां जाय छे? (ना.) आगळ पण ध्यान निमित्त छे, ते
शीवपदमां (मोक्ष) पहोंचाडे छे–आम निमित्तनी दलील छे.
निमित्त कहे छे के सम्यग्दर्शनथी ज जीवने सुखनो उपाय प्रगटे छे ए वात साची; सम्यग्दर्शनथी मुक्तिनो
उपाय थाय पण निमित्तना लक्षे रागादि भावथी मोक्षनो उपाय न थाय. आ रीते, पंचमहाव्रतनी क्रियामां धर्म थाय,
देव–गुरु–शास्त्र के पुण्यथी लाभ थाय, तीर्थंकर गोत्रनो भाव सारो–एवा प्रकारनी ऊंधी मान्यतानी दलील तो हवे
निमित्ते छोडी दीधी छे पण उपरनी दशामां निमित्तनो आधार छे एवी दलील करे छे.
सम्यग्दर्शन पछी पण निमित्तनुं जोर छे. एकला सम्यग्दर्शनथी मुक्ति थई जती नथी, सम्यग्दर्शन पछी पण
ध्यान करवुं पडे छे; ए ध्यानमां भेदनो विकल्प ऊठे छे–राग थाय छे, माटे ते पण निमित्त आव्युं के नहि?
आत्मानी साची ओळखाण पछी स्थिरता थतां भले महाव्रतादिना विकल्पने छोडी दो, परंतु वस्तुने ध्यानमां धारवी
तो पडशेने? वस्तुमां स्थिरता करवा जतां रागमिश्रित विचार आव्या वगर रहेशे ज नहि. माटे राग पण
निमित्तरूपे आव्यो के नहि? जुओ निमित्त क्यां सुधी पहोंच्युं? ठेठ सुधी निमित्तनी जरूर पडी छे–एथी निमित्तनुं ज
जोर छे–आ निमित्तनी छेल्ली दलील छे.
निमित्ते जे दलील करी ते भेदना पक्षनी दलील छे. सम्यग्दर्शन पछी स्थिरता करतां वच्चे भेदनो विकल्प
आव्या वगर रहेतो नथी, वच्चे विकल्परूप व्यवहार आवे छे ए वात खरी छे, परंतु ते विकल्प मोक्षमार्गमां किंचित्
मददगार नथी; निमित्तद्रष्टिवाळो तो ते विकल्पने ज मोक्षमार्ग समजी ले छे ए ज द्रष्टिनी भूल छे.
आत्माना स्वभावनी द्रष्टिवंत जीव अभेदना पक्षथी समजे छे एटले जे भेद पडे अने राग थाय तेने ते जाणे
छे पण मोक्षमार्गमां मददगारपणे तेने स्वीकारता नथी. अने निमित्तनी पक्कडवाळो अज्ञानी भेदना पक्षथी वात करे छे,
तेने अभेदस्वभावनुं भान नथी एटले ते एम माने छे के ध्यान करतां वच्चे भेद भंगनो विकल्प आव्या वगर रहेतो
नथी माटे ते विकल्प ज ध्यानमां मददगार छे. आ रीते ज्ञानी अने अज्ञानीनी द्रष्टिमां ज अंतर छे.
एक गुणने लक्षमां लईने विचार कर्या वगर ध्यान थशे नहि अने एक गुणने लक्षमां लईने विचार करवो
ते तो भेद–भंग छे ए भेद भंग वच्चे आवे ज छे–माटे ते भेदना रागनी मददथी ज मोक्ष थाय छे– एम निमित्तनी
दलील छे. आ दलीलमां हवे परनी कांई लपसप राखी नथी, हवे तो अंदरमां जे विकल्परूप