आथी सिद्ध थाय छे के उपादान स्वाधीनपणे ज कार्य करे छे, निमित्त तो मात्र आरोप रूप ज छे. श्रीभगवान पासे
अने साचा गुरु पासे अनंतवार गयो पण भडनो दीकरो पोते जागृत थईने पोतनी भूल काढे त्यारे साचुं समजेने?
कांई देव के गुरु तेना आत्मामां प्रवेशी जईने तेनी भूलने बहार काढे? जेम सिद्ध भगवाननुं ज्ञान लोकालोकने
परिणमनमां निमित्त छे, परंतु शुं सिद्ध भगवान लोकालोकना कोई पदार्थने परिणमावे छे? के तेनी कांई असर
परद्रव्यो उपर थाय छे? तेम कांई थतुं नथी; सिद्ध भगवानना ज्ञाननी जेम, सर्वत्र समजी लेवुं के निमित्त मात्र
हाजररूप छे, ते कोईने परिणमावतुं नथी के तेनी असर उपादान उपर जरापण थती नथी. माटे उपादाननो ज
विजय छे. दरेक जीव पोतपोताना एकला स्वभावना अवलंबने ज धर्म पामे छे, कोईपण जीव परना अवलंबने
धर्म पामतो नथी. –३९–
उ.–ज्यारे आत्मा अने सिद्धमां सरखापणुं स्वीकारे त्यारे. ज्यां सुधी सिद्धमां अने आत्मामां कांई फेर माने
उ.–सिद्ध प्रभु संपूर्ण ज्ञानवडे पोताना स्वरूपनो अनुभव करे छे, तेओने रागादि नथी तथा परद्रव्यनुं कांई
ज्ञान करे छे अने साथे राग करीने ते रागने वेदे छे. अज्ञानी जीवो राग अने ज्ञानने एकमेकपणे अनुभवे छे तेमज
पर द्रव्यनुं हुं करूं एम ते मिथ्या माने छे, ज्ञानी जीवने राग होवा छतां तेओ राग अने ज्ञानने भिन्नपणे जाणता
होवाथी ज्ञान स्वभावने ज पोतापणे अनुभवे छे, रागने पोतानुं स्वरूप मानता नथी अने परनुं हुं करुं एम मानता
उ.–जगतने आत्मानी पवित्रतानी ओळखाण नथी अने जडना संयोगथी माप करे छे, तेनी द्रष्टिमां तो
पर संयोगथी मोटप के हीणप नथी पण पोताना ज भावथी मोटप के हीणप छे. जेओए पोताना आत्माने
सम्यग्दर्शनादि पवित्र भावोवडे शोभित कर्या ते ज जीव त्रण जगतमां मोटा छे, अने मिथ्यादर्शनादि भावो वडे
पोताना आत्माने मलिन कर्या ते ज जीव हीणपवाळा छे. सम्यग्द्रष्टि जीवनो महिमा अपार छे मिथ्याद्रष्टि जीव
पुण्यने कारणे कदाच संसारमां मोटो कहेवाय तोपण ते खरी मोटप नथी. पुण्य ते विकार छे–दोष छे, तेना वडे जीवने
खरेखर शोभा नथी, पण सम्यग्दर्शनादि गुणो वडे ज जीवनी शोभा छे. संसारनी मोटप पुण्यना आधारे छे, धर्ममां
उ.–आ आत्मानी अने सिद्धना आत्मानी शक्तिमां जरा पण अंतर नथी. जो आत्माने सिद्ध समान
विकार पण होय एटले तेणे पोताना आत्माने विकारीस्वभाववाळो मान्यो. जे पोताना आत्माने विकार
स्वभाववाळो माने ते विकारनो आदर करे एटले ते मिथ्याद्रष्टि ज छे. सिद्धने अने आ आत्माने पर्यायमां फेर होवा
छतां त्रिकाळी शक्तिमां जरा पण फेर नथी. जो परमार्थे सिद्धभगवाननी अने आ आत्मानी शक्तिमां कांई फेर माने
तो ते अनंत संसारमां रखडे. पोताना आत्माने सिद्धसमान परिपूर्ण मान्या वगर पर्यायमां सिद्ध थवानी लायकात
उ.–जे आत्मानो स्वभाव न होय पण विभाव होय ते टळी जाय, पण जे आत्मानो स्वभाव होय ते टळे
होवाथी ते प्रगटया पछी तेनो कदी नाश थतो नथी.